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लेफ्टिनेंट बने अजयसिंह राजपुरोहित से विशेष बातचीत

जोधपुर जिले के एक छोटे से गांव तिंवरी के रहने वाले अजयसिंह राजुपरोहित अपने परिवार के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय थल सेना में सीधे कमीशन पाया है

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मायड़ ऐड़ा पूत जण के दाता के सूर, नीतर रहिजे बांझड़ी मती गंवाइजे नूर…। राजस्थानी की इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए राजस्थान के सपूतों ने एक बार फिर राजस्थान की आन-बान एवं शान का डंका बजवाया है।राजस्थान की धरती शूरवीरों की धरती रही है।सेना से राजस्थान के लोगों का गहरा लगाव रहा है। राजस्थान उन प्रदेशों में शामिल हैं जहां के युवाओं में सेना में भर्ती होने का जज्बा कूट-कूट कर भरा है।अपनी पराक्रम एवं वीरता के बूते राजस्थान के योद्धाओं ने अपने साहस का परिचय दिया है।राजस्थान के जोधपुर जिले के एक छोटे से गांव तिंवरी के रहने वाले अजयसिंह राजुपरोहित अपने परिवार के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय थल सेना में सीधे कमीशन पाया है।

अजयसिंह राजपुुरोहित अफसर प्रशिक्षण अकादमी चेन्नई में 11 महीने के कठिन प्रशिक्षण के बाद वे सेना में सीधे लेफ्टिनेंट बन गए। अजयसिंह राजपुरोहित ने दिल्ली पब्लिक स्कूल जोधपुर से बारहवीं की शिक्षा पूरी करने के बाद जोधपुर के जीत कालेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद भारतीय थल सेना में सीधे लेफ्टिनेंट के पद पर चयनित हुए। लेफ्टिनेंट का प्रशिक्षण पूरा कर चुके अजयसिंह राजपुरोहित का कहना है कि प्रशिक्षण कठिन जरूर था लेकिन इससे बहुत सीखने को मिला। प्रशिक्षण ने जीवन की दिशा ही बदल दी।

शारीरिक एवं मानसिक रूप से काफी मजबूती मिली।आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ा है। अकादमी में रहते क्रास कंट्री, 40 किमी चलना, लम्बी कूद, निशानेबाजी समेत कई स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। प्रशिक्षण के दौरान अनुशासन को जीवन में उतारा तो समय प्रबंधन के गुर सीखे। चेन्नईके गर्म मौसम में थोड़ी कठिनाईजरूर हुई लेकिन प्रशिक्षण के बाद जीवन में बहुत बदलाव दृष्टिगोचर हो रहा है।उनकी बैडमिंटन में भी रूचि रही है।

अजयसिंह राजपुरोहित के पिता गोविन्दसिंह राजपुरोहित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।माता बाया देवी राजपुरोहित गृहिणी है। अजय के तीनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है।अजयसिंह के पिता गोविन्दसिंह ने बताया कि अजय शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहा है। उन्होंने उसे हर तरह से मोटीवेट किया।मां ने बताया कि अजय जब तीन-चार साल का था तभी उसके खिलौंनों में बंदूके और इसी तरह के खिलौने शामिल थे। बाद में उसने बड़ा होकर सेना में जाने का निश्चय किया और सफलता पाई।