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प्रतिवर्ष 3 हजार आते है मरीज, पुरुषों में सिजोफ्रेनिया होने की संभावनाएं अधिक

सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। राजधानी में प्रतिवर्ष 2 से 3 हज़ार तक स्कीजोफ्रेनिया के मरीज़ आ रहे हैं। यह बीमारी मरीज में मुख्य रूप से भ्रम, दुस्वप्न पैदा करती है। साथ ही इस बीमारी में मरीज के सोचने की शक्ति भी कम हो जाती है।

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वर्तमान में वैज्ञानिक प्रमाणों से यह साबित हो चुका है की यह बीमारी कोई जादू टोना या प्रेतात्मा जैसी भ्रांतियों से संबद्ध न रखकर एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसके लक्षणों को उतना जल्दी इसका निवारण किया जा सकता है। सवाई मानसिंह अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ धर्मदीप सिंह से हुई पत्रिका की बातचीत में उन्होंने सिजोफ्रेनिया से जुडे सवालों के जवाब दिए।

प्रश्न: दुनिया भर में कितने लोग सिजोफ्रेनिया से प्रभावित हैं?उत्तर : आंकड़ों के अनुसार लगभग कुल जनसंख्या के एक प्रतिशत लोगों में यह रोग पाया जाता है। आम तौर पर पुरुषों में इसके होने की संभावना अधिक होती है और इसके शुरुआती लक्षण युवावस्था में ही दिखने लग जाते हैं।

प्रश्न: सिजोफ्रेनिया कितने प्रकार का होता है?
उत्तर : सिजोफ्रेनिया को लक्षणों के आधार पर पैरानॉइड, हेबेफ्रेनिक, कैटाटोनिक व अन्य प्रकारों में बांटा गया है।
पैरानॉयड सिजोफ्रेनिया में पीड़ित व्यक्ति को संदेह, जुनून या भ्रम की स्थिति बड़ जाती है और ऐसी स्थिति में वह वैसा ही करने लगता है, जो उसे सही लगता है चाहे उसके पीछे कोई वास्तविकता हो या न हो।
कैटेटोनिक सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से मंद हो जाता है। इतना ही नहीं कुछ केस में मरीज के चेहरे पर भी कोई भाव नहीं होता है। मरीज में खाने, पीने या पेशाब जाने तक की भावना नहीं पैदा होती है। कभी-कभी कैटेटोनिया कई घंटों तक रहता है, जिसके कारण उनके अस्पताल जाने की नौबत तक आ जाती है।
हेबेफेरेनिक सिजोफ्रेनिया
यह सिजोफ्रेनिया का वह रूप है जिसमें रोगी के भीतर भावनात्मक परिवर्तन, भ्रम और व्यवहार में बदलाव, गैर-जिम्मेदार और अप्रत्याशित व्यवहार जैसे लक्षण सामान्य होते हैं। इन रोगियों का मन हमेशा उदास रहता है और कभी भी मौजूदा स्थिति से मेल नहीं खाता है।

प्रश्न: क्या इसका इलाज संभव है? यदि हा तो ठीक होने में लगभग कितना समय लगता है?

उत्तर : हां बिलकुल ! वर्तमान में ऐसी दवाइयां उपलब्ध है जिसमे अगर मरीज को जल्द से जल्द दी जाएं तो बीमारी में अच्छा सुधार आता है। शुरुआत में जल्दी उपचार उपलब्ध करवाए जाने पर पूर्ण सुधार के बाद लगभग 1 साल तक दवाएं दिए जाना सलाहित होता है। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर दवाएं लंबे वक्त तक भी देनी पड़ सकती हैं। कुछ केसेज में आजीवन भी दवाएं देना आवाश्यक होता है। बीमारी की अच्छे से मॉनिटरिंग की जाए तो मरीज को उतनी ही आसानी से ठीक किया जा सकता है जितना बीपी, थायराइड और शुगर मरीजों को।

प्रश्न : मरीज़ से किसी को जान का खतरा तो नहीं है? मरीज से क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

उत्तर: अलग अलग शोधों के अनुसार स्कीजोफ्रेनीया से पीड़ित मरीजों में दूसरों के लिए हिंसक बर्ताव बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है। अगर होता भी है तो ज्यादातर ऐसा उनको इलाज न मिल पाने की स्थिति में होती है। दूसरों को नुकसान पहुंचाने से अधिक संभावना ऐसे मरीजों में स्वयं को नुकसान पहुंचाने की होती है। आपके निकट कोई ऐसा मरीज़ है तो उसके परिजनों को जागरूक कर उचित समय पर इलाज उपलब्ध करवाना चाहिए जिससे स्थिति और गंभीर ना हो पाए। हम आंकड़ों की और ध्यान दें तो लगभग 10 से 15 % मरीजों में हिंसात्मक व्यवहार देखने को मिलता है। ऐसे में हिंसात्मक परिस्थिति में मरीज़ का क्रोध शांत करने का प्रयास करना चाहिए और यथाशीघ्र मनोचिकित्सक से इलाज के लिए संपर्क करना चाहिए।

प्रश्न: बीमारी के शुरूवाती लक्षण कैसे समझें?

उत्तर : स्कीजोफ्रेनीया में पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्रकार के लक्षण हो सकते हैं। पॉजिटिव लक्षणों में डिलुजन ( ऐसी बातों में भरोसा करना जिनके पीछे कोई वास्तविकता ना हो ), हेलुसिनेशन ( अकेले में अपने आप से बड़बड़ाते रहना, अकारण हंसते रहना, आसपास कोई न होने पर भी आवाज़ों का सुनाई देना), अजीब व गरीब बातें करना और उग्र व अस्वीकार्य बर्ताव करना व अन्य हो सकते हैं।
नेगेटिव लक्षणों के अंतर्गत गुमसुम बैठे रहना, किसीसे कोई बात न करना, ध्यान नहीं रख पाना, भावनात्मक उदासीनता आदि हो सकते हैं।

प्रश्न: क्या मरीज़ मेडिटेशन या योग की मदद से भी इस बीमारी पर काबू पा सकते हैं ?
उत्तर : नहीं ! शिजोफ्रेनिया दिमाग में रासायनिक असंतुलन के कारण होने वाला रोग है जिसमें शुरुआती दौर में मरीज को अपने बीमार होने का बोध नहीं होता है। ऐसे में बीमारी को शुरुआत में नियंत्रित करने के लिए दवाइयां दिए जाना आवश्यक है। लेकिन सुधार आने के बाद एक स्वस्थ जीवन शैली के तौर पे योग या मेडिटेशन को आप अपनाते हैं तो यह आपको तनावमुक्त रखने में सहायक हो सकता है।