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देखें Video : ऊंट पालन साबित हो रहा घाटे का सौदा, पालकों का घटा रुझान

कृषि कार्य और परिवहन में घटी उपयोगिता, नहीं मिल रहा सरकारी प्रोत्साहन  

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पीसांगन (अजमेर). सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने से रेगिस्तान के जहाज कहे जाने वाले राज्य पशु ऊंट के पालन में अब पशुपालकों का रुझान धीरे घटने लगा है। स्थिति यह है कि परिवहन व खेती में ऊंटों का उपयोग धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में भी इनकी उपयोगिता ज्यादा नहीं है। इनके भरण पोषण में भी दिनोंदिन खेतीबाड़ी में तारबंदी व झाली आदि का उपयोग अत्यधिक होने के साथ ही आमजन में गिरते भाईचारे व घटते प्रेम व्यवहार के कारण ऊंट पालकों को कठिनाइयां झेलनी पड़ रही हैं। कई बार तो उन्हें इनके भरण पोषण के लिए खेत मालिकों आदि के उलाहने सुनने पड़ते हैं।

चार साल बाद शुरू किया अनुदान

पीसांगन उपखंड क्षेत्र के फतेहपुरा एकमात्र सबसे बड़े ऊंट पालक रणजीत देवासी व उनके पुत्र रामेश्वर देवासी व रामेश्वर के चाचा हरिलाल देवासी से बातचीत की तो उनका दर्द छलक उठा। इनके अनुसार अब उनका ऊंट पालन से मोहभंग हो रहा है। रामेश्वर बताते हैं कि ऊंट को राज्य सरकार ने वर्ष 2014 में राज्य पशु का दर्जा दिया। इसके तहत ऊंट के जन्म पर उन्हें 10 हजार रुपए राज्य सरकार की ओर से अनुदान मिलने लगा। लेकिन अनुदान वर्ष 2018 तक की मिला और इसके बाद यह अनुदान बंद हो गया। अनवरत 4 वर्ष बाद इस बार चुनावी वर्ष में सरकार के द्वारा उन्हें फिर से अनुदान देने की शुरुआत की गई हैं।

नहीं रहा ग्रामीण जीवन का आधार

रणजीत देवासी ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में ऊंटों की संख्या में दिनोदिन गिरावट आ रही। ऊंट पालन अब घाटे का सौदा साबित हो रहा है। हरिलाल देवासी का कहना है कि आज ग्रामीण जीवन का आधार ऊंट पालन ऊंटनी का दूध व दूध से बने स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों की मांग के बावजूद संकट में है।

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