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मंडला

ग्रामीण बना रहे पलाश के फूल से रंग, इस गांव में आदिवासियों की है परम्परा

होली में इस फूल का उपयोग आज भी कई ग्रामीण रंग के रूप में करते हैं।

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मंडला. मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर स्थित एक ऐसा गांव है जहां आदिवासी परम्पराओं से फूलों से रंग बनाकर होली खेली जाती है यह परम्परा विशेष तरीके से होती है। इस गांव का नाम पलेहरा है जहां के आदिवासी पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं। यहां गांव के सभी महिला पुरूष एकत्र होकर जंगल की ओर निकलते हैं और फूल को तोड़ने से पहले विधि विधान से पूजन अर्चन करते हुए दादरे गाते हैं ंजिसके बाद पलाश के फूलों को तोडा जाता है। इस पलाश के फूल को छुइला के नाम से भी जाना जाता है। होली में इस फूल का उपयोग आज भी कई ग्रामीण रंग के रूप में करते हैं।

बताया जाता है कि पलाश के फूल से बने रंग एकाएक जल्दी से नहीं छूटते, इसका रंग काफी गहरा होता है। वहीं यह पूरी तरह से प्राकृतिक रंग है, जो बाजार में मिलने वाले केमिकल रंगों से कही बेहतर है। इसका रंग शरीर को एलर्जी व गर्मी से राहत देता है। लेकिन लोग बाजार में बिकने वाले केमिकल रंगों पर ज्यादा विश्वास करते हैं। गांवों में आज भी पलाश के फूलों से होली खेलने की परंपरा बरकरार है। गांव वालों का मानना है कि फूलों से बने कलर शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। पलाश के चटक फूलों से बने सुर्ख रंग स्कीन का पूरा ख्याल रखते हैं। पलाश के फूल से तैयार प्राकृतिक रंग से होली खेलने की परंपरा से प्रभावित हुए लोगों को रासायनिक रंग व त्वचा संबंधी बीमारी से निजात दिलाने के लिए पलाश के फूल से तैयार प्राकृतिक रंग से होली खेलने की मुहिम पांच वर्ष पहले कस्बे में शुरू किए। इस बार यहां के लोगों ने प्राकृतिक रंग से होली खेलने का इस बार भी फैंसला किया है गांव के लोग बताते हैं कि यहां के लोग होली के एक सप्ताह पहले से पलाश के फूल एकत्र करना शुरू कर देते हैं। घर की महिलाएं व बच्चे जंगल से पलाश का फूल तोड़ने के लिए जाते हैं। फूल लेकर लौटते हैं। होली के एक दिन पहले फूलों को गर्म पानी में उबालते हैं पानी जितना गर्म करते हैं रंग उतना ही लाल होता है। लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार रंग बनाते हैं ठंडे पानी में पलाश का फूल डालकर स्नान करने से गर्मी में लू नहीं लगती।

बताया तो यह भी जाता है कि पीस कर चेहरे पर लगाने से निखार बढ़ जाती है। होली रंगों और खुशियों का त्योहार है त्योहार में मस्ती का तड़का तब और बढ़ जाता है जब इसमें हर्बल रंगों का मेल हो जाता है। जिले में भी पलाश के पेड़ों की भरमार है। पलाश के फूलों से न सिर्फ प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं बल्कि आयुर्वेद के रुप में इसका बेहतरीन इस्तेमाल भी होता है। होली से पहले इसके गुणों को आपको जरुर जानना चाहिए।