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जानिए कैसे शुरू हुआ था करवा चौथ, किसने की थी इस व्रत की शुरूआत

त्योहार सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत अपने पति की मंगलकामना दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए रखती हैं

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karwa chauth

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वाराणसी. प्यार और सुहाग का प्रतीक करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्व रखता है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को बिना अन्न, जल के करती हैं। इस साल यह त्योहार 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस बार करवाचौथ का यह त्योहार 70 साल बाद एक खास और शुभ संयोग लेकर आ रहा है। इस साल रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग बनने से करवा चौथ का फल बहुत ही लाभकारी और शुभ होगा। क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ का व्रत कब से मनाया जा रहा है और इसका इतिहास क्या है? इसका जवाब पौराणिक कथाओं से मिलता है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं की पत्नियों ने उनकी मंगलकामना और असुरों पर विजय प्राप्ति के लिए करवा चौथ जैसा व्रत रखा था। एक बार देवों और असुरों में संग्राम छिड़ गया। असुर देवताओं पर भारी पड़ रहे थे, देवताओं की शक्ति असुरों के सामने कम पड़ रही थी। असुरों को पराजित करने के लिए उनके पास कुछ उपाय नहीं सूझ रहा था। ऐसे में देवता गण ब्रह्मा जी के पास असुरों को हराने का उपाय जानने पहुंचे। ब्रह्मा जी को देवताओं की समस्या का ज्ञान पहले से ही था। उन्होंने देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि देवताओं की पत्नियों को अपने पतियों की मंगलकामना और असुरों पर विजय के लिए व्रत रखना चाहिए। इससे निश्चित ही देवताओं को विजय प्राप्त होगी।


ब्रह्म देव के बताए उपाय को ध्यान में रखकर देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा। उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि थी। सभी देवताओं की पत्नियों ने पूजा अर्चना की, अपने पतियों की मंगलकामना और युद्ध में विजय की प्रार्थना की। उनका व्रत सफल रहा। उस संग्राम में देवों ने असुरों को हरा दिया। जब इसकी खबर देवताओं की पत्नियों को हुई तो उन सभी ने रात्रि के समय जल ग्रहण करके अपना व्रत खोला। उस समय चांद आसमान में अपनी चांदनी बिखेर रहा था। व्रत खोलने के बाद सभी ने भोजन किया।


यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। य़ू तो करवाचौथ की बहुत सी पौराणिक कथा है पर इस व्रत की शुरुआत सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लाकर की थी। तभी से सभी सुहागिनें अन्न जल त्यागकर अपने पति के लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को श्रद्धा के साथ करती हैं।



व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो। सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।