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30 जुलाई को लॉन्च होगा मिशन निसार, उड़ान भरेगी दुनिया की सबसे महंगी सैटेलाइट

श्रीहरिकोटा से 30 जुलाई को एक ऐसा रॉकेट लॉन्च होने जा रहा है, जिसे देखकर अमरीका को गर्व भी होगा और थोड़ी जलन भी। क्योंकि इस रॉकेट से उड़ान भरेगी दुनिया की सबसे महंगी सिविलियन अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट — NISAR, जिसे NASA और ISRO ने मिलकर बनाया है। यह मिशन सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि ये भारत और अमरीका के रिश्तों का आइना है, जो इतिहास की कई परतों को खोलेगा।

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Pankaj Meghwal

Jul 27, 2025

श्रीहरिकोटा से 30 जुलाई को एक ऐसा रॉकेट लॉन्च होने जा रहा है, जिसे देखकर अमरीका को गर्व भी होगा और थोड़ी जलन भी। क्योंकि इस रॉकेट से उड़ान भरेगी दुनिया की सबसे महंगी सिविलियन अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट — NISAR, जिसे NASA और ISRO ने मिलकर बनाया है। यह मिशन सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि ये भारत और अमरीका के रिश्तों का आइना है, जो इतिहास की कई परतों को खोलेगा।

NISAR यानी NASA-ISRO Synthetic एपर्चर Radar एक उन्नत पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। इसका वजन करीब 2,392 किलो है। यह सैटेलाइट पूरी धरती को हर 12 दिन में हर मौसम और दिन-रात में स्कैन करेगा। इस सैटेलाइट में दो खास राडार लगे हैं…

NASA का L-बैंड राडार जो पेड़ों और मिट्टी के नीचे तक झांक सकता है। वहीं इसरो का S-बैंड राडार सतह के बदलावों को रिकॉर्ड करता है। इन दोनों राडार्स को एक 12 मीटर के बड़े एंटीना पर लगाया गया है, जो एक स्कूल बस जितना बड़ा है।

NISAR धरती पर होने वाले बदलाव जैसे कि ज़मीन का धंसना, बर्फ की चादरों का पिघलना, और जंगलों की स्थिति को रिकॉर्ड करेगा — जो प्राकृतिक आपदाओं से पहले चेतावनी देने में बहुत मददगार साबित होगा।

यहां एक दिलचस्प बात ये भी कि नासा जैसी स्पेस ऑर्गेनाइजेशन इस मिशन को भारत से क्यों लॉन्च करवाना चाहता है? दरअसल NISAR को भारत के GSLV मार्क 2 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। इस रॉकेट को भारत का खुद का बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन शक्ति देगा। — यह वही टेक्नोलॉजी जिसे 1990 के दशक में अमरीका भारत को नहीं देना चाहता था। उस वक्त अमेरिका ने रूस पर दबाव डालकर भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करसे रोक दिया था। इसके बदले में भारत को सिर्फ कुछ रेडीमेड इंजन ही मिल सके। लेकिन भारत ने हार नहीं मानी। ISRO ने 20 साल की मेहनत के बाद इस क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल की। और अब वही तकनीक NISAR को अंतरिक्ष में पहुंचाएगी।

इस प्रोजेक्ट पर NASA ने करीब 1.15 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। वहीं ISRO का खर्च सिर्फ 800 करोड़ रुपए यानी करीब 100 मिलियन डॉलर रहा। खर्च में इतना बड़ा फर्क होने की कई वजह हैं…

ISRO ज़्यादातर काम इन-हाउस करता है, जबकि NASA बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स मल्टीनेशनल कंपनियों को देता है। ISRO एक ही उड़ान योग्य मॉडल बनाता है, NASA एक इंजीनियरिंग मॉडल और एक उड़ान मॉडल – यानी डबल लागत से काम करता है।

भारतीय वैज्ञानिक साधारण गेस्टहाउस में रुकते हैं, वहीं NASA अपने वैज्ञानिक लग्ज़री होटल्स के साथ ट्रैवल का खर्च भी खुद ही वहन करता है।

ISRO इंजीनियर कम वेतन में ज्यादा घंटे काम करते हैं, और वीकेंड पर भी काम करने को तैयार रहते हैं। वहीं अमरीका में कांट्रैक्ट कर्मचारियों के काम के घंटे तय होते हैं।

और सबसे बड़ी बात भारत का ISRO कोई लाभ कमाने वाला संगठन नहीं है, जबकि NASA के प्रोजेक्ट्स में कई कॉर्पोरेट हित जुड़े होते हैं, जिससे लागत काफी बढ़ जाती है।

आपको बता दें कि यहां इतिहास का एक चक्र पूरा हो रहा है, क्योंकि ये वही अमरीका है जिसने कभी भारत पर तकनीकी प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन आज अपने सबसे महंगे सैटेलाइट को भारत से लॉन्च करवा रहा है — और वो भी उस रॉकेट से, जिसे 90 के दशक में खुद रोकना चाहता था। इस लॉन्च को देखने के लिए NASA के टॉप अधिकारी खुद श्रीहरिकोटा में मौजूद रहेंगे। यह एक ऐतिहासिक पल है, जब दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले दोनों देश मिलकर अंतरिक्ष की नई ऊंचाइयों को छूने जा रहे हैं।

भारत और अमरीका का स्पेस कोऑपरेशन नया नहीं है:

साल 1963 में भारत का पहला रॉकेट भी अमरीकी Nike Apache था।

1975 में जिस SITE प्रोजेक्ट से भारत के गांवों तक शिक्षा पहुंची — वो भी NASA के साथ मिलकर किया गया था।

2008 में चंद्रयान-1 में चांद पर पानी की खोज करने वाले दो अमरीकी उपकरण मुफ्त में भेजे गए थे।

और अब NISAR भी उसी रिश्ते की अगली कड़ी है। जब यूरोपीय देश इस सैटेलाइट से हट गए थे, तब ISRO ने 2014 में इसे साथ बनाने के लिए हाथ बढ़ाया।

NISAR सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं, बल्कि ये भारतीय आत्मनिर्भरता, वैज्ञानिक प्रतिबद्धता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक है। एक तरफ अमरीका की टेक्नोलॉजी है, दूसरी तरफ भारत की फ्रुगल इंजीनियरिंग — अगर दोनों मिल जाएं, तो इंसान अंतरिक्ष में एक बड़ी छलांग लगा सकता है। ये लॉन्च दिखाता है कि कैसे भारत, जिसने कभी तकनीक के लिए दरवाज़े खटखटाए थे, अब वही देश है जहां से अमेरिका अपनी सबसे महंगी सैटेलाइट लॉन्च करवा रहा है।