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PM Modi और राजनीति से दुखी गंगा वैज्ञानिक सानंद ने ली देह त्याग की प्रतिज्ञा

संकट मोचन के महंत से मिल कर बातों-बातों में रो पड़े गंगा पर लंबे समय से काम करने वाले विशेषज्ञ जीडी अग्रवाल उर्फ सानंद महाराज।

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स्वामी सानंद और प्रो विश्वंभर नाथ मिश्र

स्वामी सानंद और प्रो विश्वंभर नाथ मिश्र

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. देश के विख्यात गंगा विशेषज्ञ, जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद, जिन्होंने मां गंगा की रक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। काशी से ले कर उत्तराखंड तक मां भागीरथी की अविरलता और निर्मलता के लिए अनशन किया। गंगा बेसिन अथारिटी की बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह तक को कड़ी चेतावनी तक दे डाली। अब वही स्वामी सानंद मां गंगा की दुर्दशा से काफी द्रवित हैं। बात-बात में वह फूट-फूट कर रो पड़ रहे हैं। पतित पावनी मां गंगा की इस दारुण दशा से व्यथित हो कर उन्होंने गंगा दशहरा के बाद देह त्याग की प्रतिज्ञा कर ली है। राष्ट्रीय नदी घोषित कराने में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करने वाले स्वामी सानंद ने दुःखी मन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है। दो पेज के उस पत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री से काफी कुछ उलाहना भी की है।

स्वामी सानंद इन दिनों काशी में है। गुरुवार की शाम वह पहुंचे तुलसीघाट और मिले मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए दो पीढ़ी से संघर्षरत संकट मोचन के महंत से। संकट मोचन फाउंडेशन के चेयरमैन प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र से बातचीत में वह मां की दुर्दशा पर चर्चा करते-करते बच्चों के माफिक फफक पड़े। प्रो. मिश्र ने पत्रिका से खास बातचीत में यह जानकारी दी। बताया कि स्वामी सानंद ने कहा कि शास्त्रों व पुराणों में जिसे पूजनीय बताया गया है। मां कह कर बुलाया गया है, उसकी ऐसी दुर्दशा। मां का शरीर क्या बोझ ढोने के लिए है। जिसे देखिए वही कभी बिजली बनाने के लिए मां के आंचल को सीमित करता है, कभी व्यावसायिक प्रयोज्य के लिए उसका हृदय छलनी किया जा रहा है। क्या यही गंगा पुत्रों का कर्तवव्य है। भावुक हो कर उन्होंने कहा कि काशी में गंगा घाट छोड़ रही हैं। गंगा का जल इतना विषैला हो गया है कि जलीय जंतु तड़प-तड़प कर जीवन समाप्त कर दे रहे है। उन्होंने कहा कि मां के लिए मेरे जैसे सन्यासी संघर्ष ही तो कर सकते हैं, सो किया अब मां की पीड़ा नहीं देखी जा रही। अब तो यही तय किया है कि शरीर को बहुत पीड़ादायक स्थिति में पहुंचाए इसे त्याग ही देना उचित होगा। अगर मैं मां की रक्षा नहीं कर सकता तो मुझे भी जीने के हक नहीं।

महंत जी ने पत्रिका को बताया कि मुझे तो गंगा से जोड़ने वाले थे काशी में सबसे पहले मां गंगा की पीड़ा को अंतः मन से समझने और उसके लिए अंतिम सांसों तक संघर्ष करने वाले पूर्व महंत प्रो वीरभद्र मिश्र। स्व. प्रो मिश्र ही थे जिन्होंने मां गंगा की निर्मलता व अविरलता के लिए एक वैज्ञानिक प्रोजेक्ट तैयार किया। लेकिन उसे कोई तवज्जो नहीं दिया किसी ने। बोलते-बोलते वह फिर सुबक पड़े और कहा, सरकारें चाहे कोई हों सब ने मां गंगा को छला ही है। मां गंगा का सियासी प्रयोग ही किया गया। लेकिन जब इन प्रधानमंत्री ने गंगा को मां कहा, खुद को उनका बेटा बताया तो यह उम्मीद बंधी थी कि अब शायद कुछ होगा। लेकिन इन्होंने तो मां गंगा के नाम पर राजनीति ही नहीं की बल्कि उसका व्यवसायीकरण शुरू कर दिया। अरे मां गंगा के पुत्रों में मैं खुद उनसे कम से कम 15 साल बड़ा हूं। उसी हैसियत से मैने एक पत्र प्रधानमंत्री को लिखा है। लेकिन अब जीने की इच्छा नहीं रही। मन बहुत दुःखी है।

देखें गंगा वैज्ञानिक से सन्यासी बने स्वामी सानंद ने क्या लिखा है पीएम को भेजे खुले पत्र में....