रेणी. कस्बे में स्थित चतुर्भुज मंदिर जनप्रतिनिधियों, देवस्थान विभाग व स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से अब खंडहर होता जा रहा है। इसकी सुध नहीं ली जा रही है। दूसरी ऐतिहासिक धरोहर जिंदों की बावड़ी भी सुरक्षित नहीं है। उस पर भी अतिक्रमण कर लिया गया है। ऐसे में दोनों ही ऐतिहासिक स्थल व प्राचीन शैली उपेक्षा के शिकार हो रहे है।
कस्बे में मदिंरों की दीवारों व स्तंभों पर की गई नक्काशी देखने लायक है। प्राचीन चतुर्भुज मंदिर मंदिर नागर शैली में निर्मित है। मंदिर की छत व मेहराब बड़े ही कलात्मक है। इनको देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। मंदिर के चारों तरफ ऊंची दीवार है, जो अब खंडित हो गई है। मंदिर की छत पर अंदिर की तरफ देवसभा की मूर्तियां हैं, तो बाहर की तरफ कलात्मक क्रीडा की मूर्तियां है, जो मध्यकाल में खंडित कर दी गई थी। मंदिर से कुछ दूर पर ही समकालीन बावड़ी भी है, जो जिन्दों की बावड़ी के नाम से विख्यात है, लेकिन अतिक्रमण से इस बावड़ी के अवशेष ही बचे है।लोगों का आरोप है कि सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन भी इस ओर उपेक्षा कर रहा है। एक तरफ भानगढ़ आदि मंदिरों पर तो करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है, लेकिन इस मंदिर व बावड़ी पर सरकार व प्रशासन की ओर से अनदेखी की जा रही है। जिससे यह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे है।
एक ही रात में हुआ था मंदिर निर्माण
किवदंती हैं कि इस मंदिर का निर्माण जिन्दों की ओर से एक ही रात में करवाया गया था, लेकिन भोर होने से पहले ही किसी महिला की ओर से चक्की चला देने से जिंद मंदिर को अधूरा ही छोड़ गए। यह प्राचीन मंदिर चतुर्भुुज मंदिर के नाम से जाना जाता है।
नीलम पत्थर से निर्मित थी मूर्तियां, तीन दशक पहले हो गई चोरी
मंदिर में भगवान चतुर्भुुज की नीलम के पत्थर से बनी हुई शानदार मूर्तियां थी, जो लगभग तीस वर्ष पहले चोरी हो चुकी। जिनका आज तक कोई पता नहीं चला है। उस समय मंदिर में पूजा देवस्थान विभाग की ओर से पंजीकृत पंडा बाबा करते थे। रेणी गांव में स्थित इस मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक ऊपर कलात्मक छतरी है। जिसमें भगवान भोलेनाथ विराजमान है। द्वार पर ही देवदासी की प्रतिमाएं हैं, जो खंडित हो चुकी है। ऊंचाई पर होने के कारण मंदिर दूर से ही लोगों को दिखाई दे जाता है। रेणी में आने वाला कोई भी मेहमान यहां मंदिर में दर्शन किए बिना नहीं जाता था।
शिलाओं से निर्मित था मार्गपहले मंदिर के द्वार से एक किलोमीटर तक पत्थर की शिलाओं से निर्मित मार्ग था। जिसके दोनों तरफ रेणी गांव का मुख्य बाजार स्थित था। जिसके अब अवशेष ही बचे है। ऐसा ही मंदिर भानगढ़ में बना हुआ है। दोनों की शैली व समय एक ही बताया जाता है। मंदिर परिसर में कमरे बने हुए है। जिनमें दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु रात्रि विश्राम करने के उपयोग लेते थे, लेकिन सरकार व प्रशासन की उदासीनता से अब यह सब अपना अस्तित्व खोते जा रहे है।
यह बोले लोगध्यान दिया जाए तो बचाया जा सकता है
यदि सरकार व प्रशासन मंदिर पर ध्यान दे, तो इसकी ऐतिहासिकता व शैली दोनों को बचाया जा सकता है। पहले इस मंदिर की सुंदरता दूर तक प्रसिद्ध थी। प्रशासन की उदासीनता ने खंडर बना दिया।
जगमोहन शर्मा, शिक्षाविद, रेणी।
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आस्था का है प्रतीक
यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक था और है। शिलाओं से बनी सड़क व दोनों तरफ बाजार था, लेकिन वक्त के साथ सब बदल गया। प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
प्रवीण सेन, रेणी।
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अवगत कराएंगे
पूरा महत्व होने के कारण यदि सरकार इसका संरक्षण करती है तो, इसे बचाया जा सकता है। सरकार को अवगत करवाएंगे।
आशा सैदावत, जिला पार्षद।