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प्राचीन मंदिरों में से एक है काशी का संकटमोचन मंदिर, दर्शन से मिलती है कष्टों से मुक्ति

यह मंदिर अपने भक्तों के संकट को दूर करने वाला है

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वाराणसी. संकट मोचन मंदिर 'बालाजी' के एक बहुत ही प्यारा और चमत्कारी मंदिर है। इस मंदिर को वानर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर के आस-पास बंदरों की संख्या बहुत है । ऐसा प्रतीत होता है कि श्री हनुमान जी अपनी वानर सेना के साथ इस मंदिर में रमे हुए हैं। यह मंदिर वाराणसी शहर के दक्षिण में स्तिथ है। नाम के अनुसार ही यह मंदिर अपने भक्तों के संकट को दूर करने वाला है।

IMAGE CREDIT: Net

वाराणसी कैंट से इतनी दूर है संकटमोचन मंदिर
संकट मोचन मंदिर वाराणसी कैंट स्टेशन से 9.9 किमी दूरी पर है। यहां पहुंचने के लिए आपको कैंट से ऑटो लेना होगा। जिससे आसानी से दुर्गाकुंड के रास्ते संकटमोचन मंदिर पहुंच जाएंगे।

मंदिर का प्राचीन इतिहास
माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं जहा महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। संकट मोचन मंदिर की स्थापना कवि तुलसीदास ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के लेखक थे। परम्पराओं की माने तो कहा जाता हैं कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती हैं। हर मंगलवार और शनिवार, हज़ारों की तादाद में लोग भगवान हनुमान को पूजा अर्चना अर्पित करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियो में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता हैं वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषों का मानना है कि हनुमान की पूजा करने से मंगल गृह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और गृह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।

1900 में हुआ था इस मंदिर का निर्माण
यह मंदिर आजादी के लिए लड़ने वाले पंडित मदन मोहन माल्विया ने 1900 के करीब बनवाया था । हनुमान जयंती पर मां दुर्गा मंदिर से संकट मोचक मंदिर तक एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है । इस मंदिर में श्री राम के सामने श्री हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है जो इस मंदिर को अन्य हनुमान मंदिर से अलग करती है ।