निराशा का भाव व्यक्ति को तोड़ देता है। और अगर निराशा का भाव शारीरिक अक्षमता के कारण हो तो इंसान सपने देखना तक छोड़ देता है, लेकिन उदयपुर की एक बेटी लक्ष्मी ने दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी जीवन में निराशा नहीं आने दी और वह पढ़-लिखकर शिक्षक बनने के लिए जुटी हुई है। वह उदयपुर जिले की बटार पंचायत समिति के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय तिरोल की छात्रा है। लक्ष्मी अपने गांव बटार से चार किलोमीटर दूर पैदल चलकर और नदी पारकर स्कूल पढऩे आती है। दूसरे बच्चों को देखकर मन में हीनता का भाव रहा, लेकिन उसे ही ताकत बनाया और आज लक्ष्मी की यही लगन और मेहनत क्षेत्र के लिए उदाहरण बन गई है। लक्ष्मी अपने सभी काम पैरों से ही करती है। चाहे मोबाइल पर बात करनी हो या फिर खाना खाना हो, इतना ही नहीं किताबों के पेज पलटने हो या फिर बस्ते से बॉक्स निकालना हो वह आसानी से कर लेती है। लिखने का काम भी वह पैरों से ही करती है।