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वीडियो स्टोरीः पुन्नी मेले की तैयारियां शुरू, इसका ऐतिहासिक महत्व भी जान लीजिए

राजधानी रायपुर (Raipur) के ऐतिहासिक पुन्नी मेले (Historic Punni Mela.) की तैयारियां खारुन नदी (Kharun River) के तट पर महादेव घाट (Mahadev Ghat) में शुरू हो गई हैं। कार्तिक माह (Kartik) की पूर्णिमा (Purnima) में स्नान (Holy Bath) के बाद इस मेले की शुरुआत हो जाएगी। इस बार यह 27 अक्टूबर को है।

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राजधानी रायपुर (Raipur) के ऐतिहासिक पुन्नी मेले (Historic Punni Mela.) की तैयारियां खारुन नदी (Kharun River) के तट पर महादेव घाट (Mahadev Ghat) में शुरू हो गई हैं। कार्तिक माह (Kartik) की पूर्णिमा (Purnima) में स्नान (Holy Bath) के बाद इस मेले की शुरुआत हो जाएगी। इस बार यह 27 अक्टूबर को है। इसके लिए प्रशासन के साथ-साथ लोगों की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा को नदियों में स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता है। इसी के मद्देनजर खारुन नदी के तट पर हजारों लोग पुण्य स्नान करने जुटते हैं। इसी अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें रायपुर ही नहीं आसपास के जिलों के लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इसी को देखते हुए मेले में कई प्रकार की दुकाने भी लगाई गई जाती हैं। इनमें मुख्य आकर्षण मिठाइयों का होता है। मेले में खालिस देसी मिठाइयों की अच्छी पूछ परख होती हैं इनमें खजिया, करीलड्डू, बूंदी, एवं नमकीन में सेव, एवं मिक्चर प्रमुख हैं। इसके अलावा मेले में कई प्रकार झूले बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। इस बार यहां पर मिनी डिज्नीलैंड का आयोजन पर किया गया है, जिसमें देसी एवं विदेशी झूलों प्रमुख है। यही नहीं घरेलू जरूरत की कई प्रकार की वस्तुएं भी यहां से खरीदी जा सकती हैं।

ऐतिहासिक महत्व भी है मेले का

जानकार बताते हैं कि यह मेले का आयोजन यहां पर करीब 600 सालों से किया जा रहा है। कहा जाता है कि 14वीं सदी में यहां के राजा ब्रह्मदेव (Raja Brahamdev) की संतान नहीं थी। इसके लिए उन्होंने खारुन (Kharun) तट पर स्थित हटकेश्वरनाथ महादेव मंदिर (Hatkeshwarnath Mahadev) में पुत्र प्राप्ति की कामना की। जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसी खुशी में उन्होंने ग्रामीणों ने भोज का आयोजन किया, जिसमें नर्तकों के खेल तमाशे व अन्य मनोरंजन के साधन भी थे। राजा ग्रामीणों के लिए हर साल इसका आयोजन कार्तिक मास की पूर्णिमा को करने लगे। कालांतर में यही आयोजन पुन्नी मेले (Punni Mela) में बदल गया। आज यह अपने भव्य स्वरूप में सामने आ चुका है।