जयपुर। सवाईमानसिंह मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध एसएमएस, जेकेलोन, गणगौरी, जनाना और महिला चिकित्सालय सहित अन्य अस्पतालों में भर्ती आम मरीजों को आए दिन रेफरेंस के लिए चिकित्सक को बुलाने में पसीने बहाने पड़ रहे हैं। किसी मरीज के एक से अधिक बीमारियां होने पर उन्हें देखने के लिए दूसरे विभाग से चिकित्सकों को बुलवाए जाने की प्रक्रिया को रेफरेंस कहा जाता है। लेकिन यदि किसी मरीज के लिए इसकी आवश्यकता पड़ गई तो अधिकांश मामलों में संबंधित यूनिट पूरी जिम्मेदारी मरीज के परिजनों पर ही थोपकर फ्री हो जाती है। परिजन दूसरे विभाग में रेफरेंस जमा करवाकर आते हैं, लेकिन वहां से चिकित्सक के आने में ही कई बार दो-तीन दिन तक लगा दिए जाते हैं।
हैरत की बात यह है कि आम मरीज यदि एसएमएस के अस्पतालों से देश के दूसरे राज्य के किसी सरकारी अस्पताल में भी रैफर करवाना चाहे तो उसे आसानी से रैफर नहीं किया जाता। इसके लिए नियम बनाया हुआ है कि एसएमएस में इलाज संभव नहीं होने पर ही दूसरे अस्पताल में भेजा जा सकता है। लेकिन अस्पताल में वीआईपी या माननीय मरीज के मामले में यह नियम भी दरकिनार किया जा रहा है। इन्हें परिजनों की मंशा पर तुरंत सरकारी ही नहीं, बल्कि देश के किसी भी निजी अस्पताल में भी भेजने की व्यवस्थाएं तत्काल करवाई जा रही हैं। गौरतलब है कि हाल ही में एसएमएस से कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त कांग्रेस नेता को मेदांता अस्पताल में एयर लिफ्ट किया गया। इससे पहले मौजूदा सरकार के ही एक कैबिनेट मंत्री को भी एसएमएस से विशेष व्यवस्था कर भेजा गया। इसके अलावा भी कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं।
मरीज वीआईपी तो…निजी अस्पताल भी चले जाते
अति विशिष्ट लोगों को यदि आपात हालत में निजी अस्पताल ले जाया जाता है तो एसएमएस के चिकित्सकों को भी सरकार निर्देश देकर निजी अस्पताल में उन्हें देखने के लिए भेज देती है। लेकिन आम आदमी के ऐसे मामले में किसी चिकित्सक की शिकायत कर दी जाए तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है। एसएमएस के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि कैबिनेट मंत्री और सरकार के अन्य अति विशिष्ट मामलों में सरकार के ही निर्देश पर उन्हें दूसरी जगह भेजा जाता है।
इन विभागों में ज्यादा रेफरेंस
यूरोलॉजी, सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, न्यूरोलॉजी, ईएनटी, कार्डियोलॉजी, गेस्ट्रोएंट्रॉलॉजी, सीटीवीएस, मेडिसिन, ऑर्थो, ऑन्कोलॉजी, नेफ्रोलॉजी
रेफरेंस मिला तो चक्कर पर चक्कर
– मरीज व उनके परिजन वार्ड से रेफरेंस के लिए फाइल लेकर संबंधित विभाग की ओपीडी या वार्ड जाते हैं। वहां चिकित्सक को रेफरेंस लिखवाकर आते हैं। उसके कुछ घंटे बाद या अगले दिन सीनियर रेजिडेंट या चिकित्सक मरीज को देखने आते हैं। वे जांच या रेफर, दवा आदि के लिए सलाह देते हैं। जांच रिपोर्ट दिखाने या दवा में बदलाव कराना हो तो उसके लिए दुबारा रेफरेंस कराना पड़ता है। इस पर परिजनों को ही चक्कर लगाने पड़ते हैं।
– सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि सुपरशियलिटी, चरक भवन, ट्रोमा व मुख्य भवन के बीच काफी दूरियां हैं। इस दौरान मरीज और उनके परिजनों को रेफरेंस के लिए भटकना पड़ता है।
– एसएमएस मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध अस्पतालों में रोजाना 500 से ज्यादा मरीज व उनके परिजन रेफरेंस के लिए ओपीडी व वार्ड में चक्कर लगाते रहते। रात के समय रेफरेंस की जरूरत पड़ने पर तो सर्वाधिक दिक्कत होती है।
– ओपीडी में मरीजों की लंबी कतारें रहती है। सीनियर डॉक्टरों को वार्डों में ढूंढ पाना भी मुश्किल होता है। वे ओपीडी समय पूरा होने के बाद परिजनों को आसानी से नहीं मिलते। हालांकि सीनियर रेजिडेंट भी मदद कर देते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में पांच से छह घंटे जूझना पड़ता है। यह समय मरीज व उसके परिजनों के लिए काफी कष्टदायक होता है।
अस्पताल खुद करें इंतजाम
अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि रेफरेंस की व्यवस्था अस्पताल प्रशासन को ही करनी चाहिए। मरीज जहां भर्ती है, वहां से ऑन कॉल सीधे रेफरेंस लिया जा सकता है। इसके लिए अलग से विंग भी बनाई जा सकती है। मरीज व उनके परिजनों को चक्कर लगवाना गलत है।
एसएमएस में इलाज संभव होने तक दूसरे अस्पतालों में नहीं भेजा जाता। यही नियम है। मरीज और परिजन खुद अपनी मर्जी से जाना चाहें तो जा सकते हैं, ऐसे मरीज को लामा कहा जाता है। हम उसे आधिकारिक तौर पर रैफर नहीं करते। रेफरेंस के मामले में कोशिश करते हैं कि परिजनों काोपरेशानी नहीं हो।
डॉ.अचल शर्मा, अधीक्षक, सवाईमानसिंह अस्पताल