जयपुर। फैशन और ग्लैमर की दुनिया के रेड कारपेट पर एक महिला जब यूनिफॉर्म में वॉक करती नजर आए तो समझ लेना चाहिए कि यह ग्लैमर हौसलों का है, दृढ निश्चय का, चुनौतियों को स्वीकारने का है। बिलकुल अलग ही हैं सीआरपीएफ की असिस्टेंट कमांडेंट और पहली लेडी कमांडो 29 साल की उषा किरण। उन्हें वोग की ओर से पिछले साल यंग अचीवर आॅफ ईयर का अवॉर्ड दिया गया। फोर्सेज में बहुत कम असिस्टेंट कमांडेंट होते हैं जो गुरिल्ला टेक्निक और कमांडो कोर्स आसानी से पूरा कर पाए। उषा उन चंद महिलाओं में से हैं जिसने पुरुषों के इस वर्चस्व में दखल दिया। नक्सल प्रभावित इलाकों में रहना, वहां के लोगों के लिए काम करना, नक्सलियों से लोहा लेना खुद उषा ने अपने लिए चुना। सीआरपीएफ ट्रेनिंग के बाद उन्हें आॅफिसर पद मिला था, महिला बटालियन में। जहां वो आसान जिंदगी के साथ आॅफिसर्स लाइफ जी सकती थीं, लेकिन उन्होंने कम्फर्ट जोन में रहने की बजाय, मुश्किल राह चुनी। सोच बस यही कि महिला और पुरुष बराबरी की बात की जाती हैं तो फोर्सेज में पुरूष जिन चुनौतियों का सामना करते हैं, महिला क्यूं न करें। इसके लिए उन्होंने अपने अफसरों से बात की और नक्सल प्रभावित इलाकों में भेजने की मांग की। उषा कहती हैं कि जब हमने ट्रेनिंग एक जैसी ली है, तो काम अलग क्यों। अक्सर फोर्सेज में महिलाओं को आसान काम और कम चुनौतियों वाली जगहों पर रखा जाता है, लेकिन अब यह मान लेना चाहिए कि जिन चुनौतियों का मुकाबला पुरूष कर सकते हैं, उनका महिलाएं भी कर सकती हैं। यहां पुरुषों के साथ भी भेदभाव नहीं होना चाहिए।
कोबरा विंग में हैं
सीआरपीएफ और नक्सल प्रभावित इलाकों के बारे में उषा किरण बचपन से सुनती आ रही थी। उनके दादा और पिता सीआरपीफ में रहे हैं। उषा का कहना है कि उनके पिता की नक्सल इलाके सुकमा में पोस्टिंग थी। तब आए दिन वो नक्सली हमलों के बारे में सुनती रहती थी और तय किया कि वो इन इलाकों से नक्सल प्रभाव को खत्म करेंगी। इसी उद्देश्य के साथ न सिर्फ सीआरपीफ जॉइन किया, बल्कि गुरिल्ला टेक्निक और कमांडो कोर्स भी इसीलिए किया कि वो नक्सलियों से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर सके। वो कहती हैं कि मीडिया अक्सर यही दिखाता है कि इन इलाकों के ट्राइबल्स फोर्सेज को को—आॅपरेट नहीं करते। जबकि मैं तो जितने भी गांव वालों से मिलती हूं, वो बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। हमारा साथ देते हैं। हालांकि इन इलाकों में तनाव तो है ही, लेकिन मैं इस तनाव से निपटने के लिए ही बनी हूं। वो सीआरपीएफ की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली विंग कोबरा में असिस्टेंट कमांडेंट हैं।
बदल डाली सोच
उषा किरण हरियाणा के गांव से आती हैं। गुरुग्राम में उनकी परवरिश हुई। जब वो स्कूल जाती थीं तो उनकी मां को अक्सर सुनना पड़ता कि छोरी है, पढ़कर क्या करेगी। थोड़ा बड़ी हुई और कॉलेज जाने लगी तो औरतें कहती, इतना क्यूं पढ़ा रही हो, शादी नहीं हो पाएगी। लेकिन हरियाणा की यह जिद्दी लड़की रूकी नहीं। जिंदगी की किसी जंग में हार नहीं मानी और नक्सलियों से जंग के लिए वो तैयार है। क्योंकि जिद्दी लड़कियां ही जिंदगी और समाज में बदलाव लाने का दमखम रखती हैं। बदलाव यह भी कि उनके गांव की लड़कियां अब उन्हीं के जैसा बनने के ख्वाब देखने लगी हैं, पढ़ने लगी हैं।