वाराणसी

Muharram 2021: मुहर्रम पर पढ़े जाने वाले ये हैं 10 मर्सिया और नौहा

Muharram 2021: इमाम हुसैन (Imam Husain) के गम में मातम करने के साथ ही मर्सिया (Marsiya) और नौहा (Noha) पढ़ा जाता है इनमें इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला (Karbala) की घटना का वर्णन होता है।

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मुहर्रम मर्सिया

वाराणसी. Muharram 2021: 10वीं मुहर्रम यानि आशूरा (Ashura) के दिन ही हजरत इमाम हुसैन (Imam Husain) की कर्बला में शहादत हुई थी। इमाम हुसैन के साथ उनके 72 साथियों को भी शहीद कर दिया गया था। मुहर्रम के दौरान मुस्लिम नौहा और मर्सिया पढ़ते हैं जिनमें इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला के वाकये (घटना) का बयान होता है। नौहा और मर्सिया शिया समुदाय (Shia Community) के लोग मातम के साथ पढ़ते हैं।

What is Marsiya
क्या होता है 'मर्सिया'

'मर्सिया' (Marsiya) अरबी के शब्द 'रसा' से बना है। रसा का अर्थ होता है रुलाना। मर्सिया का अर्थ होता है किसी मरने वाले पर अफसोस करना। अरब में इस्लाम के आने से पहले से काव्य की दो विद्याएं थीं। पहला 'मर्सिया' और दूसरा 'कसीदा'। 'कसीदा' (Qaseeda) अरबी के शब्द 'कस्द' से बना है जिसका अर्थ होता है 'इरादा करना'। कसीदा यानि किसी की तारीफ करना। मर्सिया मरने वाले पर अफसोस के लिये होता है। मर्सिया सिर्फ इमाम हुसैन का नहीं होता, यह किसी का भी लिखा जा सकता है।

Top Marsiya aur Noha
मीर अनीस और मिर्जा दबीर के मर्सिये सबसे मशहूर

मुहर्रम का मसीहा (Muharram Marsiya) मातम के साथ पढ़ा जाता है। पक्की राग या जोगिया राग पर मुहर्रम के सोज लिखे जाते थे। उर्दू में मीर अनीस (मीर बाबर अली अनीस) और मिर्जा दबीर (मिर्जा सलामत अली दबीर) मर्सिया के सबसे बड़े शायर गुजरे हैं। दोनों ही लखनऊ (Lucknow) के थे। इनके मर्सिये हिन्दुस्तान ही नहीं पाकिस्तान, बंग्लादेश और जहां उर्दू बोलने समझने वाले मुहर्रम मनाते हैं वहां पढ़े जाते हैं।

popular Marsiya Nauha
ये हैं 10 मशहूर नौहे और मर्सिया


आज शब्बीर पे क्या आलम ए तन्हाई है

जुल्म की चांद पे जहरा की घटा छाई है

उस तरफ लश्करे आदाम ए सफआराई है

यां न बेटा न भतीजा न कोई भाई है

बरछियां खाते चले जाते हैं तलवारों में

मार लो प्यासे को है शोर सितमगारों में

मीर अनीस


खयाले कर्बला है और मैं हूं

बहिश्ते जां फिजां है और मै हूं

न पहुंचा कर्बला में क्यों दमे हश्र

ये वक्ते ना रसा है और मैं हूं

मिर्जा दबीर


मारा गया है तीर से बच्चा रबाब का

बच्चा भी वो जो पार ए दिल था रबाब का


रो रो कहती है थी जहरा की जाई

घर चलो करबला वाले भाई

तुमने जंगल में बस्ती बसाई

घर चलो कर्बला वाले भाई

(नोट उपरोक्त दोनों नौहे बिस्मिल्लाह खां शहनाई पर बजाया करते थे।)


शब्बीर चल के शाने अलमदार देख लो

भाई का चलके आखिरी दीदार देख लो


क्या क्या सितम हुसैन के दिल पर गुजर गए

अकबर गुजर गए अली असगर गुजर गए


ज़मीं कर्बला की सजाई गई है

ये जंगल में बस्ती बसाहैई गई है


सुगरा ने मदीने से लिखा नामे के अंदर, भैया अली असगर

क्या भूल गए तुम हमें परदेस में जाकर, भैया अली असगर


शब्बीर तेरी मजलूमी पर हर अपना परायाहै रोता है

हर आंख से आंसू बहते हैं हर कल्ब में मातम होता है


कितना बुलन्द तेरा मुकद्दर है करबला

कतरे की क्या बिसात समंदर अगर न हो

दुनिया है एक कतरा समंदर है करबला

Updated on:
20 Aug 2021 09:10 am
Published on:
20 Aug 2021 06:29 am
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