बुलंदशहर। 15 अगस्त पर आज आपको बुलंदशहर का एक ऐसा गांव दिखाते हैं, जिसमे आबादी के 50 फीसदी लोग फौज में हैं। इस गांव के हर घर से एक बेटा सेना में रहकर देश की हिफज़त कर रहा है। इतना ही नहीं अब तक इस गांव के 100 से ज्यादा लाल जाम-ए-शहादत पी चुके हैं, फिर भी गांव के बच्चे- बच्चे में देश के लिए जान-निसार करने का जज्बा है।
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50 फीसदी लोग फौज में
बुलंदशहर के सैदपुर गांव में 50 फीसदी लोग फौज में हैं। सैदपुर गांव अपनी शहादतों को लेकर जाना जाता है। देश को आजाद कराने के लिए भी सैदपुर ने लड़ाई लड़ी है। 10 हजार की आबादी के इस गांव के हर घर से एक न एक बेटा फौज में रहकर देश की अलग-अलग शरहदों पर वतन की रक्षा कर रहा है। अगर सैदपुर गांव के इतिहास की बात की जाए तो ये गांव मेजर, जरनल, ब्रिगेडियर, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) अौर सीमा सुरक्षा बल (बीएसफ) को उच्च अधिकारी दे चुका है।
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सेना में भेजना चाहते हैं बच्चे को
गांव क्रांतिकारियों के बलिदानों से इस कदर प्रेरित है कि वह सिर्फ आजादी के दिन ही नहीं बल्कि अमूमन हर दिन अपने बच्चों को क्रांतिकारियों के बलिदानों की जानकारी देते हैं। अगर ग्रामीणों की मानें तो इस गांव में किसी भी बच्चे के जन्म लेने पर उसके माता पिता उसे सेना में ही भेजना चाहते हैं।
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ये हैं इनके हीरो
सैदपुर के बच्चों और युवाओं में देश प्रेम का एक अलग ही जज्बा देखा जाता है। उनका हीरो कोई और नहीं बल्कि क्रांतिकारी और देश के लिए बलिदान देने वाले इस गांव के वीर सपूत ही हैं। बच्चे बचपन से कुछ इस तरह तैयारी शुरू कर देते हैं कि अपनी उम्र में आने के बाद ये भी सरहदों पर जाकर देश की रक्षा कर सकें।
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100 से अधिक लाल हो चुके हैं शहीद
जानकारी के अनुसार, अब तक इस गांव के 100 से अधिक लाल देश की रक्षा करते-करते शहीद हो चुके हैं। इसे इस गांव के लोग अपना सौभाग्य मानते हैं। इस गांव में देश पर जान निसार करने की रवायत आज भी बरकरार है। आंकड़े बताते हैं गांव के दो हजार से ज्यादा लोग आज भी अलग-अलग सरहदों पर रहकर देश की रक्षा में लगे हैं। कुछ जवान तो अब रिटायर हो चुके हैं।
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2000 से ज्यादा युवक फौज में
रिटायर सूबेदार नेपाल सिंह का कहना है कि वह 1958 में फौज में भर्ती हुए थे। 1986 में वह रिटायर हुए थे। 1961 में पाकिस्तान से हुई लड़ाई में उन्होंने हिस्सा लिया था। इसके बाद चीन के साथ 1962 के युद्ध में वह प्रिजनर आपॅ वार भी रहे। उनका कहना है कि उनके गांव के 2000 से ज्यादा युवक फौज में नौकरी कर रहे हैं।
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सेना के नाम से जाना जाता है गांव को
रिटायर सूबेदार स्वरूप सिंह का कहना है कि गांव को देश में सेना के नाम से जाना जाता है। गांव के लोगों ने द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर अभी तक तक सभी लड़ाइयों में हिस्सा लिया था। गांव में बना मेमोरियल इस बात का गवाह है। भारत गौरव सम्मान से सम्मानित स्वरूप सिंह ने कहा कि हा तरह के ऑपरेशन में गांव के किसी न किसी बेटे ने बलिदान दिया है। 1971 भारत-पाक युद्ध में वह जम्मू-कश्मीर के छंब जौडि़या में वह तैनता थे। उन्होंने पाकिस्तानियों को खदेड़ किया था। पाकिस्तानियों के पास पैटर्न टैंक थे, लेकिन फिर भी उन्हें हरा दिया। उस समय 93 हजार पा सैनिकों को कैद किया गया था।
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सेना में अच्छी पोस्ट पर तैनात हैं गांव के लोग
वहीं, गांव के युवा शिवम शर्मा ने कहा कि वह एनसीसी में है। देश की सेवा करने के लिए वह इस रास्ते पर चल रहा है। ग्राम प्रधान धीरज सिरोही का कहना है कि वह खुद का काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं। उनके गांव के लोग कोई कर्नल अौर अच्छी पोस्ट पर सेना में तैनात हैं। यहां के लोगों का जोश अौर जज्बा कम नहीं है।
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कई युद्धों में लिया है हिस्सा
बताया जाता हैं कि सैदपुर में शहादत की शुरुआत 1914 प्रथम विश्व युद्ध से हुई थी, जिसके बाद इस गांव के वीर सपूत, 1962, 1965, 1971 और 1999 के कारगिल के युद्ध में भी देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गए। उन वीर सपूतों के इस बलिदान को, देश कभी नहीं भुला सकेगा।