वाराणसी

IIT BHU के नए रिसर्च से Kala Azar Vaccine की उम्मीद बढ़ी, ट्रायल वैक्सीन संक्रमण रोकने में सक्षम

ट्रायल वैक्सीन कालाजार बीमारी के प्रमुख कारक लीशमैनिया परजीवी के खिलाफ संक्रमण को रोकने में सक्षम
आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों की टीम ने काला आजार का टीका बनाने की दिशा में जगाई उम्मीद

वाराणसीJan 21, 2021 / 09:33 pm

रफतउद्दीन फरीद

बीएचयू आईआईटी

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. आईआईटी बीएचयू (IIT BHU) को बड़ी सफलता हाथ लगी है। उसके नए शोध से कालाजार जैसी जानलेवा बीमारी का टीका बनाने की उम्मीद बढ़ गई है। आईआईटी बीएचयू की एक टीम ने कालाजार के खिलाफ एक वैक्सीन का ट्रायल (BHU Scientist Tested New Vaccine) किया है, जिससे इसके टीके को लेकर आशा (Offer Hope for Kala Azar Vaccine) की एक नई किरण उभरी है। ट्रायल की गई वैक्सीन कालाजार बीमारी के प्रमुख कारक लीशमैनिया परजीवी (Visceral leishmaniasis) के खिलाफ संक्रमण (Infection) को रोकने में सक्षम है। अभी तक काला आजार बीमारी (Kala Azar Disease) का दुनिया भर में कोई टीका उपलब्ध नहीं है। बीमारी का इलाज महज कुछ दवाओं तक ही सीमित है। यह शोध हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सेल्यूलर इम्यूनोलॉजी’ (Cellular Immunology) प्रकाशित हुआ है।

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इस वैक्सीन को आईआईटी बीएचयू के स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग (School of Biochemical Engineering IIT BHU) के वैज्ञानिक प्रोफेसर विकास कुमार दुबे (Pro V K Dubey), प्रमुख अन्वेषक डाॅ. सुनीता यादव, नोशनल पोस्ट डॉक्टोरेट फेलो और बीएचयू आईएमएस (BHU IMS) मेडिसिन विभाग (Medicine Department) के प्रो. श्याम सुंदर के सहयोग से लंबे शोध के बाद तैयार किया गया है। प्रो. विकास कुमार दूबे ने बताया है कि इस बीमारी के खिलाफ मनुष्य के लिए विश्व बाजार में अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है। टीकाकरण किसी भी संक्रामक रोग से लड़ने का सबसे सुरक्षित तरीका है। वैक्सीन हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को बीमारी से मुकाबला करने के लायक बनाता है। यह हमारे शरीर में कई प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करता है जो एंटीबॉडी, साइटोकिन्स (Cytokines) और अन्य सक्रिय अणुओं का उत्पादन करते हैं, जो सूक्ष्म सामूहिक रूप से रएक्ट कर संक्रमण से बचाते हैं और लंबे समय तक काम करते लीशमैनियासिस के पूर्ण उन्मूलन के लिये एक टीका बेहद कारगर होगा।


चूहों पर मिले पॉजिटिव रिजल्ट

टीम ने इस वैक्सीन का चूहों पर अध्ययन किया जिसके बेहद पॉजिटिव और उत्साहित करने वाले रिजल्ट सामने आए हैं। प्रो. विकास कुमार ने बताया कि इस टीके की रोग निरोधी क्षमता का मूल्यांकन चूहों के मॉडल में प्री क्लिनिकल अध्ययनों में किया गया था जिसमें संक्रमित चूहों की तुलना में टीका के इस्तेमाल वाले संक्रमित चूहों के लीवर (Liver) और प्लीहा (Plea) अंगों में परजीवी भार में काफी कमी देखी गई थी। टीका लगाए गए चूहों में परजीवी के बोझ को साफ करने से वैक्सीन (Vaccine) के सफलता की संभावना प्रबल हो जाती है। यह एक प्रकार का रक्षा तंत्र है जो टीकाकरण के बाद शरीर में होता है और बीमारी को बढ़ने से रोकता है।

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