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Mukhtar Ansari Died: मुख्‍तार अंसारी का रूंगटा अपहरण कांड, हिल गई था आरएसएस, कांप गई थी बीजेपी

भले मुख्तार अंसारी अपने आखिरी दिनों में बहुत ताकतवार न नजर आया हो, लेकिन एक वक्त ऐसा था जब वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती था। एक बार ऐसा कांड किया कि पूरा देश थर्रा गया था।

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मुख्तार अंसारी के अपराधों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है। लेकिन रूंगटा अपहरण कांड ने मुख्तार को डॉन मुख्तार अंसारी बनाया था। इस मामले में सीबीआई ने जो आरोप पत्र तैयार किया था, उसके हिसाब से 22 जनवरी 1997 की शाम करीब 5.30 बजे विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) नेता और कोयला कारोबारी नंद किशोर रूंगटा अपने घर वाले ऑफिस पर कुछ कर रहे थे। तभी विजय सिंह नाम का यूपी पुलिस का एक दरोगा उनके घर पहुंचा।


विजय ने रूंगटा से कहा, चलो विधायक जी ने मिलने के लिए बुलाया है। विधायक यानी मुख्तार अंसारी। इसके बाद रूंगटा को सफेद रंग की मारुति स्टीम कार में बिठाकर ले गया। रात करीब दस बजे रूंगटा के घर फोन की घंटी बजी। फोन रूंगटा के बेटे नवीन नवीन ने उठाया। सामने से आवाज आई- राजू बोल रहा हूं। तुम्हारे बाप को किडनैप कर लिया है।

अगले दिन भागे-भागे दिल्ली में रहने वाले भाई महावीर प्रसाद रूंगटा वाराणसी आए। 24 जनवरी 1997 को उन्होंने विजय कुमार दारोगा और अज्ञात के खिलाफ भेलूपुर थाने में किडनैपिंग का मुकदमा दर्ज कराया। 26 जनवरी को फिर फोन आया। फोन वाले ने पहले पांच करोड़ रुपये फिरौती और फिर अल्सर की दवा के बारे में पूछा। असल में रूंगटा को अल्सर की बीमारी थी।


30 जनवरी को जब कॉल आई तो गहमागहमी हुई। क्योंकि महावीर मानने को तैयार नहीं थे कि उनके भाई जिंदा हैं भी या नहीं। तब 11 फरवरी को इन्हें सबूत दिया गया। असल में अपहरण करने वालों को सब पता था। उन्होंने रूंगटा के पड़ोसी पितांबर अग्रवाल को फोन किया। फोन पर बोला कि जीटी रोड पर मुगलसराय के करीब 35 किलोमीटर स्थित माइल स्टोन है। इस पर सासाराम 82 किलोमीटर लिखा है उस पर एक पैकेट रखा है। उसे ले आओ। रूंगटा के भाई और सहयोगी अब्दुल सत्तार के साथ वहां गए और पैकेट ले आए। उसमें एक वीडियो कैसेट और एक लेटर था।


16 फरवरी को महावीर प्रसाद रूंगटा अपने दोस्त अशोक अग्रवाल के साथ तीन सूटकेस में पैसे लेकर गए। हालांकि उनके पास एक करोड़ 25 लाख रुपये ही थे। उन्होंने आनंद लोक के कमरा संख्या 203 में कमरा लिया। वहां से रिक्शे से कीर्ति रोड पहुंचे। एक मारुति कार संख्या बीआरआई 2146 आई। वहां प्रभविंदर सिंह उर्फ डिम्पी समेत तीन लोगों थे। वे सूटकेस लेकर चले गए। कहा कि एक दिन बाद नंद किशोरू रूंगटा आ जाएंगे। सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार नंद किशोर रूंगटा को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में ही किराए के घर में रखा गया था। जब बात आई नंद किशोर को वापस देने कि वापस करने की बजाए उनकी हत्या कर दी गई थी।


इस अपहरण कांड में दिल्ली का जितेंद्र कुमार नाम का शख्स शामिल होता है। असल में वो दिल्ली में मिरांशु इंटरप्राइजेज नाम की कंपनी में सेल्स आफिसर था। इसी ने फिरौती के लिए फोन काल किया था। इसी ने लेटर लिखा था। असल में इसकी मुलाकात तिहाड़ जेल में 1994 में मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान से हुई थी।

वाराणसी के भेलूपुर थाने में नंद किशोर रूंगटा के भाई महावीर प्रसाद रूंगटा ने एक दिसंबर 1997 को एफआईआर दर्ज कराई थी कि पांच नवंबर 1997 को शाम पांच बजे टेलीफोन पर उन्हें मुख्तार ने धमकी दी कि अगर पुलिस का सहयोग करेंगे तो बम से उड़ा दिया जाएगा। 27 जून 2000 को अदालत ने मुख्तार अंसारी और दूसरे आरोपियों को दोषी करार दिया था।

इस पूरे मामले में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को हिला कर रख दिया था। क्योंकि रूंगटा विहिप से जुड़े थे। कई बड़े राजनीतिक नेता इस मामले में दबाव बना रहे थे। लेकिन किसी की एक न चली। मुख्तार ने अपने हिसाब से जब जैसे चाहा वैसे अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता रहा। पैसे भी लिए और हत्या भी करा दी।