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बाघों की सुरक्षा पर ध्यान, अन्य वन्यजीव भगवान भरोसे

जिले के जंगलों को भले ही टाइगर रिजर्व का दर्जा मिल गया है, लेकिन वन विभाग अभी तक सिर्फ बाघों की सुरक्षा तक ही सीमित होकर रह गया है। विभाग की उदासीनता के कारण आए दिन वन्यजीव मर रहे हैं, फिर भी कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो सकी है।

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जिले की समृद्ध जैवविविधता व 27 प्रतिशत भूभाग वन क्षेत्र होने से यहां बाघ बघेरों सहित सभी वन्यजीव मौजूद है। 16 मई 2002 को चम्बल घड़ियाल अभयारण्य, रामगढ विषधारी अभयारण्य व कालदां के जंगलों के साथ भीलवाड़ा जिले के कुछ जंगलों को मिलाकर प्रदेश का चौथा व देश का 52 वां टाइगर रिजर्व बना दिया। टाइगर रिजर्व बनने के साथ ही यहां अब दो डीएफओ के पद भी स्वीकृत होकर कार्य करने लगे हैं। टाइगर रिजर्व बनने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि जिले में वन एवं वन्यजीवों का बेहतर संरक्षण हो सकेगा, लेकिन विभाग की नकारात्मक कार्यशैली व आपसी सामंजस्य नहीं होने से टाइगर रिजर्व के नाम पर केवल रामगढ़ विषधारी अभयारण्य के करीब 300 वर्गकिलोमीटर वन क्षेत्र को ही विकसित करने में लगे हुए हैं।

वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल
हाल ही में जिले में दो शावकों सहित 5 पैंथरों की मौत होने वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। वन्यजीवों का वन क्षेत्रों से बाहर निकलना, वन क्षेत्रों में नई विधुत लाइन बिछाना, कालदां जैसे रिजर्व वन क्षेत्रों में अवैध चराई होना तथा वन क्षेत्र में गुजरने वाले राजमार्गों पर सुरक्षा दीवार व अंडर पास नहीं होना वन्यजीवों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।