
मां दुर्गा मंदिर
वाराणसी. शारदीय नवरात्र में चौथे दिन दर्शऩ-पूजन के क्रम में कूष्मांडा देवी के दर्शन-पूजा की मान्यता है। माता के इस स्वरूप का विग्रह दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है। माना जाता है कि माता रानी की उपासना से तीनों पापों (दैहिक, दैविक और भौतिक) का नाश होता है। साथ ही इस सांसारिक मोह-माया से मुक्ति मिलती है।
कूष्मांडा अर्थात जो माता कुत्सितः उष्मा-कूष्मा-त्रिविध तापयुक्त संसार से भक्तों को मुक्ति दिलाती हैं। यानी "स ऊंण्डे मांस पेश्यामुदरुपायां यास्या कूष्मांडा"।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य पद्म पुरस्कार से सम्मानित पंडित देवी प्रसाद द्विवेदी बताते हैं कि कूष्मांडा अर्थात त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है। वे भगवती कूष्मांडा के नाम से विख्यात हुईँ।
माता रानी के ध्यान के लिए इस मंत्र का है विशेष महत्व...
अर्द्ध मात्रा स्थिता नित्या यानुच्चायां विशेषतः।
स्वमेव संध्या गायत्री त्वं देवी जननी पुरा।।
यानी जो भक्त पुष्प, धूप, नैवेद्य और घृत दीप आदि सहित देवी सूक्त का पाठ करते हुए जो कूष्मांडा देवी की आराधना करता है, देवी उस पर प्रसन्न हो कर उसे समस्त पापों से मुक्ति दिलाती हैं। कूष्मांडा देवी की मान्यता दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा जी को प्राप्त है।
यह मंदिर वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने इस भव्य मंदिर के एक तरफ दुर्गा कुंड है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान है। मंदिर के निकट ही बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वती जी और माता काली की मूर्तियां अलग से मंदिरों में स्थापित हैं। इस मंदिर के अंदर एक विशाल हवन कुंड है, जहां रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं।
इस मंदिर से जुड़ी एक अद्भुद कहानी सुनाई जाती है। कहते हैं कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश सुबाहु की बेटी से करवाने के लिए माता ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध करके उनके रक्त से कुंड को भर दिया वही रक्त कुंड कहलाता है। बाद में राजा सुबाहु ने यहां दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और 1760 ईस्वी में रानी भवानी ने इसका जीर्णेद्धार करवाया।
Published on:
02 Oct 2019 06:00 am
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