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Munna Bajrangi Murder : मुंबई क्राइम की तर्ज पर सियासत और जरायम के गठजोड़ का परिणाम है मुन्ना बजरंगी की हत्या

Munna Bajrangi Murder : 2019 लोकसभा चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है इस हत्याकांड को।

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मुन्ना बजरंगी

मुन्ना बजरंगी

वाराणसी. शातिर अपराधियों को सफेदपोश या सियासी संरक्षण कोई नई बात नहीं। इसकी शुरूआत मुंबई (महाराष्ट्र) में दाउद और छोटा राजन के मामले से होती है। तब वहां भी सियासी सरजमीं से ताल्लुख रखने वालो ने कभी दाउद के वर्चस्व को शह दी तो कभी छोटा राजन को। दोनों गिरोहों के गुर्गों को जब-तब मौत के घाट उतारा जाता रहा। यह दीगर है कि जेल में कोई हत्या नहीं हुई। उसी नक्शे कदम पर यूपी भी चल रहा है। लेकिन यहां खतरनाक है, जेल में हत्याएं होना। 2004 से अब तक तीन शातिर बदमाशों को जेल में भूना जा चुका है। यूपी की बात करें तो दो बड़े गिरोहों मोख्तार अंसारी और माफिया से माननीय बने बृजेश सिंह से जोड़ कर प्रदेश की राजनीति हमेशा से प्रभावित रही है। जब जिसकी पौ बारह रही उसका सिक्का चला। जरायम की दुनिया को जानने वाले ये बखूबी जानते हैं कि कौन किसे और कब तरजीह देता रहा है। फिर ये भी पता है लोगों को मुन्ना बजरंगी किसी गिरोह से जुड़ा था। जानने वाले यह भी जानते हैं कि मुन्ना बजरंगी भी धीरे-धीरे सभी आरोपों से बरी होता जा रहा था। माना यह जा रहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव आते आते वह जौनपुर से सांसद पद के प्रबल दावेदार होता। ऐसे में तस्वीर काफी कुछ साफ है। और जिस तरह से फिल्मी स्टाइल में मुन्ना को जेल में सिर में लक्ष्य करके गोली मारी गई है उससे भी तस्वीर साफ होती है कि यह काम किसी छुटभैये का नहीं बल्कि किसी शार्प शूटर का है।

बजरंगी गिरोह की विरासत किसके हाथ
बता दें कि बनारस से ताल्लुख रखने वाले बंशी यादव, मंटू यादव, महेश यादव, अन्नू त्रिपाठी, बाबू यादव, पवन पटेल, प्रकाश मिश्र की हत्या हो चुकी है। ये तीनों ही मुन्ना बजरंगी से जुड़े बदमाश रहे। इसमें से बंशी यादव की हत्या जेल के मुलाकाती कक्ष में तो अन्नू यादव की हत्या जेल के भीतर हुई। शेष लोगों को दिन दहाड़े सड़क पर ढेर किया गया। इसमें एक खास बात यह भी है कि इनमें से प्रकाश जो पेशे से व्यवसायी थे को छोड़ कर जिस भी बदमाश ने राजनीति में आने की सोची या आ गए, उनके बड़बोलेपन ने उनकी हत्या करवा दी। चाहे वह बंशी यादव रहे हों या मुन्ना बजरंगी। बंशी पार्षद हो चुके थे और अन्नू भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते थे। जेल से ही कुछ भी बयान जारी करवाना, किसी की ऐसी तैसी कर देने की धमकी देना इनकी फितरत थी। ऐसा ही कुछ मुन्ना बजरंगी के साथ भी रहा। ऐसे में यह तय माना जा रहा था कि मुन्ना अगर सारे आरोपों से बरी हो जाते हैं तो वह 2019 में जौनपुर से चुनाव जरूर लड़ेंगे। अगर ऐसा होता तो यह बृजेश सिंह गिरोह पर भारी पड़ सकता था जो आजकल सत्ता पक्ष से जुड़े दिख रहे हैं। ऐसे में बजरंगी को रास्ते से हटाना मजबूरी बन गया था, जिसे बखूबी सोची समझी रणनीति के तहत सोमवार की सुबह अंजाम दिया गया। यही नहीं सियासत और जरायम के गठजोड़ का ही परिणाम रहा कि छात्र नेता सुनील और अनिल राय, राजेंद्र कुमार सिंह और कृष्ण कुमार सिंह जो छोटे और बड़े के नाम से मशहूर थे की दिन दहाड़े क्रमशः नरिया तिराहे और मकबूल आलम रोड पर हत्या हुई थी। यानी अब अन्नू गिरोह में ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं जो उनकी विरासत को संभाल सके। लेकिन इस हत्या के बाद से मोख्तार और उनके गिरोह के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है।

अन्नू की हत्या के वक्त भाजपा समर्थित मुलायम सरकार रही
यहां यह भी बता दें कि अन्नू त्रिपाठी की हत्या 2005 में हुई, तब कहने को तो सपा सरकार थी लेकिन वह सरकार भाजपा के सहयोग से बनी थी। आज भी सूबे में भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में अन्नू की हत्या के पीछे भी जरायम और सियासत के गठजोड़ को बखूबी जानने वालों का इशारा कहीं न कहीं से सत्ता पक्ष की ओर ही जा रहा है। उनका कहना है कि जेल के भीतर हत्या यूं ही नहीं हो जाती है। इसके पीछे कहीं न कहीं किसी न किसी का वरदहस्त होना जरूरी होता है। ये लोग मुन्ना बजरंगी की इस हत्या को सीधे तौर पर पूर्वांचल में जरायम और सियाती रिश्तों से ही जोड़ रहे हैं।

पूर्व डिप्टी मेयर अनिल सिंह ने दिलाई थी बजरंगी को पहचान
मालूम हो कि मुन्ना बजरंगी को बनारस में पहाचान दिलाने वाले थे पूर्व डिप्टी मेयर स्व. अनिल सिंह। अनिल के साथ रह कर ही बजरंगी ने चर्चा में आए जिसके बाद मोख्तार ने उसे अपने खेमे में शामिल कर लिया। बता दें कि अनिल को भी मोख्तार गिरोह का ही माना जाता रहा। यही नहीं बजरंगी के हरिशंकर तिवारी से भी अच्छे संबंध रहे। यानी एक बात तो साफ है कि बजरंगी को कभी भी भगवा रंग नहीं सुहाया। बल्कि कांग्रेस और बसपा के इर्द गिर्द ही उन्हें देखा गया। फिर मोख्तार के शूटर के रूप में ही बजरंगी को भाजपा विधायक केएन राय हत्या कांड से भी जोड़ा जाता है। ये सारी कड़ियां एक दूसरे से जुड़ी हैं जिसके आधार पर पुलिस इस हत्या की तफ्तीश करेगी। लेकिन यह भी तय है कि अब पूर्वांचल में जरायम और सियासत गठजोड़ के वर्चस्व की लड़ाई तेज होने के आसार भी दिखने लगे हैं। यह कहना अभी मुनासिब नहीं होगा कि बजंरंगी मर्डर से व्यवसायियों को राहत मिलेगी।