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गुप्त काल से है काशी में मंदिर स्थापत्य की परम्परा

बनारस का जीवन दर्शन है यहां की चित्रकला में।

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काशी कथा की कार्य़शाला

काशी कथा की कार्य़शाला

वाराणसी. किसी भी भाव आस्था की मूरत की अभिव्यक्ति ही कला है। मंदिर और मूर्ति स्थूल नही होते बल्कि भाव का स्वरूप होते हैं। इनकी सार्थकता तभी है जब वो समाज को मय से पर की ओर ले जाता है। काशी में सामर्थ्य के आधार पर छोटे बड़े मंदिर घर-घर मे हैं। मंदिरों में देवस्वरूप के चिंतन की परिकल्पना होती है। मंदिर स्थापत्य में शिखर अनेकता में एकता का प्रतीक है। काशी एक ऐसा शहर है जिसका ऋण चुकाना हम सभी का धर्म है। ये कहना है प्रो मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी का। वह काशीकथा की ओर से काशी पर आयोजित कार्यशाला के सातवें दिन के पहले सत्र में "काशी के मंदिर और स्थापत्य कला" विषयक व्याख्यान दे रहे थे।

प्रो तिवारी ने कहा कि काशी में मंदिर स्थापत्य का प्रारम्भ गुप्त काल से प्रारम्भ हुआ उसके पूर्व मौर्य काल मे स्तूप बनाने के प्रमाण मिलते हैं। कन्दवा में काशी का सबसे प्राचीन मंदिर 'कर्दमेश्वर' जिसे 12 वीं सदी में गहड़वाल शासकों ने बनवाया। वहां गुप्त काल की एक मूर्ति प्राप्त हुई है जो इसका प्रमाण है। साथ ही निर्माण के आधार पर यथा सर्वतोभद्र (गुरुधाम मंदिर, नेपाली मंदिर, रामनगर दुर्गा मंदिर) नागर शैली और पंचायतन मंदिर (सारनाथ, पार्श्वनाथ जैन मंदिर आदि) मंदिरो की व्याख्या को प्रस्तुत किया।

कार्यशाला के दूसरे सत्र में " काशी की भित्ति चित्रकला" पर व्याख्यान देते हुए प्रो कमल गिरी ने कहा कि काशी में भित्ति कला की परंपरा 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ से हुई हैं। इनके रंग,रूप, विषय और शैली में अंतर आता रहा लेकिन परम्परा अब भी विद्यमान है। काशी की लोककला में अगर भित्तियों पर बने चित्र, लकड़ी के खिलौने, मिट्टी के खिलौने आदि को देखें तो बिना किसी संदेह के ही समझ सकता है कि संबंधित चित्र किस विचारधारा, धर्म या संस्कृति से सम्बंधित है। इन भित्ति चित्रों से दिखता है कि कैसे एक बिना पढा व्यक्ति भी प्रतिमा शास्त्र के गूढ़ पक्षों को जानता है। यह ज्ञान इन कलाकारों को वंशानुगत रूप से परम्परा में प्राप्त होता है। प्राकृतिक रंगों से बने इन भित्ति चित्रों में पौराणिक कथाओं, ऋषि मुनियों की तपस्या, दिन प्रतिदिन के क्रिया कलाप और विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों का अंकन भी होता है। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि ऐसे महत्वपूर्ण धरोहरों को बचाने के लिए कोई प्रयास नही किए जा रहे हैं। साथ ही विभिन्न स्लाइड्स के आधार पर काशी के मंदिरों, मठों और रईसों के मकानों पर बने चित्रों को दिखाया गया और उनकी विशद व्याख्या की गई।

इस मौके पर मुख्य रूप से डॉ अवधेश दीक्षित, आचार्य योगेंद्र, बलराम यादव, अरविंद मिश्र, गोपेश पांडेय, दीपक तिवारी उपेन्द्र दीक्षित, विकास गुप्ता,गौतम, संजय ,दीप्ति, रिंकू भारती, जयप्रकाश सिंह, श्रद्धा सिंह, अक्षरा नाथ, विशाखा, गरिमा, प्रीति यादव, संतोष कुमार मिश्र, गोविंदा मालिक आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो एस एन उपाध्याय ने की जबकि संचालन डॉ सुजीत चौबे ने किया। डॉ विकास सिंह ने आभार जताया।