महात्मा गांधी ने जिस चरखे को देश में पहचान दी थी वह अब मॉर्डन हो गया है। कम समय में ज्यादा कताई करने लगा है। केंद्र सरकार ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग के बाड़मेर कार्यालय को आधुनिक 50 न्यू मॉडल चरखे उपलब्ध करवाए हैं। बाड़मेर में बंद खादी के कार्य को इसी के कारण फिर से काम मिला है। बुनकर और कत्तिन अभी 50 चरखों पर काम शुरू कर चुके है और सिलसिला चल पड़ा तो थार से बेरोजगार हुए ढाई जार कत्तिन और ढाई सौ बुनकरों को कार्य मिलेगा। अभी बाड़मेर कार्यालय से जुड़े कारीगर यहीं पर ही कताई करते हैं। साथ ही पुराने कारीगरों व कार्मिकों को भी फिर से जोड़ा जा रहा है। आयोग की कोशिश है कि पुराने लोगों का अनुभव नए कारीगरों के काम आए जिससे वे आगे बढ़ सकें। मॉर्डन चरखा लकड़ी का नहीं, बल्कि लोहे का है। इसमें आठ धागे एक साथ चलते है। यानी आठ गुणा अधिक कताई और वह भी मशीन जैसी होने लगी है। यहां तैयार धागे से राजीव शाल, पट्टू, लेडिज शॉल, जैकेट, शर्ट, कुर्ते और अन्य उत्पाद तैयार होंगे।