आम का पेटेंट कराने के लिए खेकड़ा कृषि विज्ञान केंद्र पर तैनात डॉ. वीरेंद्र गंगवार भी सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ सबट्रोफिकल रहमान खेड़ा लखनऊ से कराने में प्रयासरत थे। मंगलवार को बनारस में हुए एक कार्यक्रम में चेन्नई की संस्था ने आम रटौल का पेटेंट किए जाने की घोषणा की। पेटेंट उमर फरीदी ऑर्गेनाइजेशन के नाम से पंजीकृत हुआ। अब विख्यात आम भारत सरकार के अधीन होगा। रटौल में मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन इसका निर्यात करेगा।
बंटवारे में गए कुछ पेड़, पाकिस्तान ने ठोका दावा रटौल आम दुनिया भर में मशहूर है। देश बंटवारे के बाद रटौल के अनवारुल-हक रटौल से पाकिस्तान चले गए थे। इस पर रटौल से आम के कुछ पौधे भी चले गए थे। पाकिस्तान में इस आम को अनवर रटौल के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं पाकिस्तान इसे पेटेंट कराकर विदेशों में निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमाता है। पूर्व प्रधान जुनैद फरीदी, हबीब चौधरी ने रटौल नाम को भारत का होने का दावा करते हुए दिल्ली के द्वारका में देश के सभी राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। उस समय रटौल आम के डीएनए का प्रस्ताव रखा गया। इसके बाद आम को डीएनए के लिए भेजा गया। रटौल आम ने जीत दर्ज की और इस आम का रटौल के नाम से पेटेंट हुआ। पहले रटौल की पैदावार 52 बीघा रकबे में होती थी। लेकिन अब आम उत्पादकों की कमी होने और उन्हें अधिक सुविधा न मिलने के कारण इनकी पैदावार कम बीघा रकबे में की जाती है। अब रटौल आम की पैदावार मात्र पांच हजार बीघा रकबे में ही होती है।
शौक से जन्मी रटौल आम किस्म रटौल गांव के अनवर आम के शौकीन थे। वह बाग में नए-नए पेड़ लगाते और खुद भी आम की किस्म तैयार करते थे, लेकिन रटौल नाम से उन्होंने जिस प्रजाति को पैदा किया, उसे दुनिया में अनवर रटौल के नाम से जाना जाने लगा। बाद में उन्होंने अनवर रटौल के नाम से ही इसका पेटेंट करा दिया। तब से लेकर आजतक दुनियाभर में आम की ऐसी कोई किस्म दूसरी पैदा नहीं हुई।