लोकसभा में पास होने के बाद तीन तलाक बिल पर सरकार के सामने बड़ा टैस्ट राज्यसभा में है. क्योंकि उच्च सदन में केंद्र के पास बिल पास कराने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है. वहीं, न्यूट्रल रहने वाले अन्य दलों ने भी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.लोकसभा में पास होने के बाद मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 यानी तीन तलाक बिल का असल इम्तिहान राज्यसभा में होना है. निचले सदने में सरकार के पास बहुमत होने के चलते यह विधेयक 245 मतों से पास हो गया, जबकि 11 वोट विपक्ष में पड़े थे. वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस, एआईएडीएमके, समाजवादी पार्टी और डीएमके ने बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग करते हुए वॉक आउट कर दिया था. लिहाजा, राज्यसभा में इस बिल के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कहीं एक बार यह उच्च सदन में न अटक जाए. केंद्र सराकर आगामी लोकसभा चुनाव से पहले तीन तलाक बिल को महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम उप्लब्धि के तौर पर पेश करना चाहती है. वहीं, अगर यह बिल राज्यसभा में एक बार फिर अटक गया तो सरकार के पास इस विधेयक को जिंदा रखने के लिए अध्यादेश लाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं होगा. ऐसे में अध्यादेश की अवधि भी 6 महीने होगी और यह संसद सत्र केंद्र की मोदी सरकार के लिए अंतिम सत्र भी है. लिहाजा यदि इस बार यह बिल पास नहीं हुआ तो नई सरकार और नई संसद का इंतजार करना पड़ सकता है.