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Muharram 2021: मुहर्रम का इतिहास, जानिये क्या हुआ था नवीं और 10वें मुहर्रम को, क्यों मनाया जाता है आशूरा का गम

Muharram 2021: 10वीं मुहर्रम यानि आशूरा के दिन ही हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को कर्बला में शहीद कर दिया गया था।

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मुहर्रम का इतिहास

लखनऊ. Muharram 2021: मुहर्रम इस्लामिक साल का पहला महीना है। इसे इस्लामिक नया साल यानि हिजरी भी कहा जाता है, हालांकि मुहर्रम को कर्बला की जंग और इमाम हुसैन की शहादत की वजह से ज्यादा याद किया जाता है। इसी महीने में पैगंबर ए इस्लाम के नवासे (नाती) इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने कर्बला (अब ईराक का शहर) में यजीद की फौजों से लड़ते हुए इस्लाम और इंसानियत के लिये शहीद हो गए थे। ये वाकया आशूरा (10वीं मुहर्रम) को हआ था। आशूरा को उन्हीं की शहादत को याद किया जाता है। बहुत से मुसलमान इस दिन रोजा रखते हैं और गरीबों की मदद आदि सवाब (पुण्य) का काम करते हैं। शिया समुदाय इमाम हुसैन का गम मनाता है। मातम होता है, जिसमें छोटे से बच्चे से लेकर बूढ़े तक शामिल होते हैं। मातम के लिये धारदार हथियारों का भी प्रयोग करते हैं।


Muharram Meaning

मुहर्रम का अर्थ

मुहर्रम (Muharram) इस्लामिक महीने (Islamic Month)का नाम है। मुहर्रम का शब्दिक अर्थ है हुरमत वाला महीना यानि के इज्जत वाला महीना। इसका पूरा नाम मुहर्रम उलहराम (Muharram ul haram) है। Aहराम अरबी के शब्द हुरमत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है इज्जत सम्मान।


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आशूरा क्या है

आशूरा अरबी का शब्द है। आशूरा का अर्थ (Ashura Meaning) होता है 10। दसवीं मुहर्रम (10th Muharram) को आशूरा कहते हैं। इसी दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी।


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मुहर्रम का इतिहासः एक से लेकर 10वीं मुहर्रम तक क्या हुआ था

हजरत इमाम हुसैन पैंगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नाती और हजरत अली (Hazrat ali) के बेटे थे। यजीद का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। काशी विद्यापीठ की पूर्व हेड ऑफ डिपार्टमेंट उर्दू और मुहर्रम के इतिहास की जानकार डाॅ. शाहीना रिजवी (Dr Shahina Rizvi) बताती हैं कि इमाम हुसैन (Imam Husain) अपने खानदान के लोगों समेत 72 साथियों के साथ हज के लिये मक्का गए थे। वहां पहुंचने पर पाया वहां के हालात ठीक नहीं हैं। उस पवित्र जगह पर खून खराबा न हो इसलिय वो पलट गए और लौट कर ईराक (Iraq) की ओर जा रहे थे। इसके बाद उनका काफिला कर्बला (Karbala) के पास पहुंचा जहां यजीदी (Yazeed) फौजों ने उन्हें घेर लिया।


What is Karbala

इमाम हुसैन का काफिला मुहर्रम की दूसरी तारीख को कर्बला पहुंचा था। वहां पहुंचते ही यजीद की फौजों का घेरा पड़ गया। हुसैन का इरादा जंग का नहीं था। पर यजीद की फौजें मनमानी कर रही थीं। यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन उसके हाथ पर बैयत कर लें। बैयत का अर्थ होता है अपनी मर्जी को दूसरों के हाथ पर रख देना। पर इमाम हुसैन ने यजीद को साफ कह दिया कि तुम सही हुक्मरान नहीं हो। और बैयत से इनकार कर दिया।


10th Muharram

यजीद ने अपनी बात मनवाने के लिये काफी जोर दिया पर इमाम हुसैन झुकने काे तैयार नहीं थे। आखिरकार यजीदी फौज को महसूस हो गया कि ये बैयत नहीं करेंगे। इसके बाद वो जंग पर उतारू हो गए। इस बीच छठीं मुहर्रम को हुसैन के खेमे का पानी खत्म हो गया। सातवीं मुहर्रम को यजीद ने वहां एकमात्र पानी के स्रोत नहर ए फरात (फरात की नहर) (Farat) से पानी लेने पर पाबंदी लगा दी। 6 और 7 मुहर्रम ही खाना-पानी खत्म हो गया। इस पर भी हुसैन ने जंग की पहल नहीं की। इमाम हुसैन शहीद हो गए। एक-एक सभी 72 साथियों की शहादत हो गई। कहा जाता हे कि 72 साथियों के सरों को नेजे (भाला) पर रखकर शहरों में घुमाया भी गया।