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परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतानसिंह जख्मी होने के बाद भी दुश्मनों से लड़ते रहे थे

जोधपुर.भारतीय सेना और देश के गौरव परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतानसिंह देश ही नहीं, चुशुल की पहाड़ी पर लोहा लेते हुए जख्मी होने के बाद भी दुश्मनों से लड़ते रहे थे।

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जोधपुर

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MI Zahir

Nov 18, 2018

जोधपुर. भारतीय सेना और देश के गौरव परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतानसिंह चीन से युद्ध के दौरान जख्मों से चूर हो कर भी नौजवानों को दुश्मनों से मुकाबले के लिए ललकारते रहे थे। वे लद्दाख में पहाड़ी पर मोर्चा संभाले हुए थे और चुशुल के करीब सड़क की सुरक्षा कर रहे थे। चीनियों ने सड़क तक पहुंचने के लिए चुशुल के लवारणी इलाके पर कब्जा कर लिया था। उस ऑपरेशन के लिए कंपनी प्लाटून ने दस-दस जवानांें की सात मोर्चों पर चौकियां बनाई थीं। उसी दौरान 18 नवंबर 1962 की सुबह 4 बजे चीनी सेना ने दो प्लाटून पर हमला किया था। तब मेजर शैतानसिंह और साथी जवानों ने दुश्मन को दोनों जगह से पीछे धकेल दिया था।

मेजर शैतानसिंह ने मशीनगनों से भूना था
उन्होंने चीनियों को मशीनगनों से भून कर रख दिया था। बांयी प्लाटून की ओर से आधे घंटे की जंग में इन भारतीय जवानों की जीत हुई थी,लेकिन दुश्मनों का दबाव जारी रहा था और वे वार पर वार करते रहे थे। सूबेदार सुरजाराम (वीर चक्र) ने मोर्टार तोपों की गोलाबारी से दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। चीनियों ने इसकी परवाह न करते हुए मेजर शैतानसिंह की बांयी कंपनी के हैड क्वार्टर पर हमला किया था। लड़ाई में कई चीनी मारे गए, लेकिन वे हमारी चौकी पर काबिज हो गए थे। इस दौरान मेजर शैतानसिंह बुरी तरह जख्मी हो गए थे। उनके बाजू और पेट पर गोली लगी। इस बीच सेना से नीेचे से संपर्क कट गया। जब जवान उन्हंे उठा कर नाले की ले जाने लगे तो उन्होंने उन्हंे मना किया। मेजर ने कहा, आदमी कम हैं, इसलिए नीचे जा कर रिपोर्ट करो।

चुशुल एयरपोर्ट को बचाते हुए शहीद हुए थे

बुरी तरह जख्मी होने के कारण मेजर शैतानसिंह भारतीय थल सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात मेजर भारत-चीन युद्ध के दौरान 18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख में चुशुुल एयरपोर्ट को बचाते हुए रिजांगला की लड़ाई में शहीद हो गए थे। शहीद होने के समय वे 37 वर्ष के थे। रिजांगला पहाड़ी पर लड़ाई में 120 में से 114 जवान शहीद हो गए थे। इनमें से एक को परमवीर चक्र, 8 को वीर चक्र और बाकी को सेना पदक से सम्मानित किया गया था।

परमवीर चक्र प्रदान
मेजर शैतानसिंह कोअदम्य साहस व बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया था। शहीद होने के बाद उनके गांव का नाम मेजर शैतानसिंह नगर व फलोदी से दस बारह किमी दूर स्थित बानासर स्टेशन का नाम मेजर शैतानसिंह स्टेशन रखा गया। आज यह स्टेशन छीला गांव में है। उनके शहीद होने के समय मोहनलाल सुखाडि़या मुख्यमंत्री और मथुरादास माथुर गृह मंत्री थे। राज्य सरकार ने तब उनके परिवार को राजस्थान नहर के पास ५० बीघा जमीन दी थी। बाद मंे परिवार को पेंशन और पेट्रोल पंप मिला।


तीन महीने बाद जोधपुर पहुंची थी पार्थिव देह

मेजर शैतानसिंह के पुत्र नरपतसिंह भाटी ने बताया कि जब उनके पिता शहीद हुए, उस समय वे सतरह बरस के थे और अजमेर में पढ़ाई कर रहे थे। उनके 18 नवंबर 1952 को शहीद होने के समय बर्फ जमी होने के कारण उनकी पार्थिव तीन महीने बाद भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से लद्दाख से जोधपुर लाई गई थी। उनकी पार्थिव देह पहले एयरपोर्ट से कर्नल मोहनसिंह के घर लाई गई थी। उसके बाद पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए जोधपुर के सर्किट हाउस में रखा गया था। उनका 19 फरवरी 1963 को कागा श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया था। बाद में श्मशान घाट के बाहर उनके नाम का पट्ट अंकित किया गया था।

शहादत का गवाह
मेजर शैतानसिंह अपने जख्मों से विचलित नहीं हुए थे। कंपनी के अन्य जवानों का अंजाम मालूम नहीं हो सका। लेकिन वे बजाहिर लड़ते हुए ही शहीद हुए हैं।

-लांस नायक रामचंद्र (एक मात्र जीवित जवान के शब्द)

यादगार पावटा मैजर शेतानसिंह चौराहा

परमवीर मैजर शेतानसिंह भाटी की प्रतिमा का पावटा चौराहे पर 18 नवम्बर 1986 को अनावरण हुआ। कार्यक्रम में 12 इन्फेन्ट्री डिविजन के जीओसी मेजर जनरल जी.सी. भण्डारी मुख्य अतिथि व वीरांगना स्व. सुगनकंवर, अधिशासी अभियंता हजारीलाल जांगिड़ व सचिव जीवाराम चौहान विशिष्ट अतिथि थे। तत्कालीन विधायक स्व.मानसिंह देवड़ा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी। इसी चौराहे पर 12 पैदल सैना खण्ड के जीओसी मेजर जनरल आर. कार्तिकेयन ने 18 नवम्बर 1994 को नवीनीकरण प्रतिमा लोकार्पित की।

जोधपुर में मेजर शैतानसिंह को किया याद
जोधपुर. परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतानसिंह की 56 वीं पुण्यतिथि रविवार को श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस मौके पर जोधपुर के पावटा चौराहा स्थित मेजर शैतानसिंह सर्किल पर जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों और सेना के जवानों ने मेजर को पुष्पांजलि अर्पित की। सेना ने समारोहपूर्वक अपने मेजर को श्रद्धासुमन अर्पित कर उनका स्मरण किया।