दिन में पारा भले ही 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया हो और शहर के बाजार में मटकों की दुकान सज गई हो, लेकिन जयपुराइट्स को शहर में बनने वाले साधारण मटकों की जगह गुजरात से मंगवाए गए टोंटीदार मटके ही पसंद आ रहे हैं। ऐसे में कुम्हार भी अब खुद मटके बनाने की जगह गुजरात से डिजाइनर मटके मंगवा कर बेच रहे हैं।
वहीं इस बार बेमौसम बरसात ने मटकों की डिमांड भी कम कर दी है और उनका काम मंदा चल रहा है। हालांकि अब तापमान बढ़ने के बाद कुम्हारों की आस बंधी है कि शायद आमजन मटके खरीदना शुरू कर दें। परकोटा, अजमेर रोड, गोपालपुरा बाइपास, मालवीय नगर, जगतपुरा आदि इलाके में सड़क किनारे मटके सजे हैं। गौरतलब है कि इस बार मार्च और अप्रेल में बेमौसम बरसात का दौर चलता रहा, जिससे तापमान में उतार-चढ़ाव होता रहा। ऐसे में लोगों ने भी मटके खरीदने से परहेज किया है।
डिजाइनर मटके रखना मजबूरी
मटका विक्रेता लालचंद प्रजापति के मुताबिक लोगों की मांग को देखते हुए साधारण मटकों के साथ अब अलग स्टाइल और डिजाइन वाले मटके भी रखना मजबूरी हो गई है। अधिकांश लोग अब टोंटी वाले और कैंपर जैसे आकार वाले मटके लेना चाहते हैं, जो जयपुर में नहीं बनाए जाते। इन मटकों की कीमत 200 रुपए तक है। जबकि जयपुर में कुम्हार चाक पर मिट्टी के साधारण मटके बनाते हैं, जिनकी कीमत केवल 80 से 100 रुपए तक ही है। कुम्हारों की मानें तो मटकों की कीमत में भी 30 फीसदी तक का इजाफा हुआ है।
मिट्टी की क्वॉलिटी खराब, कीमत भी बढ़ी
सालों से पुश्तैनी काम कर रहे कुम्हार नंदलाल प्रजापति के मुताबिक मटके बनाने के लिए मिट्टी जोबनेर से लानी पड़ती है, लेकिन मिट्टी की क्वॉलिटी भी खराब हो गई है। मटके के लिए चिकनी मिट्टी की जरूरत होती है। वहीं अब मिट्टी में कीचड़ के साथ मोटे पत्थर भी आ रहे हैं। साथ ही मिट्टी की कीमत भी बढ़ती जा रही है। दिवाली पर एक ट्रॉली मिट्टी की कीमत 3 हजार रुपए हुआ करती थी, जो अब बढ़कर 6 हजार रुपए प्रति ट्रॉली पड़ रही है। ऐसे में मटके बनाने का काम लगातार कम हो रहा है।