डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. इस 21वीं सदी में भी मासिक धर्म जिसका नाम लेन से भी सकुचाती हैं लड़कियां। केवल गांव गिरांव ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों में भी इसे लेकर काफी संकोच है। भले ही वो इससे तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाएं पर उसका उल्लेख अपनी मां के अलावा किसी और से नहीं करेंगी। इस मुद्दे पर वह चिकित्सक तक के पास जाने से कतराती हैं। लेकिन इसी समाज में एक ऐसी युवती है जिसने बीड़ा उठाया है कि वह समाज से इस भ्रांति को दूर करके रहेगी। यह लड़की है कि डाफी, मोहनसराय रोड, अमरा-खैरा चक की रहने वाली। इसने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सोशियोलॉजी से बीए ऑनर्स करने के बाद यहीं से जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में साल मास्टर्स डिग्री हासिल की। फिर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (नई दिल्ली) से मानवाधिकार में पीजी डिप्लोमा और इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली) से मानवाधिकार में सर्टिफिकेट कोर्स किया। ये हैं स्वाती सिंह। पत्रिका ने इनसे इनकी मुहिम के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने सिलसिलेवार अपने अभियान की जानकारी दी। बताया कि बात उन दिनों की है जब मैं बीएचयू में बीए कर रही थी। वहां लड़कियां पीरियड्स पर बात करने से कतराती थीं। फिर मैने सोचा कि जब यहां यह हाल है तो ग्रामीण युवतियों और महिलाओं का क्या हाल होगा। बस ये बात मन में घर कर गई और इस डर को, इस संकोच को, इस भ्रांति को दूर करने की ठान ली। बताती हैं कि दो साल हो गए और अब तक पंद्रह से अधिक गांव और सात सौ से अधिक महिलाओं, युवतियों को कर चुकी हैं जागरूक कर चुकी हूं। लेकिन अभी भी लगता है कि सफर काफी लंबा है।
स्वाती ने पत्रिका को बता कि अपने अभियान के लिए ‘मुहीम’ एक सार्थक प्रयास वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की। इसका उद्देश्य महिला और जेंडर विषयक मुद्दों पर काम करना था। 23 साल की उम्र में फरवरी 2017 में इस सोसाइटी की शुरुआत की। उसके बाद लगातार महिला व जेंडर विषयक मुद्दों पर सक्रिय लेखन से जुड़ी रहीं। शुरूआती दौर से मुहीम ने अलग-अलग विषयों पर अभियान चलाए, जैसे- किशोरियों की आत्मसुरक्षा प्रशिक्षण के लिए ‘गर्ल्स फॉर चेंज’, वाराणसी में अलग-अलग क्षेत्र में अपना अद्भुत योगदान देने वाली महिलाओं का सम्मान समारोह, रक्षाबंधन में समानता को बढ़ावा देने के दृष्टीकोण से ‘साथ बढ़ते है’ नाम से ऑनलाइन अभियान, दिल्ली से शुरू हुए अभियान ‘मेरी रात मेरी सड़क’ के तहत बनारस में जनमार्च का आयोजन। हाल ही में बच्चों के साथ बढ़ी यौन-हिंसा की घटनाओं के खिलाफ ‘बचपन बचाओ’ नाम के अभियान की शुरुआत की गई। पर मुहीम के ज़रिए स्वाती ने वाराणसी के ग्रामीण इलाके के उस मुद्दे पर काम शुरू किया है जिन पर यहां के समाज में बात करना भी वर्जित माना जाता है, यानी कि मासिकधर्म, जिसके अभियान का नाम ‘पीरियड अलर्ट’ रखा गया है। यह मुहीम का मुख्य काम है या यों कहें कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर मुहीम की टीम लगातार काम कर रही है।
मुहीम की टीम
स्वाती ने बताया कि मुहीम की टीम में कुल सात सदस्य (स्वाती सिंह और सविता उपाध्याय (जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट), रामकिंकर कुमार और आशुतोष कुमार (लॉ फैकल्टी), अंजनी कुमार (जियोग्राफी डिपार्टमेंट – रिसर्च स्कॉलर), देवेश रंजन (फिलोसोफी – रिसर्च स्कॉलर), गौरव पाण्डेय ( पॉलिटिकल साइंस – रिसर्च स्कॉलर) है। ये सभी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी हैं। इनमें से कुछ यहां के पूर्व छात्र रहे है और कुछ वर्तमान समय में यहां शोधकार्य कर रहे हैं।
मुहीम का अभियान ‘पीरियड अलर्ट’
वह बताती है कि आज हम उस दौर में जी रहे है जहां सेनेटरी पैड पर टैक्स लगने पर मेट्रो शहरों में महिलाएं तमाम तरह से अपना विरोध-प्रदर्शन करती है। पर दुर्भाग्यवश ग्रामीण इलाकों में ये तस्वीर पूरी तरह से उलटी है यहां सेनेटरी पैड पर टैक्स क्या मासिकधर्म पर बात नहीं की जाती है। महिला स्वास्थ्य और पितृसत्ता के तहत महिलाओं को उनके तन के भूगोल से ऊपर उठाने की दिशा में मुहीम की तरफ से ‘पीरियड अलर्ट’ नामक अभियान की शुरुआत की गई है। मुहीम की तरफ से मासिकधर्म संबंधित स्वास्थ्य एवं स्वच्छता संबंधित पहलुओं से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को जागरूक करने का काम किया जाता है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य में ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और किशोरियों के बीच मासिकधर्म जैसे विषय जिन्हें आमतौर पर ‘गंदा’ समझकर अक्सर छिपाया जाता है और इनपर बात नहीं की जाती है, इन धारणाओं को तोड़ते हुए इस विषय पर स्वस्थ्य बातचीत के प्रचलन को बढ़ावा देते हुए मासिकधर्म से जुड़ी तमाम दकियानूसी बातों का खंडन करना और स्वस्थ्य समाज की स्थापना करना है।
कार्यक्षेत्र
इस कार्यक्रम के तहत बनारस जिले के आसपास के करीब 30 गांवों में काम चल रहा है। इसमें काशी विद्यापीठ ब्लाक में देलहना, बंदेपुर, बच्छांव, खनाव, बेटावर, रामपुर, लठिया, खुशीपुर, कादेपुर, मडाव, नगऊर, खुलहसपुर, परमंदापुर, केशरीपुर, हरपालपुर, हरिहरपुर, परियतपुर, निषेपुर, माधवपुर और चितौमनीपुर। वहीं आराजी ब्लाक के वीरभानपुर, हरसोस, असवारी, भीखमपुर, चंदापुर, खेवली, बेनीपुर, भटपुरवा और नागेपुर में महिलाओं और किशोरियों को मासिकधर्म के बारे में जागरूक किया जा रहा है।
ऐसे चलता है जागरूकता अभियान
मासिकधर्म पर मुहीम के इस कार्यक्रम को ‘पीरियड अलर्ट’ नाम दिया गया है जिसके तहत अलग-अलग माध्यमों के ज़रिए महिलाओं और किशोरियों को उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जाता है। वह बताती है कि मुहीम का विश्वास है कि मासिकधर्म एक ऐसा विषय है जिसपर हमारे समाज खासकर ग्रामीण इलाकों में बातचीत नहीं की जाती है, जो सीधे तौर पर मासिकधर्म से जुड़े मिथ्यों और बिमारियों को बढ़ावा देता है। इसे शुरू से ही शर्म का विषय माना गया है जिसका नतीजा यह हुआ कि महिलाएं खुद आपस में इस विषय पर खुलकर बात करने से कतराती है, इसलिए मुहीम ने अपने कार्यक्रम के तहत महिलाओं को अपनी बात सुनाने की बजाए पहले चरण में उनसे बातचीत को प्राथमिकता दी है। इस बातचीत के ज़रिए महिलाएं और किशोरियां आने विचार व समस्याएं खुलकर समाने रखती है, जिनके आधार पर उनके साथ सक्रिय बातचीत स्थापित कर उन्हें मासिकधर्म से जुड़ी ज़रूरी बातों के बारे में बताया जाता है। इस बातचीत में महिलाओं के साथ मासिकधर्म से जुड़ी स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रचलित मिथ्यों को दूर करने की दिशा में जानकारी दी जाती है।
किशोरियों को दिया जा रहा स्वस्थ्य पन्ना
मासिकधर्म के इस कार्यक्रम के तहत बातचीत के बाद महिलाओं और किशोरियों में नि:शुल्क ‘स्वस्थ्य पन्ना’ का वितरण किया जाता है। कागज के एक पन्ने में मासिकधर्म के स्वास्थ्य जुड़ी ज़रूरी बातों को प्रश्न-उत्तर के ज़रिए सरल भाषा में तैयार किया गया है। इसमें मासिकधर्म के दौरान खानपान, शारीरिक समस्याओं और उनके घरेलू उपचार, स्वच्छता संबंधित ज़रूरी पहलू और गंभीर बीमारियों के साथ-साथ किन परिस्थितियों में डॉक्टर से मिलना ज़रूरी है। इन सभी बातों को शामिल किया गया है। अक्सर ऐसा होता है कि हमारे पास चाहे जितनी भी जानकारी हो पर अगर किसी विषय पर बात करना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है तो ऐसे में कैसे किसी के साथ बातचीत शुरू की जाए ये एक बड़ा प्रश्न बन जाता है। मासिकधर्म के लिए मुहीम की तरफ से तैयार किए गए इस कार्यक्रम में इसी पहलू को ध्यान में रखकर पीरियड अलर्ट वाला यह ‘स्वस्थ पन्ना’ तैयार किया गया है, जो स्कूल-कॉलेज जाने वाली महिलाओं और किशोरियों में मासिकधर्म पर बातचीत करने और जानकारियों के आदान-प्रदान का एक मजबूत आधार बने। ग्रामीण इलाकों में मासिकधर्म को ‘महीना’ भी कहा जाता है। समाज में ‘महीने’ को हमेशा से गंदा बताकर ढका-तोपा गया है जिसके दम पर तमाम तरह की शारीरिक-मानसिक से लेकर सांस्कृतिक समस्याओं ने अपनी पैठ जमा ली है। इस पैठ को तोड़ने की दिशा में मुहीम की तरफ से महिलाओं और किशोरियों के साथ ‘मासिकधर्म’ के विषय पर कला-प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस प्रतियोगिता में प्रतिभागी मासिकधर्म से जुड़े अपने अनुभव, विचार और सुझाव कलात्मक तरीके से साझा करती है और अच्छे-प्रभावी संदेशों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जाता है।
किशोरियों को बता रहीं कैसे बनाएं सेनेटरी पैड
पीरियड अलर्ट कार्यक्रम के ज़रिए किशोरियों और महिलाओं को न केवल मासिकधर्म के प्रति जागरूक किया जाता है बल्कि इसके साथ ही, उन्हें खुद सेनेटरी पैड बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस सेनेटरी पैड को ‘अपना पैड’ नाम दिया गया है। इस प्रशिक्षण में महिलाओं को घर के पुराने सूती कपड़े को अच्छी तरह साफ़ करके पैड बनाने का की तकनीक सिखाई जाती है जो न केवल सस्ती बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उनके लिए अच्छी साबित हो रही है।
कपड़ा दान ‘पैडदान’
कई जगहों पर सिलाई करने वाली महिलाओं ने इसे कुटीर-उद्योग के तौर पर अपनाना शुरू किया है, जिन्हें प्रोत्साहन देने के लिए मुहीम की तरफ से उन्हें सिलाई के लिए कपड़े और ज़रूरी सामान उपलब्ध करवाया जा रहा है। मुहीम सूती कपड़े से बने सेनेटरी के लिए लोगों से कपड़े दान करवाता है जिसे इन्होंने कपड़ा दान ‘पैडदान’ नाम दिया है। लोगों से यह अपील की जाती है कि वे अपने घर के पुराने सूती कपड़े, चादर और तौलिए को अच्छी तरह साफ़ करके उन्हें दान करें। इसके बाद इन कपड़ों को स्वच्छता की दृष्टिकोण से अच्छी तरह दुबारा साफ़ करके सेनेटरी पैड बनाने के लिए महिलाओं को उपलब्ध करवाया जाता है।
सम्मान
मुहीम के ज़रिए स्वाती सिंह (संस्थापिका एवं अध्यक्ष) को मासिकधर्म पर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए उत्तर प्रदेश कन्या शिक्षा एवं महिला कल्याण तथा सुरक्षा (अगस्त, 2017) की तरफ से आयोजित सम्मान समारोह में उन्हें अनवरत अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही, पीरियड अलर्ट कार्यक्रम के लिए स्वाती को काकासाहेब कालेलकर समाज सेवा सम्मान (2017) से भी सम्मानित किया जा चुका है।
इनके लिए भी जुड़ी हैं स्वाती
स्वाती के अभियान में उन बच्चों को सही रास्ता दिखाना है जो हाई स्कूल पास करने के बाद कुछ समझ नहीं पाते कि अब आगे क्या करें। दसवीं के बाद कौन सा विषय चुनें? बारहवीं के बाद वे किस कोर्स में एडमिशन लें और किसी कोर्स के क्या-क्या स्कोप है? ये सभी ऐसे सवाल है जो कि शिक्षा के क्षेत्र में युवाओ के आगे बढ़ने में रोड़ा बनते हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आज भी सूचना के साधन और जागरूकता का अभाव है, ऐसे में उनकी समस्याओं को दूर करने का एक ही तरीका है, उन्हें जागरूक करना। इसी तर्ज पर बनारस के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदर्श ग्राम नागेपुर में युवाओं के साथ मुहीम संस्था की तरफ से करियर काउंसलिंग की कार्यशाला की शुरुआत भी की गई है। इस कार्यशाला में किशोर-किशोरियों को आगे की पढ़ाई के लिए विषय-चुनने की विधि, अलग-अलग विषय और उनके स्कोप, प्रमुख शिक्षण-संस्थान और प्रमुख पेशे (जैसे डॉक्टर, इंजीनियर व आईएएस) की पढ़ाई करने की पूरी जानकारी दी जाती है। अलग-अलग विषय और उनके स्कोप की जानकारी, प्रमुख शिक्षण-संस्थान और प्रमुख पेशे संबंधित ज़रूरी जानकारियां बच्चों से साझा की जाती है। कार्यशाला के अंतर्गत युवाओं को प्रेरणादायक व मेहनत करने का सकारात्मक संदेश देनी वाली डॉक्यूमेंट्री ‘रद्दी’ और उसेन बोल्ट (धावक), डॉ एपीजे अब्दुल कलाम , आईएएस ऑफिसर (गोविन्द जायसवाल), व नवाजुद्दीन सिद्धकी (अभिनेता) जैसे अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी शख्सियतों की संघर्षगाथा पर केंद्रित प्रेरणादायक डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है। कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में स्वाती ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर युवा शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्ध अवसर व जरूरी जानकारी के अभाव में पीछे रह जाते है, जिसके लिए सिर्फ सूचना नहीं बल्कि कार्यशाला की ज़रूरत है।