छतरपुर. शहर से संचालित हो रही बसों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है। एक तरफ जहां सड़कों पर सिंगल डोर बसें सड़कों पर दौड़ लगा रही हैं। वहीं दूसरी ओर बसों में किराया सूची भी चस्पा नहीं है। इसके साथ ही किराया अधिक लेने पर जब यात्री विरोध करते हैं तो उन्हें रास्ते में ही उतार दिया जाता है। इस तरह के मामले कई बार सामने आने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा नियमों की अनदेखी करने वाले बस चालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
जिले मुख्यालय छतरपुर में स्थित दोनों बस स्टैंड से प्रतिदिन करीब ४०० से अधिक बसें जिले के सभी रूटों के साथ-साथ, इंदौर, भोपाल, सागर, पन्ना, सतना, जबलपुर, चित्रकूट, बांदा, महोबा, कानपुर, झांसी, ग्वालियर, आगरा, दिल्ली सहित देश के अन्य क्षेत्रों के लिए चलती हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर बसों में शासन के नियमानुसार यात्रियों को मिलने वाली सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। बस संचालक सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं और मनमानी तरीके से बसों का संचालन कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी संबंधित आरटीओ विभाग के अधिकारियों द्वारा इन बस चालकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है।
आलम यह है कि शहर से निकलने वाली ज्यादातर यात्री बसें जर्जर हो चुकी हैं। अपने गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही कई बार उन्हें रास्ते में मरम्मत की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में इन बसों से सफर करने वाले लोगों को खासी परेशानी झेलनी पड़ती है। महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें भी सुरक्षित नहीं रहतीं। महिला यात्रियों को मजबूरी में खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है। वहीं इसमें किराया की जानकारी, बीमा, फिटनेश, परमिट आदि की जानकारी अंकित नहीं हैं। साथ ही चालक परिचालक वर्दी पहनने से दूरी बना रहे हैं। हालात ये हैं कि जिले के किसी भी बस में नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
यात्रियों को नहीं मिलती बसों की जानकारी
परिवहन विभाग की अनदेखी और लापरवाही के चलते यात्री बसों में जमकर मोटर व्हीकल एक्ट की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। प्रशासन का ध्यान इस ओर बिल्कुल नहीं है। सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि यात्रियों को दी जाने वाली टिकट में न तो यात्री बस का नाम होता है और न ही बस का नंबर व दूरी। ऐसी हालत में सबसे ज्यादा मुसीबत तो उन लोगों को होती है जो किसी कारण से हादसे का शिकार हो जाते हैं, उन्हें न्यायालय में यह सिद्ध करना मुश्किल हो जाता है कि वे दुर्घटनाग्रस्त हुई बस में सफर कर रहे थे। नागरिकों ने प्रशासन से टिकट पर्ची पर यात्री बसों का नाम दर्ज करवाने की मांग की है।
किराया सूची नहीं होने पर होते हैं विवाद
किराया सूची बसों में न होने के कारण बस कंडक्टर और यात्रियों में आए दिन विवाद की स्थिति बनती है। परिचालक इन बसों में सफर करने वाले यात्रियों से मनमाना किराया वसूलते हैं और जब कोई यात्री इसका विरोध करने की हिम्मत दिखाता है तो बस चालक और परिचालक उसे रास्ते में ही बस से उतारने की धमकी देने के साथ बस में बैठी सवारियों के बीच बदसलूकी करने को तैयार रहते हैं।
वर्दी भी नहीं पहनते ड्राइवर व कंडक्टर
नियमों के मुताबिक बस के ड्राइवर व कंडक्टर को वर्दी पहनना अनिवार्य है। साथ ही उसमें उनकी नेम प्लेट भी लगी होना चाहिए। इससे यात्री उनका नाम जान सके। इससे यदि किसी तरह की शिकायत हो तो वह नाम सहित शिकायत कर सकें। इसका पालन नहीं हो रहा है। उल्लेखनीय है कि यात्रियों को सफर के दौरान नजदीकी पुलिस स्टेशन व हेल्पलाइन नंबरों को अपने साथ रखना चाहिए। इससे काफी हद तक असुविधा से बचा जा सकता है। लेकिन अफसर इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार ये जरूरी
– सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नियमों के अनुसार बस में फस्र्ट एड बॉक्स होना चाहिए
– अग्निशमन यंत्र अनिवार्य है, जिससे बसों में आगजनी की दुर्घटनाओं से बचा जा सके।
– 1 से 16 नंबर तक की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होना चाहिए।
– सभी बसें डबल डोर होना चाहिए, जिससे आगजनी जैसी घटना होने पर यात्री जल्दी से बाहर निकल सकें।
– बसों में एक इमरजेंसी विंडो होना जरूरी है, जो आपातकाल के समय काम आती हैं।
– सभी बसों में किराया सूची चस्पा होना अनिवार्य है, जिससे संचालक अधिक किराया न वसूल सकें।
– सभी बसों में चालक और परिचालक वर्दी पहनी हो और चालक को बैज लगाना अनिवार्य है।
– सभी बसों में परमिट बीमा की कब से कब तक की बैधता, बीमा की बैधता, प्रदूषण की बैधता आदि बस के आगे के सीसे और अंदर अंकित होना।
– जीपीएस (ग्लोबल सिस्टम) से सभी वाहन जुड़े होने चाहिए।
– ड्राइवर, कंडक्टर का पुलिस वेरिफिकेशन व जानकारी होनी चाहिए।
– ड्राइवर सीट के पीछे नाम व मोबाइल नंबर दर्ज होना चाहिए।
– यात्री बस में पूरे रूट की जानकारी का उल्लेख होना चाहिए।