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जानिए क्या है पर्माकल्चर तकनीक, जिससे बंजर भूमि भी खिल उठेगी

कृति के बिना धरती पर जीवन की कल्पना असंभव है। जब-जब प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास हुआ है, उसका विनाशकारी परिणाम भी मानवजाति को भुगतना पड़ा है। इसे बचाने और संरक्षित करने की दिशा में काम कर रही हैं बड़ौदा की रीना राज रस्तोगी

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बड़ौदा/जयपुर. प्रकृति के बिना धरती पर जीवन की कल्पना असंभव है। जब-जब प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास हुआ है, उसका विनाशकारी परिणाम भी मानवजाति को भुगतना पड़ा है। इसे बचाने और संरक्षित करने की दिशा में काम कर रही हैं बड़ौदा की रीना राज रस्तोगी, जिन्होंने कोरोना काल में वर्ष 2021 में अल्कापुरी विस्तार में अपनी 10 हजार स्क्वायर फीट जमीन को 9 महीने में संपन्न हरित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिखाया। रीना ने पर्माकल्चर तकनीक की मदद से ‘सावित्री अर्बन फूड फॉरेस्ट’ की नींव रखकर ऋतु के अनुसार 80 से ज्यादा वनस्पति प्रजातियों को उगाया। पर्माकल्चर जिसे परमानेंट एग्रीकल्चर भी कहा जाता है, जिसमें एक ईकोसिस्टम आपस में ही हर चीज की आपूर्ति करता है। आज यह अर्बन फूड फॉरेस्ट शहर में जैव विविधता का प्रमुख केंद्र बन गया है। यहां युवाओं को कृषि कार्य, भोजन प्रणाली और ऊर्जा चक्र की जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है।

महिलाओं, दिव्यांगों को दे रहीं प्रशिक्षण

रीना ने बताया कि इस फूड फॉरेस्ट में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं, स्टूडेंट्स तथा दिव्यांग बच्चों के लिए वर्कशॉप लगाकर बताया जाता है कि कैसे ईको सिस्टम की मदद से फूड फॉरेस्ट को तैयार किया जा सकता है, ताकि वे फूड फॉरेस्ट तैयार कर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाएं। रीना कृषि तकनीक एवं खाद बनाने का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर भी बना रही हैं। उन्होंने फूड फॉरेस्ट के निर्माण के लिए इंटरक्रॉपिंग, मल्चिंग, बायोडाइवर्सिटी आदि तकनीक को अपनाया है।