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महामना की बगिया से ग्लोबल ट्रेडिशन का रुख बदलने का आह्वान

नौबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने युवाओं को झकझोरा, जानिए क्या कहा...

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Ajay Chaturvedi

Jan 18, 2017

Nobel Prize winner Kailash Satyarthi

Nobel Prize winner Kailash Satyarthi

वाराणसी. ग्लोबलाइजेशन के साथ पश्चिम से पूरब की ओर आई थी संस्कृति की बयार। अब जरूरत है कि इसका रुख बदला जाए। नई संस्कृति की शुरूआत हो जो पूरब से पश्चिम की ओर जाए। यह काम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ युवा ही कर सकते हैं। दुनिया भर में 10 करोड़ युवाओं और बच्चों को उन 10 करोड़ बच्चों और युवाओं के लिए अभियान छेड़ना होगा जो गुलामी और मजदूरी के दलदल में फंसे हैं। अशिक्षित हैं। ऐसे बच्चे जो अकल्पनीय स्थितियों, शोषण और गरीबी के शिकार हैं। इन असहाय बच्चों के लिए महामना की बगिया से आवाज बुलंद होनी चाहिए।ऐसी आवाज जो दुनिया में नई क्रांति लाए। यह होगा युवाओं में करुणा और नेतृत्व की गुणवत्ता पैदा करके। इस अभियान का लक्ष्य कल की समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकना है। यह आह्वान किया नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने। कहा कि इसकी पहल महामना के विश्व विद्यालय काशी हिंदू विश्व विद्यालय ही कर सकता है। वह बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन में विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष व्याख्यान दे रहे थे।




मुख्य धारा से अलग 10 करोड़ बच्चों के लिए लाना है सामूहिक याचिका
सत्यार्थी ने कहा कि यह अभियान उन 10 करोड़ बच्चों के लिए सामूहिक याचिका लाने के लिए है जो अब तक मुख्य धारा से दूर हैं। किसी प्रकार के बदलाव लाने व नेतृत्व प्रदान करने में नागरिकों को एक साथ लाने का प्रयास होगा यह अभियान। यह अभियान बच्चों, अध्यापकों और युवाओं को एक साथ मिलकर प्रोत्साहित करने का प्रयास करेगा जिससे सरकार को शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के माध्यम से नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों और बजटीय आवंटन में बच्चों को प्राथमिकता देने पर जोर डाला जा सके।

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बीएचयू के स्वतंत्रता भवन में कैलाश सत्यार्थी को सुनने आए युवा



विभिन्न देशों के युवाओं के बीच की दूरी खत्म करने में सेतु बनेगा यह अभियान
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि यह अभियान विभिन्न देशों के युवाओं के बीच की दूरी खत्म करने में सेतु का काम करेगा। इनमें वैश्विक करुणा का भाव पैदा कर वंचित बच्चों के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा करेगा। लाखों बच्चों के माता पिता और अभिभावक देखेंगे कि बच्चों का उज्ज्वल भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि ये बच्चे स्कूलों में अपनी शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान का अधिकार कैसे हासिल करते हैं। यह अभियान चलेगा 2017 से 2022 तक। सौ देशों में यह अभियान चलाया जाएगा।



दुनिया भर के कुछ बच्चे असाधारण चुनौतियों का सामना कर रहे
उहोंने कहा कि दुनिया भर के कुछ बच्चे असाधारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इस बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। बाल मजदूरी, बाल शोषण, बाल शरणार्थी जैसे मुद्दों पर जनता की राय में परिवर्तन लाया जाएगा। दुनिया भर के युवा लोग उन लोगों के लिए काम करेंगे जो अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते। लंबी अवधि में नीति और व्यवहार में परिवर्तन बच्चों के लिए बेहतर परिणाम देंगे। उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर पिछले 15 वर्षों में बाल श्रमिकों की संख्या में करीब 7.5 करोड़ बाल श्रमिकों की वैश्विक कमी देखी जा सकती है। बताया कि इस अभियान में हम ऐसे रणनीतिज्ञ और दुनिया में बदलाव लाने वाले जुनूनी लोगों को तलाश कर रहे हैं जो इस परिवर्तन में हमारे साथ कदम से कदम मिला कर चलें और लोगों के दिलों में बच्चों के प्रति करुणा भाव पैदा कर सकें।



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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी



नोबेल शांति पुरस्कार ग्रहण समारोह के भाषण को सुना कर रोंगटे खड़े किए
कैलाश सत्यार्थी को सुनने के लिए बुधवार को बीएचयू का स्वतंत्रता भवन छोटा पड़ गया। सभागार में तिल रखने को जगह नहीं थी। नीचे से पहली मंजिल तक सभागार खचा खच भरा था। जितने लोग बैठे थे उससे कहीं ज्यादा खड़े हो कर नोबेल पुरस्कार विजेता को ध्यान लगा कर सुन रहे थे। इस मौके पर उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार ग्रहण समारोह के भाषण में जिक्र की गई देवली की कहानी को दोहराया। बताया देवली पत्थर खदानों में पैदा हुई बंधुआ मजदूर थी। बंधुआ मजदूरी से आजाद होते ही गाड़ी में बैठी उस आठ साल की बच्ची ने मुझसे सवाल किया, च्तू पहले क्यों नहीं आया रेज्। कहा, उस नन्ही सी बच्ची के मन में गुस्से से भरा वह सवाल मुझे आज भी झकझोरता है। लेकिन मैं सोचता हूं कि उस सवाल की ताकत आज भी पूरी दुनिया को हिलाने का माद्दा रखती है।


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बच्चों का बचपन खोता जा रहा
उन्होंने बाल श्रम के खतरे का जिक्र करते हुए कहा कि किसी भी उद्योग चाहे वह कांच की चूड़ी,कालीन या जरी निर्माण से जुड़ा हो, कानूनी तौर पर कोई भी दावा नहीं कर सकता कि वे अपने कारखानों में बच्चों को न्यूनतम मजदूरी पर एक सस्ते श्रमिक के रूप में उन बच्चों को रोजगार दे रहे हैं। इससे उनका बचपन खोता जा रहा ह। उन्होंने पूछा काम बच्चों को क्यों दिया जा रहा, उनके माता-पिता को क्यों नहीं। इन बच्चों की जगह किसी वयस्क को रोजगार मिलता तो नियोक्ता या मालिक को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करना होगा जो दिल्ली में लगभग सात से आठ हजार रुपये प्रति माह है। कुशल कामगार की तो और भी अधिक है। लेकिन स्थानीय नियोक्ता या मालिक तो कहता है कि अगर मुझे 20-30 रुपये प्रतिदिन की दर से काम करने के लिए बच्चा मिल रहा है तो उसी काम को 200 रुपये प्रतिदिन क्यों कराऊं।



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16.8 करोड़ बच्चे आज भी बाल मजदूरी को अभिशप्त
आईएलओ का आंकड़ा प्रस्तुत करते हुए बताया कि आज भी दुनिया में 16.8 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के लिए अभिशप्त हैं। इसके अलावा 20 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं, 60 लाख बच्चों ने स्कूल का मुंह नहीं देखा। अन्य ऐसे बच्चों की तादाद भी कम नहीं जो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। दुनिया भर में अभी भी 21 करोड़ युवा, वयस्क बेरोजगार हैं। ब्राजील, नाईजीरिया,मेक्सिको, फिलिपीन्स के अध्ययन से पता चलता है कि ये बाल मजदूर उन माता पिता की संतान हैं जिन्हें 100 या 100 से अधिक दिनों में रोजगार नहीं मिल पाता। बताया कि कुछ अध्ययन से पता चलता है कि बेरोजगारी और बाल श्रम के आंकड़े एक ही साथ बढ़े हैं। सत्यार्थी ने कहा कि योग्य वयस्क अगर बेरोजगार रहेंगे और उनकी जगह सस्ते श्रमिकों के लालच में बच्चों से मजदूरी कराई जाती रहेगी तो आर्थिक विकास में बाधा का एक मुख्य कारण बाल मजदूरी होगी।




सत्यार्थी का दर्द जानवरों से कम कीमत पर बेची जा रही बेटियां
सत्यार्थी ने बड़े बुझे हुए मन से कहा कि हाल यह है कि वेश्यावृत्ति के लिए जानवरों से भी कम दाम पर बेची जा रही हैं बेटियां। इन्हें बचाने की जरूरत है। कहा कि भारत से ज्यादा पाकिस्तान में फलफूल रहा है बाल श्रम। प्राकृतिक आपदा के बाद से बच्चियों का शोषण और भी बढ़ जाता है। कहा कि नेपाल में आए भूकंप के बात छोटी-छोटी बच्चियों को वेश्यावृत्ति के लिए भारत से इंग्लैंड, अमेरिका तक बेचा गया।


जब कालू ने बिल क्लिंटन को स्तब्ध कर दिया
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कालीन उद्योग से मुक्त बाल श्रमिक कालू का जिक्र करते हुए कहा कि जब राष्ट्रपति क्लिंटन ने मुझे अमेरिका बुलाया तो मैं कालू के साथ गया। कालू ने क्लिंटन से बात करते हुए कालू ने क्लिंटन ने चुनौती दे डाली। बाल श्रमिकों की दशा पर सवाल किया। कहा मां बाप को नौकरी नहीं, बच्चों को क्यों? उसके बाद ही क्लिंटन ने दुनिया भर के ऐसे बच्चों के लिए दिए जाने वाले बजट को तीन करोड़ से बढ़ा कर 18 करोड़ किया।




धर्मादा संस्थाओं को आगे आने आह्वान
व्याख्यान के बाद मीडिया से मुखातिब सत्यार्थी ने पत्रिका के प्रश्न कि बाल श्रमिकों को मुक्त कराना तो ठीक पर इनके आर्थिक पुनर्वास का भी तो कोई इंतजाम होना चाहिए। इस पर उनका जवाब था कि 1000 में महज 0.2 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जो वास्तव में परिवार का भरण पोषण करने के लिए काम करते हैं।ऐसे बच्चों के आर्थिक पुनर्वास के लिए सरकार के साथ धर्मादा संस्थाओं को आगे आना होगा। इन 0.2 प्रतिशत बच्चों के लिए 99 फीसदी बाल श्रमिकों को तिलांजलि नहीं दी जा सकती।



कुलपति ने की अध्यक्षता



इस मौके पर कुलपति प्रो. जीसी त्रिपाठी ने शताब्दी व्याख्यान समारोह की अध्यक्षता की। समाज विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. मंजीत चतुर्वेदी ने नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का परिचय दिया और कुलसचिव डॉ. केपी उपाध्याय ने आभार जताया।