अरावली की पहाडिय़ों में मिलने वाले फेल्सपार खनिज से हमारा देश अगले साल तक पौटेशियम खाद के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल कर सकता है। फेल्सपार से जोधपुर स्थित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने पौटेशियम खाद तैयार की है। खाद ने गेहूं, बाजरा, मूंग, सरसों पर अच्छे परिणाम दिए हैं। इससे उत्पादन में 10 से 15 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। अब इसका प्रयोग सोयाबनी, केला व आलू पर किया जा सकता है। आलू व केला पौटेशियम के सबसे बड़े स्त्रोत है। इन दोनों पर सफल होते ही व्यापक रूप से फेल्सपार से खाद बनाई जाएगी। पौटेशियम खाद में आत्मनिर्भरता भारत के लिए बहुत बड़ी सफलता होगी। काजरी में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार के नेतृत्व में डॉ. एनआर पंवार, डॉ. उदय बर्मन, डॉ. रमेशचंद्र कटाणा और डॉ. एम सरिता इस पर शोध कर रहे हैं। गंगानगर, इंदौर, जालंधर, मेरठ, शिमला और लखनऊ में समानांतर परीक्षण हो रहे हैं। राजस्थान में देश का करीब 90 फीसदी फेल्सपार खनिज के भण्डार है।
विदेशों से होती है आयात
देश में पौटेशियम के भण्डार नहीं होने से वर्तमान में कनाड़ा, बेलारुस जैसे देशों से हर साल करीब 22 हजार करोड़ रुपए की पौटेशियम खाद आयात की जाती है।