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Nagaur patrika…लाइन लॉस का बहाना, पर सिस्टम लीक, हवा में उड़ रही नागौर की 25 फीसदी बिजली…VIDEO

नागौर. जिले में बिजली विभाग (डिस्कॉम) का दावा है कि वह हर घर तक निर्बाध बिजली पहुंचा रहा है, पर असलियत यह है कि जिले की करीब 25 प्रतिशत बिजली रास्ते में ही उड़ ् जाती है। यह वही बिजली है जो उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले पुराने तारों, जर्जर ट्रांसफॉर्मरों और लापरवाही में गायब […]

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नागौर. जिले में बिजली विभाग (डिस्कॉम) का दावा है कि वह हर घर तक निर्बाध बिजली पहुंचा रहा है, पर असलियत यह है कि जिले की करीब 25 प्रतिशत बिजली रास्ते में ही उड़ ् जाती है। यह वही बिजली है जो उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले पुराने तारों, जर्जर ट्रांसफॉर्मरों और लापरवाही में गायब हो जाती है। विभाग इस नुकसान को लाइन लॉस कहकर हर महीने करोड़ों रुपये का हिसाब बना देता है, पर यह लाइन लॉस नहीं, सिस्टम फेलियर है। इसके बाद भी वसूली रखरखाव आदि पेटे की आड़ में आम उपभोक्ताओं से कर ली जाती है। यह सिलसिला बरसों से चल रहा है।
हर चौथी यूनिट गायब, जवाब किसी के पास नहीं
राजस्थान के कई जिलों में लाइन लॉस औसतन 16 से 18 प्रतिशत के बीच है, लेकिन नागौर में यह आंकड़ा 24 से 26 प्रतिशत के बीच झूल रहा है। इसका मतलब यह है कि हर चार यूनिट में से एक यूनिट बिजली उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो रही है। विभागीय रिपोर्टों में इस नुकसान को तकनीकी कारण बताया गया है, लेकिन जानकारों के मुताबिक यह तकनीकी नहीं, प्रबंधन की लापरवाही का परिणाम है।
पुराने तार और ओवरलोड ट्रांसफॉर्मर बने बड़ी वजह
शहर के कई हिस्सों में नया दरवाजा, बंशीवाला मंदिर मार्ग, लोहियो का चौक, तिगरी बाजार, , बस स्टैंड क्षेत्र, बासनी रोड और पुराने शहर में 20-30 साल पुराने तार आज भी बिजली ढो रहे हैं। इन इलाकों में हल्की बारिश या हवा चलने पर लाइन ट्रिप होना आम बात है। इसी तरह गांवों में हालत और खराब है। कई जगह ट्रांसफॉर्मर क्षमता से दोगुना लोड खींच रहे हैं। जिससे ट्रांसफॉर्मर अक्सर जलते रहते हैं, विभाग इनको बदलता भी है। इसके बाद भी हकीकतन विभाग अपनी इस कमजोरी को स्वीकार नहीं करता है।
विभाग ने माना नुकसान, समाधान अब भी कागजों में
डिस्कॉम के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नागौर सर्कल में लाइन लॉस को घटाने के लिए फीडर सेपरेशन और केबलिंग का प्रस्ताव गया हुआ है, और कई जगहों पर चल भी रहा है। उधर, मुख्य अभियंता कार्यालय से जारी हालिया रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि साल 2024-25 में नागौर जोन का औसत तकनीकी नुकसान 24.7 प्रतिशत रहा।
उपभोक्ता पर बढ़ रहा भार: शुल्क बढ़ाकर भेजने का चल रहा खेल
इस लाइन लॉस का सबसे बड़ा नुकसान आम उपभोक्ता को उठाना पड़ता है। जब विभाग को नुकसान होता है, तो वह स्थायी शुल्क, यूनिट दर, रेगुलेटरी सरचार्ज, फ्यूल सरचार्ज और टेरिफ शुल्क आदि बढ़ाकर उपभोक्ताओं को बिल भेज देता है। यानी की उपभोक्ता न केवल अपनी बिजली का, बल्कि सिस्टम की नाकामी का भी बिल भर रहा है। कई व्यापारियों ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बताया कि पिछले कुछ महीनों में बिल 10-15 प्रतिशत बढ़ गए हैं, जबकि खपत पहले जैसी ही है।
तारों के जाल के साथ पूरे सिस्टम को बदलना होगा
मामलों के जानकारों का कहना है कि लाइन लॉस को विभाग सालों से छिपाता आ रहा है। अगर ट्रांसफॉर्मर रिप्लेसमेंट और वायर नेटवर्क का आधुनिकीकरण ईमानदारी से किया जाए, तो यह नुकसान 10 प्रतिशत के भीतर लाया जा सकता है। लेकिन हर बार सुधार का वादा होता है, अमल नहीं।
जनता कहती है: ठग रहा बिजली विभाग
शहर के मोहल्लों में काठडिय़ा का चौक, भूरावाड़ी, शारदापुरम एवं सूफिया कॉलोनी में बातचीत हुई तो रमेश, सुरेश, मनीष, कैलाश बताते हैं कि जब बिजली कटती है तो अपने हाथ खड़े कर लेता है। ज्यादा बिल आने की शिकायत भी करो तो कहा जाता है कि जो बिजली खपत हुई है उसके हिसाब से बिल भरना पड़ेगा, लेकिन यहां पर प्रति यूनिट बिजली की दर के साथ तमाम प्रकार के शुल्क लगाकर वसूली की जाती है। इस तरह खपत से ज्यादा बिजली बिल के नाम पर वसूली की जा रही है। इसी तरह गांवों में स्थिति और विकट है। कई फीडरों में वोल्टेज इतना कम रहता है, कि मोटर चलाने के लिए किसानों को तीन-तीन घंटे इंतजार करना पड़ता है। बाराणी के प्रभुराम, मूण्डवा के राकेश, महेन्द्र कहते हैं कि यहां पर हमेसा लो-वोल्टेज रहता है, और जब इसकी शिकायत करो तो कहते हैं कि लोड ज्यादा है। अब लोड ज्यादा है तो इसका निराकरण बिजली विभाग को करना चाहिए, क्या उसे नहीं पता कि इस क्षेत्र में कितने उपभोक्ता हैं, फिर वसूली का मीटर तो चलता रहता है। इनका कहना है कि जब तक पुराने तारों का जाल बदलेगा नहीं और ट्रांसफॉर्मरों का बोझ घटेगा नहीं, तब तक यह लाइन लॉस दरअसल लाइन लूट ही कहलाएगी। बिजली बचाने के नारे लगाने वाला विभाग पहले अपनी ही बिजली बचाए, क्योंकि कि हमसे तो जितना बिजली का बिल वसूला जा रहा है, उतनी बिजली हम जलाते ही नहीं हैं। इस संबंध में अधीक्षण अभियंता अशोक चौधरी से उनके मोबाइल पर संपर्क किया गया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।
प्रति यूनिट बिजली के अलावा इन शुल्कों की भी हो रही बिल के साथ वसूली
स्थायी शुल्क शुल्क बिजली कनेक्शन के लिए लिया जाता है। जो 450 रुपये से 800 रुपये प्रति किलोवाट है। रेगुलेटरी सरचार्ज’रू यह शुल्क बिजली की खपत पर लगाया जाता हैए जो 0.70 रुपए से 1 रुपये प्रति किलोवाट है।फ्यूल और पावर सरचार्ज’ यह शुल्क बिजली की खपत पर लगाया जाता है। जो बिजली की लागत में वृद्धि का कारण बनता है। टाइम ऑफ डे (टीओडी) यह शुल्क उन उपभोक्ताओं पर लागू होता है जिनका लोड 10 किलोवॉट से ज्यादा है। जिसमें सुबह 6 बजे से 8 बजे तक और शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक बिजली की खपत पर ज्यादा शुल्क लिया जाता है।