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सांवलिया सेठ मंदिर में लुटाए 15 क्विंटल मालपुए

मेवाड़ के कृष्णधाम सांवलिया जी मंदिर में बरसों से चली आ रही परंपरा के तहत 15 क्विंटल मालपुए लुटाए गए। यह एक अनोखी परंपरा हैं। अन्नकूट का प्रसाद पाने के लिए श्रद्धालुओं में बुधवार तड़के पांच बजे तक होड़ मची रही।

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चित्तौडग़ढ़
मेवाड़ के कृष्णधाम सांवलिया जी मंदिर में बरसों से चली आ रही परंपरा के तहत 15 क्विंटल मालपुए लुटाए गए। यह एक अनोखी परंपरा हैं। अन्नकूट का प्रसाद पाने के लिए श्रद्धालुओं में बुधवार तड़के पांच बजे तक होड़ मची रही।
सांवलिया जी मंदिर में अन्नकूट का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मालपुए की लूटने के लिए बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए। मंदिर मंडल की ओर से 15 क्विंटल मालपुए बनाए गए थे। जिसके बाद मंदिर में ही लगभग दो क्विंटल मालपुए लुटाए गए। मालपुए लुटाने के बाद लगभग पांच प्रसादी में बांटे गए। जबकि 8 क्विंटल मालपुए गांव में जाकर लुटाए गए। इसमें गुजरात और मध्य प्रदेश से आए श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। दीपावली के बाद गुजरात से काफी संख्या में श्रद्धालु नाथद्वारा और सांवलिया सेठ के दर्शन के लिए आते हैं।
मंदिर में मंगलवार शाम गोवर्धन पूजा के बाद 15 क्विंटल मालपुए बनाए गए थे। रात को आरती के बाद सांवलिया सेठ को भोग लगाया गया। इसके बाद रात 12 बजे मंदिर मंडल ने मालपुए लुटाए। ग्रामीणों के साथ-साथ बाहर से आए हुए श्रद्धालुओं में भी होड़ मची रही। मंदिर परिसर खचाखच भर गया। ओसरा पुजारी ने मंदिर मंडल के अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में मालपुए लुटाए। मंदिर में विशेष आरती का आयोजन हुआ।

डेढ़ सौ साल से चली आ रही यह परंपरा
सांवलिया जी मंदिर में अन्नकूट के मालपुए लुटाने की परंपरा आज-कल की नहीं, बल्कि करीब डेढ़ सौ बरस पुरानी हैं। इसमें हालाकि बड़ा खर्चा मंदिर मण्डल की ओर से किया जाता है। लेकिन नगर के आमजन की हिस्सेदारी रखने के लिहाज से अन्नकूट के लिए चंदा भी एकत्रित किया जाता है। लोग नई फसल का पहला हिस्सा सांवलिया जी को अर्पित करते हैं। इसके अलावा अन्नकूट के लिए सब्जियां आदि सामग्री देते हैं। एक समय था जब आसपास के 16 गांवों से लोग नई फसल का सांवलिया जी का हिस्सा लेकर यहां पहुंचते थे।
इसलिए लुटाते हैं मालपुए
सांवलिया सेठ के मंदिर में तैयार अन्नकूट का प्रसाद ग्रामवासियों व श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है। पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने के कारण मालपुए लुटाकर उन तक पहुंचाए जाते हैं, ताकि हर श्रद्धालु को प्रसाद प्राप्त हो सके।

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