इतिहासकरों का मानना है कि शिवाड़ निवासी बागड़ा ब्राह्मण देवादास को साधु के वेश में भगवान ने दर्शन दिए और कहा था कि वे बैलगाड़ी लेकर निकल जाएं और जहां पर बैलगाड़ी की धुरी टूट जाए वहां भूमि से भगवान के विग्रह को निकाल लेना। देवादास ने ऐसा ही किया और वे गोनेर पहुंचे तब उन्होंने भूमि से मिले भगवान को चबूतरे पर स्थापित कर दिया। देवादास को साधु ने एक मुट्ठी बाजरा बोने को दिया था। उस बाजरे से बारह मण बाजरा पैदा हुआ। बाजरे को ओबरी में रख उससे मंदिर का निर्माण कार्य करवाया।