
अद्भुत एक अरघे में दो शिवलिंग- सारंगनाथ और शोभनाथ महादेव का दिव्य शृंगार (फाइल फोट)
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। बात काशी की हो तो सावन और भगवान शिव की महत्ता कुछ अलग ही नजर आती है। काशी में कदम-कदम पर शिवलिंग और हर गली में एक शिवालय है। मगर धर्मग्रंथों में लिखित कथाओं के अनुसार सावन के महीने में बाबा विश्वनाथ अपनी काशी को छोड़ सारनाथ चले जाते है और वहीं पत्नी देवी सती (पार्वती) संग महीने भर रहते हैं। सबसे अनोखी बात ये कि सारंगनाथ मंदिर में एक ही अरघे में दो-दो शिवलिंग हैं। हर नवागंतुक के लिए ये हैरान करने वाला होता है। लेकिन ये हकीकत है। दरअसल इस अरघे में सारंग ऋषि के साथ शोभनाथ महादेव का शिवलिंग है जिसकी स्थापना 27 हजार साल पूर्व आदि शकराचार्य ने की थी।
सावन में सारनाथ जाने के पीछे ये है कारण
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव के साथ हो गया। उस समय सती के भाई सारंग ऋषि हिमालय पर तपस्यारत थे जब वह तपस्या पूर्ण कर अपने घर आए तो सभी लोगो ने उनका स्वागत किया। वहां सती नहीं दिखी तब उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष से सती के बारे में पूछा तो बताया गया कि उनकी शादी शिव के साथ हो गई वो काशी में है। इस पर सारंग ऋषि बहुत क्रोधित हुए कि राजयोग में रहने वाली मेरी बहन की शादी दिगंबर के साथ कैसे हो गई। राजमहल में रहने वाली कैसे शिव के साथ अपना जीवन यापन करेंगी जिसके बदन पर एक वस्त्र भी नहीं। सांप बिछु लिए घूमता है उसके साथ राजकन्या की शादी कैसे हुई। किसी तरह ऋषि महात्माओं ने मनाया की विधि का विधान था जो होना है अब हो चुका तब मामला किसी तरह शांत हुआ।
काशी के वैभव को देख चकित हुए सारंग ऋषि
कुछ समय पश्चात सारंग ऋषि दर्जन भर खच्चरों पर सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात लेकर अपनी बहन से मिलने के लिए काशी के लिए निकल पड़े। उसका आशय था कि शिव तो दिगम्बर है बहन का पालन पोषण कैसे होगा ? इसी आसय के साथ निकले लेकिन जब वह काशी के समीप आए तो उस समय शिव ध्यानरत थे। उन्होंने देखा कि सारंग ऋषि आ रहे हैं। उनके मन के भाव को उन्होंने पढा। शाम होने के पश्चात जब शिव-सती से मिले तो जिज्ञासावश सती से पूछे कि सारंग ऋषि आए है। सती ने कहा कि नही, तब वह कौतूहल से भर गए कि अभी तक क्यो नही आए। ध्यान लगाके देखा तो सारंग ऋषि वरुणा तट के समीप एक टीले पर बैठकर तपस्या कर रहे है। इस पर शिव ने सती से कहा कि आपके भाई तपस्या कर रहे हैं। सती ने मिलने की जिज्ञासा जाहिर की तो शिव व सती दोनो टीले पर आए तो देखा की सारंग ऋषि तपस्या कर रहे है। शिव बोले कि सारंग उठो, सारंग ध्यान से उठो लेकिन कोई प्रतिक्रिया नही हुई तो शिव ने दिव्यदृष्टि के माध्यम से अपने साथ सती को दिखाया तो सारंग ऋषि भाव विह्वल होकर शिव के चरण में गिर पड़े। बोले कि प्रभु माफ करिए मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गई। शिव ने कहा कि मैं आपके मन के भाव को काशी के समीप आने से पहले ही जान चुका था। तब सारंग ऋषि नतमस्तक हो गए तो शिव ने पूछा कि आप घर (काशी) क्यो नही आए तो सारंग ऋषि ने बताया कि जब मैं काशी के समीप आया तो देखा कि पूरी काशी आपकी सोने की दिखाई देने लगी। तब मैं अपने किए पर बहुत पश्चाताप किया और उससे मुक्ति के लिये मैं यहां इस टीले पर तपस्यारत हो गया। मुझे छमा करे नाथ।
सारंग ऋषि से किए वायदे के तहत भगवान शिव महीने भर सारनाथ में बिताते हैं
किवदंतियों के अनुसार जब सारंग ऋषि काशी के समीप उक्त टीले के समीप पहुचे तो पूर्व से उत्तर वाहिनी गंगा में सूर्य के प्रकाश की जो किरणें पड़ रही थी वह सीधे घाटों पर बने मकानों पर पड़ने के कारण स्वर्ण सदृश्य चमकीले रंग के दिखाई देने लगीं तो सारंग ऋषि के मन मे भाव आया कि जिसकी काशी ही पूरी सोने की हो उसको इन हीरे जवाहरातों से क्या मतलब। इसी बात से उसका हृदय परिवर्तन हुआ और वह तपस्यारत हो गए। शिव से छमा याचना के बाद बहन से मिलकर अपने घर जाने की इच्छा जाहिर की तो शिव ने कहा कि आप काशी प्रवास पर मेरे साथ चलिए तो सारंग ऋषि ने कहा कि आपके रहते हुए मुझे वहां कौन पूछेगा, बस साले के नाम पर गाली ही मिलेगी। मैं वापस घर चला जाऊंगा। इस पर शिव ने कहा कि नही आपको कही नही जाना है। श्रावण मास में यहां एक महीने का मेला लगेगा जहां मैं स्वयं सती के साथ आपके पास विराजमान रहूंगा जिससे पूरा विश्व आपको जानेगा। आप सारंगनाथ महादेव के नाम से जाने जाएंगे। इतनी बात सुन कर सारंग ऋषि वहीं टीले पर स्वयं स्वयंभू हो गए। तब से उक्त स्थान का नाम सारंगनाथ महादेव के नाम से जाना जाने लगा जो सारनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसी कालखंड से श्रावण मास में एक महीने का मेला लगता है जहां लोगो की मान्यता है कि शिव (बाबा विश्वनाथ जी) सती के साथ पूरे एक मास तक यही विराजमान रहते है। तब से अनवरत श्रावण मास में मेला लगता है भक्तगण शिव की पूजा करते है।मेला लगता है।
शोभनाथ महादेव
वही एक ही अरघे में सारंगनाथ महादेव के साथ शोभनाथ महादेव भी विराजमान है जिनके बारे में बताया जाता है कि आज से लगभग 27 हजार साल पहले भगवान बुद्ध ने अपने पांच शिष्यों को उपदेश इसी सारनाथ में दिया जिसका बहुत तेज़ी से पूरे विश्व मे प्रचार-प्रसार हुआ। उस कालखंड में सनातन परंपरा की बहुत हानि हुई जिसको लेकर केरल में आदि शकराचार्य जी का प्रादुर्भाव हुआ और उनके द्वारा सारंगनाथ महादेव मंदिर प्रांगड़ में उसी अरघे में शोभनाथ महादेव के नाम से शिवलिंग स्थापित किया गया तब से सारंगनाथ महादेव के साथ शोभनाथ महादेव विराजमान है।
शिवकुंड का महात्म्य
सारंगनाथ महादेव शिवकुण्ड का महात्म्य है कि जिस किसी को चर्म रोग हुआ हो वह पांच रविवार या मंगलवार के दिन कुंड में स्नान करके बाबा के यहां गोंद चढ़ा दे तो उसका चर्म रोग खत्म हो जाता है। सारनाथ मार्ग का नाम ऋषिपत्तन मार्ग है।
सारंगनाथ में सावन की तैयारियां अंतिम दौर में
सावन में सारनाथ स्थित सारंगनाथ व शोभनाथ मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियो की सुविधा व सहूलियत के मद्देनजर नगर निगम ने साफ-सफाई के साथ ही पथ प्रकाश की व्यवस्था दुरुस्त कराना शुरू कर दिया है। श्रद्धालुओं के लिए पेयजल आदि का भी इंतजाम किया जा रहा है। वहीं सारंगनाथ मंदिर के समीप के शिव कुंड की भी सफाई कराई जा रही है। ग्रामीण पुलिस सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने में जुटी है।
Published on:
10 Jul 2022 03:30 pm
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