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चिप्स और सूप बनाने के लिए हो रही है कछुओं की तस्करी, वीडियो में देखें- हुआ हैरान करने वाला खुलासा

Exclusive : इटावा की चम्बल सेंचुरी से विदेशों तक होती है कछुओं की तस्करी...

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इटावा. जिले की पुलिस ने तीन कछुआ तस्करों को गिरफ्तार किया है, जिनके पास से दुर्लभ प्रजाति के 754 कछुए बरामद हुए हैं। चिप्स बनाने की खातिर इन कछुओं को बांग्लादेश ले जाने की तैयारी थी। इटावा के अपर पुलिस अधीक्षक रामबदन सिंह ने बताया कि बरामद किये गये कछुओं की कीमत मात्र डेढ़ लाख रुपये ही है, लेकिन जब यही कछुए कोलकाता और नेपाल में ले जाये जाते हैं तो इनका रेट 15 से लेकर 20 लाख रुपये तक पहुंच जाता है। तस्करों की गिरफ्तारी से एक बार फिर इटावा चम्बल सेंचुरी के कछुओं की विदेशों तक तस्करी का मामला सामने आया है।

पकड़े गये कछुआ तस्करों से पूछताछ में पता चला है कि तस्कर चोरी-छिपे यमुना चम्बल आदि नदियों से कछुओं को पकड़ते हैं, जिन्हें वह कोलकाता व नेपाल में ले जाकर व्यापारियों को बेचकर अच्छे दाम हासिल करते हैं। यह व्यापारी इन कछुओं को बांग्लादेश के माध्यम से चीन समेत साउथ एशिया के कई देशों में ले जाते हैं। इटावा के जिला वन्य अधिकारी सत्यपाल सिंह बताते हैं कि इटावा में चम्बल आदि नदियों से कछुए की चिप्स निकालने के काम करने में कछुआ तस्कर जुटे हुए हैं। गुप्तचरों के माध्यम से 20 के आसपास संभावित नाम सामने आ गये हैं। कछुए की चिप्स को निकालने वाले कछुए तस्करों को पकड़ने के लिए पुलिस टीम के साथ वन विभाग की टीमों को सक्रिय कर दिया गया है।

सबसे पहले इटावा में ही आया था मामला
डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि वैसे सबसे पहले कछुओं की चिप्स बनाए जाने का मामला साल 2000 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में ही सामने आया था, लेकिन तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि कछुआ की तस्करी के बाद चिप्स बनाकर बाजार में उतारा जाता है। अब जिंदा कछुआ के बजाय कछुओं की चिप्स का कारोबार बड़े पैमाने पर चल निकला है, जो हिंदुस्तान के रास्ते होते हुए थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर आदि देशों तक जा पहुंचा है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1979 में सरकार ने कछुओं सहित दूसरे जलचरों को बचाने के लिए चम्बल से लगे 425 किमी तटीय क्षेत्र को राष्ट्रीय चम्बल सेंचूरी घोषित किया था।

कछुओं के सूप और चिप्स की खासी डिमांड
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि विदेशों में निलसोनिया गैंगटिस, चित्रा, इंडिका और सुंदरी कछुओं की खासी डिमांड है। इस प्रजाति के कछुए कछुए मांसाहारी होते हैं, जिनकी निचली सतह में रिच प्रोटीन की मात्रा बहुत ही अधिक होती है। साउथ ईस्ट देशों में इन कछुओं की स्किन को उबाल कर प्रोटीन बनाई जाती है और फिर सूप के तौर पर इसको इस्तेमाल करते हैं। चीन आदि देशों में इन्हीं के माध्यम से प्रोटीन सूप का प्रयोग किया जाता है, जिसका मूल्य प्रति किलोग्राम लाखों में होता है। इसके अलावा कछुए की निचली सतह को प्लेस्ट्रान कहते हैं, जिसे काटकर अलग कर लिया जाता है। फिर उसे कई घंटों तक पानी में उबाला जाता है। उसके बाद इस परत को सुखाकर उसके चिप्स बनाए जाते हैं। एक किलो वजन के कछुए में 250 ग्राम तक चिप्स बन जाते हैं। निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका नामक कछुए की प्रजाति से प्लेस्ट्रान निकाली जाती है। डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि चम्बल इलाके में मात्र 5000 रुपये प्रति किलोग्राम से बिकने वाले कछुए के चिप्स हिंदुस्तान के बाहर पहुंचते ही दो लाख रुपये मूल्य तक की हो जाती है। इसी लालच के चलते कछुओं का बड़े पैमाने पर शिकार कर, उनकी तस्करी की जाती है।