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Muharram 2021: जब मुहर्रम के जुलूस में शहनाई से आंसुओं का नजराना पेश करते थे भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

Muharram 2021: मुहर्रम की आठवीं तारीख को उठने वाले जुलूस में उस्ताद बिस्मिल्लाह खांन खड़े होकर शहनाई बजाते थे। जब तक जिंदा रहे परंपरा कायम रखी, उनके बाद उनके बेटों ने भी इसका निर्वहन किया, अब भी इस परंपरा को जिंदा रखा गया है।

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bismillah khan shanai on muharram

वाराणसी. Muharram 2021: बनारस का मुहर्रम अपनी अलग पहचान रखता है। विश्व का सबसे लंबा मुहर्रम का जुलूस बनारस (वाराणसी) में ही निकलता है। इसके अलावा इसकी एक और बड़ी खासियत रही है कि शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्दात बिस्मिल्लाह खान मुहर्रम पर जुलूस के आगे-आगे शहनाई बजाते चलते थे। उनकी शहनाई से सोज की एेसी धुन निकलती थी जो गम का आलम दो गुना कर देती थी। वो खड़े होकर शहनाई बजाते थे। दावा तो यहां तक किया जाता है कि मुहर्रम के जुलूस में शहनाई की परंपरा उन्होंने ही डाली।


Bismillah Khan was Played Shehnai on 8th Muharram

आठवीं मुहर्रम को शहनाई बजाते थे बिस्मिल्लाह खां

वाराणसी में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां (Ustad Bismillah Khan) मुहर्रम (Muharram) पर आंसुओं का नज़राना अपनी ग़मज़दा शहनाई से दिया करते थे। जिसे सुनने के लिए देश और विदेश से लोग आते थे। आठवीं मुहर्रम (8TH Muharram) को दालमंडी से निकलने वाले जुलूस में बिस्मिल्लाह खां खड़े होकर शहनाई (Shahnai) बजाते थे। वहां से दरगाह ए फातमान तक जाते थे और फातमान में भी शहनाई से आंसुओं का नजराना पेश करते थे। वह करीब आठ किलोमीटर दूर तक आंखों में आंसू और सीने में इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों का गम लिये शहनाई पर नौहा बजाते चलते थे।


muharram ka noha

शहनाई पर नौहा की धुन बजाते थे

बिस्मिल्लाह खां शहनाई पर कुछ खास नोहे की धुन बजाते थे। उनमें से एक था 'मारा गया है तीर से बच्चा रबाब का, बच्चा भी वो जो पार ए दिल था रबाब का' व 'रो रो कहती है थी जहरा की जाई, घर चलो करबला वाले भाई’ और 'परदेस में बहन को चले किस पे छोड़कर, भैया हुसैन जाते हो क्यों मुंह को मोड़कर’ आदि कुछ खास नौहे थे जिन्हें वह आठवीं मुहर्रम को शहनाई पर बजाया करते थे।


Muharram Juloos

250 साल पुराना है जुलूस

मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्लाह खान जिस जुलूस के साथ शहनाई बजाते थे। उसका इतिहास भी 250 साल पुराना बतायया जाता है। जुलूस के वर्तमान आयोजक सैय्यद मुनाजिर हसन मंजू ने बताया कि आठवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास की याद में बनारस के दालमंडी में चाहमहमा इलाके स्थित ख्वाजा नब्बू के इमामबाड़े से निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि अलम और तुर्बत के जुलूस की परम्परा 250 सौ साल पुरानी है।


परंपरा को कायम रखने की कोशिश

आठवीं मुहर्रम को उस्ताद बिस्मिल्लाह खां द्वारा शुरू की शहनाई बजाने की परंपरा को कायम रखने की कोशिश हो रही है। इस बार भी शहनाई वादक फतेह अली खां ने भी इस परम्परा का निर्वहन करते हुए शहनाई बजाई। आठवीं मुहर्रम का जुलूस कोरोना के चलते नहीं निकाला गया था।