
योगिनी एकादशी
वाराणसी. हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। उनमेंआषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) या शयनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 9 जुलाई, सोमवार को पड़ रहा है। धर्म शास्त्रों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
इस व्रत को करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति
इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना होती है और भक्त पूरा दिन उपवास रखते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और वह मरने के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है।
पूजा विधि
एकादशी के दिन सच्चे भाव से एकादशी व्रत करने का संकल्प करना चाहिए तथा अगले दिन प्रात: स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु नारायण एवं भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी के रुप का धूप, दीप, नेवैद्य, फूल एवं फलों सहित पवित्र भाव से पूजन करना चाहिए। सारा दिन अन्न का सेवन किए बिना सत्कर्म में अपना समय बिताना चाहिए तथा भूखे को अन्न तथा प्यासे को जल पिलाना चाहिए। इस व्रत में केवल फलाहार करने का विधान है। रात को मंदिर में दीपदान करना चाहिए तथा प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए, द्वादशी तिथि यानि 10 जुलाई को अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को दान देकर व्रत का पारण करना शास्त्र सम्मत है।
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 8 जुलाई को 10.30PM बजे
एकादशी तिथि समाप्त = 9 जुलाई को 8.27PM बजे
योगिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नामक राजा राज्य करता था। जो कि भगवान शिव का परम भक्त था। वो प्रतिदिन शिव को ताजे फूल अर्पित किया करता था। हेम नामक माली रोज राजा के लिए ताजे फूल तोड़ कर लाया करता था। लेकिन एक दिन हेममाली राजा को पुष्प देने के समय अपने स्त्री के साथ रमण करने लगा। कर्इ देर इंतजार करने के बाद जब माली पुष्प लेकर नहीं पहुंचा तो राजा गुस्से में आ गया आैर अपने सेवकों को हेममाली का पता लगाने का आदेश दिया। सेवकों ने वापिस आकर राजा को बताया कि माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ भ्रमण कर रहा है। इस पर राजा कुबेर ने हेममाली को उसके समक्ष बुलाने की आज्ञा दी। जब हेममाली वहां पहुंचा तो राजा ने उसे गुस्से में आकर श्राप दिया कि तू स्त्री का वियोग भोगेगा आैर मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी हो जाएगा। राजा के श्राप से वह उसी क्षण पृथ्वी लोक में आ गिरा और कोढ़ी हो गया। जहां उसने कर्इ दुख झेले। लेकिन शिव की भक्ति के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुर्इ। इसके बाद वह हिमालय पर्वत की आेर चल दिया। जहां उसे एक ऋषि मिले। जब ऋषि ने उसके कोढ़ के पीछे का कारण पूछा तो उसने सारा वृतांत सुनाया आैर अपने उद्घार के लिए सहायता मांगी। इस पर ऋषि ने उसे कहा कि तुम आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करो इस व्रत को करने से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचन का पालन करते हुए हेममाली ने योगिनी एकादशी का व्रत किया। जिससे उसके शरीर का कोढ़ दूर हो गया आैर वह पूर्ण रूप से सुखी हो गया।
Published on:
06 Jul 2018 03:07 pm
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