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महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती हुई पांच गुनी महंगी

इसी सावन से तुलना करें तो बढ़ गया 500 रुपये। जुलाई 2017 में पड़े सावन में सोमवार को मंगला आरती का टिकट था 1000 रुपये

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बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती का दृश्य

बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती का दृश्य

वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की मगंला आरती जिसका दर्शन तक वर्जित माना जाता है, उसका पूर्णतया व्यवसायीकरण कर दिया गया है। यह सब शुरू हुआ 1983 में गठित काशीविश्वनाथ मंदिर अधिनियम के तहत जब मंदिर के महंतों से सारा अधिकार छीन लिया गया। मंदिर के अधिग्रहण के पूर्व आस्तिक लोग बाबा की मंगला आरत के दर्शन से बचते थे। लेकिन इन 35 वर्षों में इस मंदिर का इस कदर व्यवसायीकरण हुआ कि अब आगामी 13 फरवरी को पड़ने वाली महाशिवरात्रि को मंगला आरती के दर्शन की कीमत 1500 रुपये कर दी गई है। अगर 25 जुलाई शुरू सावन को ही लें तो सावन के सोमवार को मंगला आरती के टिकट की कीमत 1000 रुपये थे जबकि पूरे सावन भर अन्य दिनों में मंगला आरती के टिकट की कीमत 500 रुपये थी जबकि आम दिनों में मगला आरती के टिकट की कीमत 300 रुपये ही होती है। लेकिन इस बार महाशिवरात्रि पर मंगला आरती देखने वालों को जेब ढीली करनी होगी। अगर केव पति-पत्नी ही मंगला आरती देखने जाएं तो उन्हें 3000 रुपये खर्च करने होंगे। यह निर्णय न्यास परिषद ने लिया है। हालांकि पिछले साल महाशिवरात्रि पर भी मंगला आरती के टिकट की कीतम 1500 रुपये ही थी।

अन्य अनुष्ठानों के शुक्ल भी निर्धारित

यही नहीं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से महाशिवरात्रि के विशेष अनुष्ठानों का भी शुल्क निर्धारित किया गया है। इसके तहत मध्याह्न भोग आरती का शुल्क 150 रुपये, रुद्राभिषेक यदि एक पुरोहित से कराते हैं तो 150 रुपये, पांच पुरोहित से 400 रुपये, 11 पुरोहितों से 700 रुपये, लघु रुद्र के लिए 1200 रुपये, महारुद्र के लिए 10 हजार रुपये और दुग्धाभिषेक के लिए 125 रुपये देने होंगे।

भोर में 3.30 बजे खुलेगा पट

महाशिवरात्रि के दिन मंगाल आरती तड़के 2.15 से 3.15 बजे तक होगी। इसके बाद 3.30 बजे कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। मध्याह्न आरती दोपहर 12 से 12.30 बजे तक होगी। उसके अलवा चारों प्रहर की आरती होगी। इसके अंतर्गत पहली आरती रात 11 बजे ससे 12.30 बजे तक, द्वितीय प्रहर की आरती रात 1.30 से 2.30 बजे तक, तृतीय प्रहर की आरती रात 3 बजे से 4.25 बजे तक और चतुर्थ प्रहर की आरती प्रातः 5 से 6.15 बजे तक होगी। प्रहर आरती के पूर्व आम दर्शनार्थियों का मंदिर में प्रवेश रोक दिया जाएगा।

दीक्षित मंत्रों से जगाया जाता रहा है बाबा को

मंगाल आरती के बाबत मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि चाहे कोई दिन विशेष हो या सामान्य दिन रात्रि में शयन आरती के बाद मंदिर का पट बंद हो जाता है। सामान्य तौर पर तड़के बाबा को दीक्षित मंत्रों से जगाया जाता है। इसे मंगल मंत्र कहते हैं। रात्रि विश्राम के पश्चात दीक्षित मंत्रों से उठाने के बाद शैय्या आदि हटा दिया जाता है। उसके बाद स्नानआदि (दैनिक कृत्य) की प्रक्रिया पूरी होती है। फिर चंदन का लेप और श्रृंगार किया जाता है। डॉ तिवारी ने कहा कि आम तौर पर यह प्रक्रिया ऐसी नहीं है जिसका दर्शन किया जाए। उन्होंने कहा आम आदमी के रोजाना सो कर उठने और स्नानादि के बाद की क्रिया क्या सार्वजनिक होती अगर नहीं तो बाबा की मंगला आरती ही क्यों। यह सब व्यवसायीकरण की देन है। जब तक महंत परिवार के पास सारी व्यवस्था थी हम लोग दीक्षित मंत्र से बाबा को जगाया करते थे, अब जाने क्या होता है। उन्होंने कहा कि मंदिर के अधिग्रहण और न्यास परिषद के गठन के बाद भी पूजा पद्धति में किसी को परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। अधिग्रहण से पूर्व जिस तरह से बाबा की पूजा-अर्चना, आरती आदि की जाती रही है उसमें किसी तरह का संशोधन नहीं किया जा सकता।

विश्वनाथ मंदिर का हो गया व्यवसायीकरण

पूर्व महंत ही नहीं मंदिर के पुराने अर्चकों तक कहते हैं कि बाबा की मंगला आरती हो या अन्य आरती उसके लिए टिकट लगाने का क्या मतलब। यह कोई मॉल है क्या, बाबा सबके लिए हैं। लेकिन यहां तो चाहे सावन का सोमवार हो या महाशिवरात्रि मंगला आरती पर ऊंचे दाम में टिकट बेचे जाते हैं लेकिन हकीकत यह कि मंदिर की सुरक्षा में जुटे प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी और उनका परिवार ही गर्भगृह को घेर लेता है। जो लोग टिकट लेते हैं उन्हें तो टीवी सेट के सामने बिठा दिया जाता है। वे कहते हैं कि बाबा को भी अब पूंजीपतियों का देवाता बना दिया गया है। इतना टिकट की ही इसलिए रखा जाता है कि आम आदमी पहुंच ही न पाए। अर्चक कहते हैं कि 1983 में जब मंदिर का अधिग्रहण हुआ उसके पहले मंगला आरती के लिए शुद्ध आस्तिक कभी नहीं आते थे। लोग इसे वर्जित मानते थे। हालांकि अब भी बाबा को जगाने और स्नानादि की प्रक्रिया के दौरान पट बंद ही रहता है।

दुनिया का इकलौता विश्वनाथ मंदिर जहां शक्ति के साथ विराजमान हैं शिव....


द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्वनाथ के दरबार म? शिवरात्रि रि पर आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। सावन भर इनके दर्शन-पूजन और अभिषेक के लिए देश ही नहीं दुनिया भर के लोग काशी आते हैं। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

''शिव सत्य है, शिव अनंत है,
शिव अनादि है, शिव भगवंत है,
शिव ओंकार है, शिव ब्रह्म है,
शिव शक्ति है, शिव भक्ति है,
आओ भगवान शिव का नमन करें,
उनका आशीर्वाद हम सब पर बना रहे।''

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी 11 खास बातें जो इसे दुनिया का अनोखा मंदिर बताती है...

1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।

2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।

3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।

5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र ? की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं, 1. शांति द्वार, 2. कला द्वार, 3. प्रतिष्ठा द्वार, 4. निवृत्ति द्वार, इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।

7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।

8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।

9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।

11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।