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वाराणसी

भक्त और भगवान का ऐसा प्रेम कि अतिशय स्नान से भगवान जगन्नाथ हो जाएंगे बीमार

– 17 जून को अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में होगी भगवान का स्नान – मंदिर की छत पर भक्त कराएंगे गंगा स्नान-अत्याधिक स्नान से भगवा जगन्नाथ होंगे बीमार-15 दिन तक मंदिर का पट रहेगा बंद- 2017 साल की परंपरा

वाराणसीJun 14, 2019 / 02:23 pm

Ajay Chaturvedi

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. ये है भगवान और भक्त का प्रेम कि जगत के पालन हार भगवान जगन्नाथ को भक्त इतना नहला देंगे कि वह बीमार पड़ जाएंगे। बीमारी गंभीर होगी जिसके चलते 15 दिनों तक इलाज चलेगा। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद रहेंगे। पूजन-अर्चन भी नहीं होगा। बीमार भगवान को इलाज के तौर पर जड़ी-बूटी दी जाएगी। मेवा, मिश्री, तुलसी, लौंग, जायफर के औषधीय काढ़े का भोग भगवान को अर्पित किया जाएगा। औषधीय काढ़े के भोग से भगवान को स्वस्थ करने के जतन किए जाएंगे। भगवान के स्वस्थ होते ही निकलेगी भव्य पालकी यात्रा और आरंभ हो जाएगा काशी के प्रसिद्ध लक्खी मेलों में शुमार रथयात्रा मेला।
प्रभु के प्रति अटूट आस्था और विश्‍वास का ऐसा उदाहरण और कहीं नहीं मिलेगा कि भक्‍त अपने प्रभु को बीमार मानकर ए‍क नन्‍हे शिशु की तरह उनकी सेवा करेंगे। जड़ी-बूटियों का काढा पिलाया जाएगा। साथ ही दिया जाएगा मौसमी फल और परवल का जूस। यह प्रक्रिया 15 दिनों तक चलेगी। एक पखवारे के उपचार के बाद भगवान जगन्‍नाथ स्‍वस्‍थ होंगे तो बड़े भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा के साथ शहर की सैर पर निकलेंगे और पहुंचेंगे अपनी ससुराल।
मान्यता है कि ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से आसाढ मास की अमावस्‍या तक प्रभु को बीमार मानकर एक बालक की तरह उनकी सेवा की जाती है। इस दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और भगवान को सिर्फ काढ़े का ही भोग लगाया जाता है। पुराणों में बताया गया है कि राजा इंद्रदुयम्‍न अपने राज्‍य में भगवान की प्रतिमा बनवा रहे थे। उन्‍होंने देखा कि शिल्‍पकार उनकी प्रतिमा को बीच में ही अधूरा छोड़कर चले गए। यह देखकर राजा विलाप करने लगे। भगवान ने इंद्रदुयम्‍न को दर्शन देकर कहा, ‘विलाप न करो। मैंने नारद को वचन दिया था कि बालरूप में इसी आकार में पृथ्‍वीलोक पर विराजूंगा।’ उसके बाद भगवान ने राजा को ओदश दिया कि 108 घट के जल से मेरा अभिषेक किया जाए। कहा जाता है कि उस दिन ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा थी। तभी से यह मान्‍यता चली आ रही है। ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्‍या तक भगवान की बीमार शिशु के रूप में सेवा की जाती है।
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इस साल ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा 17 जून को पड़ रही है। उस दिन मंदिर की छत पर दिन के 12 बजे तक स्नान का कार्यक्रम चलेगा। फिर कपाट बंद कर दिए जाएंगे। दोपहर बाद तीन बजे फिर गंगा जल के अभिषेक के साथ बाबा के कपाट खुलेगा। रात 10 बजे के बाद तक भगवान जगन्नाथ को भक्त स्नान कराएंगे। अतिशय स्नान के चलते भगवान बीमार पड़ जाएंगे। रात को बाबा जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विग्रहों को छत से लाकर मंदिर में विराजमान कराया जाएगा। इसके बाद कपाट बंद कर दिए जाएंगे। मंदिर के पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि बीमारी के बाद भगवान जगन्नाथ को औषधीय काढ़े का भोग अर्पित किया जाएगा। 15 दिन तक काढ़ा पिलाया जाएगा। ये काढ़ा इलायची, लौंग, चंदन, काली मिर्च, जायफल और तुलसी को पीसकर बनाया जाता है। इसके साथ ही भगवान को इस मौसम में आ रहे फलों का भोग भी लगाते हैं, लेकिन उनके दर्शन बंद रहता हैं। उन्होंने बताया कि काशी में यह 2017 साल की परंपरा है।
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उन्होंने बताया कि 15 दिन के इलाज के बाद तीन जुलाई को भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होंगे। तो सुबह स्नानादि के बाद भव्य श्रृंगार होगा। परवल के जूस का भोग लगेगा। और भक्तों के दर्शन के लिए बाबा के कपाट खोल दिए जाएंगे। इसी दिन शाम को भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर सैर पर निकलेंगे। भक्तों के कांधे पर निकलने वाली पालकी यात्रा देर शाम तक रथयात्रा स्थित बेनी बाबू के बगीचा में पहुंचेगी। यह उनकी ससुराल मानी जाती है। यहां उनकी आरती उतारी जाएगी। फिर आधी रात के बाद रथयात्रा चौराहे पर पहले से विराजमान लकड़ी के 25 फीट ऊंचे विशाल रथ पर तीन विग्रह रखे जाएंगे और अगले दिन यानी चार जुलाई से काशी का प्रसिद्ध लक्खी मेले में शुमार रथयात्रा मेला शुरू होगा जो छह जुलाई तक चलेगा।

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