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काशी का ऐसा घाट, जहां होती है मोक्ष की प्राप्ति

यहां खेली जाती है चिता भस्म की होली

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Harishchandra Ghat

हरिश्चंद्र घाट

वाराणसी. काशी घाटों की नगरी के नाम से जानी जाती है। यहां कुल 84 घाट हैं जिनकी अलग-अलग महत्व है। इस घाट में एक हरिश्चंद्र घाट को मुख्य माना गया है। यह घाट मैसूर घाट एवं गंगा घाटों के मध्य में स्थित है। हरिश्चंद्र घाट पर हिन्दुओं के अंतिम संस्कार रात-दिन किए जाते हैं। यह ऐसा घाट हैं जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है। बनारस में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए दो घाट काफी प्रसिद्ध हैं। पहला मणिकर्णिका घाट और दूसरा है राजा हरिश्चंद्र घाट। हरिश्चद्र घाट के कल्लू डोम ने राजा हरिश्चंद्र को खरीदा था इसीलिए इसका नाम हरिश्चंद्र घाट पड़ा।

यहां कभी ठंडी नहीं होती चिताएं
हरिश्चंद्र घाट के समीप में काशी नरेश ने बहुत भव्य भवन "डोम राजा" के निवास हेतु दान किया था। यह परिवार स्वयं को पौराणिक काल में वर्णित "कल्लू डोम " का वंशज मानता है। हरिश्चंद्र घाट पर चिता के अंतिम संस्कार हेतु सभी सामान लकड़ी कफ़न धूप राल इत्यादि की समुचित व्यवस्था है। इस घाट पर राजा हरिश्चंद्र माता तारामती एवं रोहताश्व का बहुत पुरातन मंदिर है साथ में एक शिव मंदिर भी है। आधुनिकता के युग में यहां एक विद्युत शवदाह भी है, परन्तु इसका प्रयोग कम ही लोग करते हैं।

इस घाट का इतिहास राजा हरिश्चंद्र से जुड़ा है। भगवान राम भी राजा हरिश्चंद्र के रघुकुल में जन्मे थे। राजा हरिश्चंद्र के बेटे की मृत्यु के बाद उन्हें अपने पुत्र के दाह संस्कार के लिए डोम से आज्ञा मांगी थी जिसके यहां पर उन्होंने एक वचन के अनुसार नौकरी की थी। तब बिना दान के दाह संस्कार मान्य नहीं था इसलिए राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दान में देकर अपने पुत्र का दाह संस्कार किया था। तभी से ये परम्परा चलती आ रही है।

यहां खेली जाती है चिता भस्म की होली
मान्यता है की फाल्गुन की रंग एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी लौटे थे। इसलिए इस दिन भगवान शिव की पालकी निकलती है और लोग उनके साथ रंगों का त्योहार मनाते हैं। दूसरे दिन बाबा औघड़ रूप में महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच चिता-भस्म की होली खेलते हैं। इसमें लोग डमरुओं की गूंज और ‘हर हर महादेव’ के नारे के साथ एक दूसरे को भस्म लगाते हैं।

डोम राजा का परिवार धीरे-धीरे काफी बड़ा होता गया और इस वक़्त करीब 100-150 लोगों का परिवार है जो न सिर्फ काशी बल्कि जौनपुर, बलिया, गाजीपुर के अलावा अन्य जगहों पर रहते हैं और दाह संस्कार कराते है। काशी वो जगह है जहां मृतक को सीधे मोक्ष प्राप्त होता है इसलिए यहां इन डोम राजा का बड़ा महत्व है।