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BHU में रिटायर्ड लोगों की फौज, तरह-तरह के सलाहकार, उठा रहे सरकारी सुविधाओं का लाभ

सुरक्षा व प्रशासनिक सलाहकार के साथ कई और हैं जिन पर अब उठने लगे हैं सवाल, दबी जुबान हो रही उच्चस्तरीय जांच की मांग।

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बीएचयू

बीएचयू

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राएं और परिसर में रहने वाले खुद को सुरक्षित महसूस करें इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने लंबी चौड़ी फौज खड़ी कर रखी है। प्रॉक्टोरियल बोर्ड है, चीफ प्रॉक्टर हैं, डिप्टी चीफ प्रॉक्टर हैं। सैन्य बल है। ऊपर से एक रिटायर्ड सुरक्षा सलाहकार भी हैं। इन सब पर करोड़ों खर्च होता है। बावजूद इसके न छात्र-छात्राएं सुरक्षित न परिसर में रहने वाले। यह चर्चा विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के बीच इन दिनों आम हो चली है। प्रोफेसर्स ही सवाल उठाने लगे हैं कि इतनी बड़ी फौज और सुरक्षा सलाहकार का मतलब क्या है जब न पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम है न घटना होने के बाद आरोपी पकड़ में ही नहीं आता। अब 21 सितंबर की घटना को ही लें तो छात्रा के साथ छेड़खानी करने वाले बाइक सवार आरोपियों का आज तक पता नहीं चल सका है गिरफ्तारी तो दूर की बात। इतना ही नहीं अब तो एक प्रशासनिक सलाहकार भी नियुक्त हो गए हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका काम ही नहीं समझ आता।

बता दें कि बीएचयू के पास अपना सुरक्षा तंत्र है। इसका सालाना बजट 14 करोड़ रुपये है। 707 गार्ड, 10 सुरक्षा अधिकारी हैं, 60 आर्म गार्ड हैं। बावजूद इसके विश्वविद्यालय की सुरक्षा के लिए हर बार जिला पुलिस को ही हस्तक्षेप करना होता है। चाहे कतिपय छात्रों द्वारा लाइब्रेरी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन, अनशन से हटाना हो चाहे सिटी स्कैन में धांधली को लेकर धरना देने वाले छात्रों पर कार्रवाई करनी हो। यहां तक कि परिसर में धरनारत छात्रों के समर्थन में जा रहे आम आदमी कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई का सवाल हो। ऐसे में यह चर्चा आम हो रही है कि आखिर इतना बड़ा अमला करता क्या है। किस लिए है। विश्वविद्यालय के ही कुछ प्रोफेसर्स ने दबी जुबान में कहा कि मुख्य आरक्षी सहित विश्वविद्यालय के आला अफसरों के घर पर चाकरी से खाली हों तब तो ये विश्वविद्यालय की सुरक्षा की कमान संभालें। उन्होंने बताया कि 14 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी जिला पुलिस को ही सुरक्षा का काम देखना है तो यह बजट सीज कर देना चाहिए।

इतने बड़े तामझाम के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन पिछले दो साल से बिहार के एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी को बतौर सुरक्षा सलाहकार नियुक्त कर रखा है। वह विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में रहते हैं। बताया जाता है कि इस अतिथि गृह का प्रतिदिन का 500 रुपये किराया तक माफ है उनके लिए। यही नहीं सूत्र बताते हैं कि उन्हें मानदेय के रूप में मोटी रकम (करीब डेढ़़ लाख रुपये) हर महीने दी जाती है। चर्चा यह भी है कि सेवानिवृत्ती के बाद नियुक्त यह सुरक्षा सलाहकार विश्वविद्यालय के एक ओहदेदार के नजदीकी रिश्तेदार भी हैं। लेकिन सबसे बड़ी चीज कि जिसके लिए उन्हें नियुक्त किया गया है वह काम तो कहीं नजर नहीं आता। आए दिन कोई न कोई घटना घटती ही रहती है। हालांकि 21 व 23 सितंबर की घटना के बाद जब जिला व पुलिस प्रशासन ने विश्वविद्यालय की कमान संभाल ली। नई चीफ प्रॉक्टर नियुक्त हो गईं तो उनके साथ प्रेसवार्ता में जरूर नजर आने लगे हैं। विभिन्न जांच समितियों को अपनी राय देने से भी नहीं चूकते।

वैसे इन दिनों विश्वविद्यालय में सलाहकारों की कमी नहीं है। विश्वविद्याय प्रशासन ने हर काम के लिए रिटायर्ड लोगों की फौज खड़ी कर रखी है। सुरक्षा सलाहकार के अलावा प्रशासनिक सलाहकार (एक पूर्व कुलसचिव) भी हैं। वैसे चर्चाओं के मुताबिक कुलपति प्रो जी सी त्रिपाठी ने पिछले दरवाजे से संघ के उच्च पदस्थ पदाधिकारियों की सिफारिश पर और भी कई नियुक्तियां की है इनमें शताब्दी वर्ष समारोह प्रकोष्ठ से जुड़े भी कई लोग हैं जबकि शताब्दी वर्ष कब का बीत गया। फिर भी कुछ लोग अब तक कार्यरत हैं। मजेदार तो यह कि इन सलाहकारों के कार्यों के वैद्यानिक मूल्यांकन की कोई व्यवस्था नहीं है। ये सलाहकार लक्ष्णदास अतिथि गृह में गत दो वर्ष से डेरा जमाए हैं। वहां दो वक्त का भोजन, नाश्ता भी मुफ्त है। अब तो कुछ प्रोफेसर्स इनके इन नियुक्तियों की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी उठाने लगे हैं दबी जुबान। इस बीच विश्वविद्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार इन सलाहकारों की नियुक्ति प्रक्रिया एवं कार्यों के दायित्वों की कोई वैद्यानिक रुप रेखा नहीं है। हालांकि बताया जा रहा है कि विश्वविद्यालय के ग्रामीण विकास केंद्र में सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया के कार्यालय से संबद्ध उच्च सिफारिश पर निर्धारित मानद वेतन पर एक नियुक्ति भी जांच के घेरे में है।