डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्याल लंबे अंतराल के बाद हिंसा की चपेट में आया है। हालांकि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन चाहता तो शांतिपूर्ण हल निकल सकता था। लेकिन हठवादिता ने महामना की बगिया को आग में झुलसा दिया। निरीह छात्राओं पर लाठियां बरसाई गईं। आखिर क्या कसूर था उनका, क्या दूर दराज से आ कर छात्रावासों में रहने वाले छात्र और छात्राओं का सुरक्षा की गुहार करना भी गुनाह है। आखिर ऐसा क्या किया उन छात्राओं ने कि उन पर लाठियां बरसाई गईं। एक पिता की तरह जैसे सद्ज्ञान दिया जाता है वैसे ही उनकी बातों को सुनना क्या उचित नहीं था यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर इस पूरे बवाल की जड़ क्या है…
बता दें कि गत गुरुवार की शाम छह बजे के करीब फाइन आर्ट्स की कुछ छात्राएं क्लास से छूटने के बाद छात्रावास की तरफ जा रही थीं कि भारत कला भवन के पास कुछ अवांछनीय तत्वों ने पहले छींटाकशी की, फिर उन छात्राओं संग छेड़छाड़ की। छात्राओं ने शोर मचाया। बताया जाता है कि थोड़ी ही दूरी पर प्राक्टोरियल बोर्ड की गाड़ी खड़ी थी। निश्चित तौर पर उन्होंनें छात्राओं की चीख सुनी होगी। मदद की गुहार सुनी होगी। लेकिन वे उन्हें बचाने नहीं आए। ऐसी स्थिति में डरी सहमी छात्राएं किसी तरह एमएमवी और त्रिवेणी छात्रावास पहुंची। उन्होंने अपने वार्डेन से शिकायत की। चीफ प्राक्टर से शिकायत की। जैसा कि छात्राओं ने बताया चीफ प्राक्टर का बयान था कि शाम होने के बाद छात्रावास से निकलती ही क्यों हैं। ऐसा जवाब सुनकर छात्राएं स्तब्ध रह गईं। वो वापस लौटती हैं छात्रावास। किस तरह से किस मनःस्थिति में उन्होंने रात गुजारी होगी इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।

सुबह होने पर यानी शुक्रवार को वे पुनः विश्वविद्यालय के मुखिया से सुरक्षा की गुहार करती हैं। वीसी आवास तक जाती हैं लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। ऐसे में छात्रावास की छात्राएं सुबह छह बजे बीएचयू के मुख्य द्वार पर पहुंचती हैं। धरने पर बैठ जाती हैं। छात्राओं का समूह जब सिंह द्वार पर धरने पर बैठ जाता है तो विश्वविद्यालय प्रशासन सारे महिला छात्रावासों में ताला जड़ देता है ताकि छात्राएं सिंह द्वार तक न जा पाएं। अंदर ही अंदर छात्राएं व्याकुल हैं किसी तरह से सिंह द्वार पहुंचने के लिए। वो छात्रावास के अंदर हंगामा करती हैं। छात्रावास बंद होने की जानकारी होने पर धरनारत कुछ छात्राएं छात्रावास पहुंचती हैं और हंगामा कर अंदर छात्रावास में फंसी छात्राओं को बाहर निकलवाने में कामयाब हो जाती हैं। इस बीच जैसा बताया गया कि कुछ छात्राएं छात्रावास की दीवार फांद कर सिंह द्वार पर पहुंच जाती हैं। छात्राओं की सिर्फ एक मांग होती है कि वीसी मौके पर यानी धरना स्थल पर आएं और उन्हें मुकम्मल सुरक्षा का आश्वासन दें। लेकिन उनकी मांग ठुकरा दी जाती है।

छात्राओं के धरने पर बैठन की सूचना जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल जाती है। कतिपय संगठन, छात्र संगठन मौके पर पहुंच कर उनके आंदोलन को समर्थन देते हैं। हालांकि यहां एक बात बता दें कि छात्राएं बार-बार यह कहती रहती हैं कि उन्हें कोई राजनीति नहीं करनी है। उन्होंने किसी तरह के राजनीतिक समर्थन की जरूरत नहीं। लेकिन शुक्रवार की शाम होते होते विश्वविद्यालय प्रशासन छात्राओं के इस आंदोलन को राजनीति प्रेरित व प्रायोजित करार देता है। इस बीच वीसी का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल होता है कि छात्राओं की ओर से कोई कंप्लेन नहीं है, धरना प्रायोजित है। मौके पर विश्वविद्यालय का कोई कर्मचारी नहीं पहुंचता है। यह जरूर है कि चूंकि शुक्रवार को दोपहर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी आना था लिहाजा इस आंदोलन को लेकर जिला प्रशासन के पेशानी पर बल पड़ता है। प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचते हैं। महिला एसडीएम सदर छात्राओं का मनाने पहुंचती हैं। वह काफी प्रयास करती हैं, छात्राओं से शिक्षकों की बात कराने की कोशिश करती हैं। लेकिन हकीकत जान कर आश्चर्य होगा कि छात्राओं को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा भेजे गए किसी शिक्षक पर तनिक भरोसा नहीं होता। वे तो सिर्फ और सिर्फ वीसी को मौके पर बुलाने की मांग करती हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर पत्रिका को बताया अगर वीसी छात्राओं से मिलने आ जाते तो छात्राओं का आंदोलन शुक्रवार की सुबह ही समाप्त हो गया होता। लेकिन वह नहीं आए।
ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन और खास तौर पर वीसी की उपेक्षा की शिकार छात्राओं का धरना जारी रहता है और उन्हें समर्थन देने के लिए राजनीतिक लोग भी धरना स्थल पर पहुंचने लगते हैं। इससे शुक्रवार की शाम से ही यह आशंका बलवती होने लगती है कि कुछ न कुछ गड़बड़ होने वाला है। इस बीच जिला प्रशासन मजबूरी में प्रधानमंत्री का डीरेका से तुलसी मानस मंदिर व दुर्गा मंदिर जाने का रूट बदलता है और उन्हें नरिया लंका की जगह गांधी नगर, साकेत नगर से होते तुलसी मानस मंदिर पहुंचाता है। यहां फिर बताएं कि जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी भी इस संवेदनशील मसले को समझते हैं। उन्होंने पत्रिका से बातचीत में ऑफ द रिकार्ड कहा कि वैसे तो वीसी मौके पर पहुंच जाते तो सारी समस्या आनन-फानन में सुलझ जाती। यह पूछने पर कि क्या जिला प्रशासन ने वीसी से इस बाबत कोई बात की, तो उनका जवाब था कि सिर्फ बात ही की जा सकती है। यह पूरा मसला विश्वविद्यालय प्रशासन, वीसी और छात्र-छात्राओं के बीच का है। फिर जिला प्रशासन वीसी को छात्राओं के धरना स्थल तक आने को बाध्य तो कर नहीं सकता। वैसे प्रशासन ने खास तौर पर एसडीएम और सीओ ने छात्राओं और वीसी से बात की। उन्होंने दोनों पक्षों के बीच वार्ता का माहौल तैयार करने की कोशिश की। वीसी तैयार हुए। रात का समय मुकर्रर हुआ। छात्राएं वीसी आवास तक पहुंची लेकिन वह नहीं मिले। फिर नारेबाजी करते छात्राएं लौट आईं धरना स्थल पर। ऐसे में जिला पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों की बात भी खाली गई। खैर जैसे तैसे शुक्रवार की रात कट गई।
शनिवार की सुबह भी सब कुछ जैसे तैसे चलता रहा। छात्राओँ की बस एक मांग वीसी धरना स्थल पर आएं और मुकम्मल सुरक्षा का आश्वासन दें। लेकिन वह नहीं आते हैं। इसी बीच छात्राओं का समर्थन देने वालों का तांता बढ़ता जाता है। लेकिन वो खुद को अपने तक ही सीमित रखती हैं। कोई पोलिटिकल बयान उनकी तरफ से नहीं आता है। अलबत्ता दोपहर में भूख हड़ताल की घोषणा होती है। इस बीच पीएम के वाराणसी दौरा खत्म कर दिल्ली जाने के बाद जिला प्रशासन पुनः छात्राओं को मनाने की कोशिश में जुटता है। लेकिन इसी बीच शाम छह बजे के करीब विश्वविद्यालय का मीडिया सेल एक बयान जारी करता है जिसके तहत परिसर में छेड़खानी को लेकर मुकम्मल सुरक्षा की मांग करने वाली छात्राओं के बारे में ‘कथित’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। विश्वविद्यालय के पीआरओ की ओर से जारी विज्ञप्ति में छेड़खानी को ही कथित करार दिया जाता है। यानी गुरुवार की शाम का वह प्रकरण ही संदिग्ध करार दिया जाता है। इतना ही नहीं विज्ञप्ति में कहा जाता है कि धरना स्थल पर बैठे एक छात्र ने शुक्रवार की रात महामना की प्रतिमा पर चढ़ कर कालिख पोतने की कोशिश की। यह पूरी तरह से हास्यास्पद लगता है। बता दें कि प्रधानमंत्री के जन्मदिन से पहले ही मालवीय चौराहे को सजाया गया है। रंगीन कपड़ों से पूरा चौराहा पटा है,बिजली के झालर लगे हैं ऐसे में अव्वल तो कोई प्रतिमा पर चढ़ ही नहीं सकता दूसरे अगर ऐसी हरकत करने की कोई कोशिश भी करता तो वहां मौजूद छात्र-छात्राओं का हुजूम ही उसे दंडित करने के लिए पर्याप्त था। एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि अगर किसी छात्र ने ऐसा करने की कोशिश की तो धरना स्थल से चंद कदम की दूरी पर बैठे विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मी क्या कर रहे थे। क्या उसके खिलाफ पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज कराई गई। क्या उसे पुलिस के हवाले किया गया। जवाब है नहीं। यानी पूरी तरह से इस घटनाक्रम को दूसरा रंग देने की कोशिश की गई। इसके बाद जिला प्रशासन ने एक पहल फिर से की कि छात्राओं और वीसी के बीच वार्ता हो जाए। टाइम फिक्स होता है। छात्राओं संग कुछ छात्र भी वीसी आवास पहुंचते हैं, लेकिन छात्रों को देख वहां पहले से मौजूद सुरक्षाकर्मी उन्हें रोकते हैं तो दोनों पक्षों में कहासुनी होती है और सुरक्षाकर्मी छात्रों पर लाठीचार्ज कर देते हैं। यहां से दौड़ती हुई धरना स्थल की ओर भागती और विश्वविद्याल परिसर में एक बार फिर से सुरक्षाकर्मियों का तांडव शुरू हो जाता है। तभी कुछ अराजक तत्व मौके पर पहुंचते है। सिंह द्वार के दोनों तरफ यानी नरिया और सामनेघाट की ओर से आता है, पथराव करता है और दो दिन से जो छात्राओं का आंदोलन अहिंसक तौर पर चल रहा था वह हिंसा में तब्दील हो जाता है। पुलिस और मिडीयाकर्मियों की तकरीबन आधा दर्जन बाइक जला दी जाती है। परिसर में जम कर पथराव होता है। इसमें कई मीडियाकर्मी और पुलिस के जवानों को चोट पहुंचती है और पूरा माहौल ही पूरी तरह से हिंसक हो जाता है।