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पत्रिका विशेष
आवेश तिवारी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में मोटी महिलाओं की तादात तेजी से बढ़ रही है। 2005-06 में अधिक वजन वाली महिलाओं का फीसद 9.2 था जो कि 2015-16 में बढ़कर 16.5 हो गया। आंकड़े बताते हैं कि शहरों में 27.1 फीसद और ग्रामीण इलाकों में 12.6 फीसद महिलाएं मोटी हैं यानि अधिक वजन की समस्या से जूझ रही है। यह चौका देने वाला आंकडा नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है। आंकड़े बताते है कि प्रदेश में जहाँ सिजेरियन आपरेशन में तेजी से वृद्धि हुई है वही शहरी इलाकों में परिवार नियोजन को आम जनता ने सम्मानपूर्वक अपनाया है।
सिजेरियन आपरेशन में जबरदस्त वृद्धि
सर्वे के हिसाब से 2005-06 में सिजेरियन आपरेशन से डिलीवरी का फीसद 4.4 था जो कि 2015-16 में बढ़कर 9.4 हो गया। चौंका देने वाला तथ्य यह है कि शहरी इलाकों में 18.9 फीसद महिलाएं सिजेरियन आपरेशन से बच्चे पैदा करती है वहीँ ग्रामीण इलाकों में यह केवल 6.9 है। गौरतलब है कि सिजेरियन आपरेशन से होने वाली डिलीवरी का सीधा ताल्लुक निजी अस्पतालों की संख्या में होने वाले बेतहाशा वृद्धि है ।यह भी एक काबिलेगौर तथ्य है कि ज्यादातर चिकित्सक और गर्भवती महिला के परिजन डिलीवरी के दौरान किसी किस्म का जोखिम नहीं लेना चाहते इसलिए सिजेरियन आपरेशन को चुनते हैं। महत्वपूर्ण है कि पिछले एक दशक के दौरान यूपी में निजी अस्पतालों में होने वाले डिलीवरी का फीसद 26 फीसद से बढ़कर 31.3 हो गया है।
महिलाओं की नसबंदी में गिरावट
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में पिछले एक दशक के दौरान परिवार नियोजन का फीसद बढा है। 2005-06 के दौरान 43.6 फीसदी शादी शुदा आबादी ( 15-49 वर्ष) परिवार नियोजन के किसी भी तरीके का इस्तेमाल किया करती थी लेकिन 2015-16 में यह बढाकर लगभग 45.5 फीसद हो गया। दिलचस्प यह है कि शहरी इलाकों में 55 फीसद लोग परिवार नियोजन के किसी न किसी उपाय का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह फीसद महज 42.2 है। चौकाने वाला आंकड़ा यह भी है कि नसबंदी कराने वाले महिलाओं का जो फीसद 10 साल पहले था वो आज भी है हांलाकि पुरुष नसबंदी कराने वालों की तादात घटी है। प्रदेश में कंडोम और गर्भ निरोधक का दवाओं के इस्तेमाल में मामूली वृद्धि हुई है। दुखद यह है कि आज भी उत्तर प्रदेश में नवजात बच्चे को पैदा होने के दो दिनों के भीतर किसी चिकित्सक या स्वास्थ्य कर्ता का परामर्श केवल 24.4 फीसदी मामलों में ही मिल पाता है।
महिलाओं में मोटापा तेजी से बढ़ा
आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 6 से 23 महीनों के बच्चों में से केवल 5.3 फीसद को पर्याप्त भोजन मिल पाता है। नतीजा यह है कि बच्चों में कुपोषण के मामले ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। यूपी में पांच साले से छोटे ऐसे बच्चों की तादात में पिछले दस सालों के दौरान वृद्धि हुई है जिन्होंने लम्बाई की तुलना में वजन ग्रहण नहीं किया है। पांच साले से छोटे बच्चों में कम वजन की समस्या पिछले एक दशक के दौरान घटी है। लेकिन आज भी प्रदेश में 39.5 फीसदी बच्चों में कम वजन की समस्या विद्यमान है। हांलाकि 10 साल पहले यह फीसद 42.4 था।