नागौर. शहर में विकास नहीं, बल्कि लापरवाही और फर्जीवाड़े का नया शर्मनाक मामला सामने आया है। सडक़ निर्माण के नाम पर यहां सडक़ बनाने के बजाय सडक़ के ऊपर ही सडक़ बिछा दिए का काला खेल सामने आया है। वाटर वक्र्स चौराहा से लेकर हाउसिंग बोर्ड बनी अच्छी खासी बनी-बनाई सडक़ पर ही तारकोल डालकर उस पर डामर सडक़ बिछा दी गई। इसके आगे टूटी सडक़ को यूं ही छोड़ दिया गया। सरकार के स्पष्ट दिशा-निर्देशों को खुलेआम रौंदने के साथ ही इससे आरएसआरडीसी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।, और स्थानीय बाशिंदों ने आरोप लगाया है कि यह आरएसआरडीसी की ओर से कथित रूप से ठेकेदार से मिलीभगत कर उसे पहुंचाने के लिए कायदे को अंगूठा दिखा दिया गया है।
जहां सडक़ टूटी ही नहीं, वहां डामर बिछा दिया
आरएसआरडीसी को वाटर वक्र्स चौराहा से ताऊसर रोड रेलवे लाइन तक पुरानी सडक़ को पूरी तरह तोडकऱ नई सडक़ का निर्माण करना था। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट सामने आई। वाटर वक्र्स चौराहा से हाउसिंग बोर्ड तक की सडक़ पहले से ही ठीक हालत में थी, वहां कहीं भी सडक़ टूटी नहीं थी। इसके बावजूद आरएसआरडीसी ने उसी सडक़ पर तारकोल छिडकक़र उसके ऊपर नई डामर लेयर बिछा दी। सरकार के प्रावधान साफ कहते हैं कि नई सडक़ निर्माण से पहले पुरानी सडक़ को पूरी तरह तोड़ा जाएगा, लेकिन यहां इन नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई गईं। यह तकनीकी चूक नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया ऐसा काम है, जो सीधे सवाल खड़े करता है कि आखिर किस आधार पर यह निर्माण कराया गया।
जहां सडक़ पूरी तरह जर्जर थी, वहां काम ही नहीं किया
पड़ताल में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि जहां सडक़ वास्तव में खराब हालत में थी, वहां आरएसआरडीसी ने काम करने की जरूरत ही नहीं समझी। हाउसिंग बोर्ड के आगे करीब 500 मीटर के हिस्से में पहले से बनी सीसी सडक़ पूरी तरह टूट चुकी थी। कई जगह बड़े-बड़े खड्डे हो चुके थे और सडक़ की हालत बद से बदतर थी। लेकिन इस पूरे हिस्से को नजरअंदाज कर दिया गया। यानि जहां सडक़ ठीक थी, वहां नई डामर सडक़ बना दी गई, और जहां सडक़ सच में टूटी हुई थी, उसे छोड़ दिया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि काम जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि भुगतान और औपचारिकता पूरी करने के लिए किया गया।
सडक़ ऊंची, मकान नीचे, बारिश में डूबने का खतरा
इस लापरवाह निर्माण का सीधा असर अब आम लोगों पर पड़ रहा है। नई डामर लेयर बिछाने से सडक़ का स्तर बढ़ गया है, जबकि आसपास के मकान नीचे हो गए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश के मौसम में सडक़ का पानी सीधे मकानों में घुस सकता है। इससे जलभराव, नुकसान और परेशानी तय मानी जा रही है।
स्थानीय बाशिंदों का आरोप: फर्जी काम, मिलीभगत से लूट
स्थानीय बाशिंदों गणपतराम, किशन, रामनिवास और हरिराम ने इस पूरे निर्माण कार्य को फर्जी करार दिया है। उनका कहना है कि यदि सडक़ बनानी ही थी, तो पहले से बनी सडक़ को पूरी तरह तोडकऱ मजबूत आधार पर नई सडक़ बनाई जाती। लेकिन यहां तो बिना तोड़े ही ऊपर से डामर बिछा दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सडक़ निर्माण के नाम पर ठेकेदार और संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी धन बर्बाद किया गया है। लोगों का कहना है कि यह काम गुणवत्ता सुधारने के लिए नहीं, बल्कि कागजों में काम दिखाकर भुगतान उठाने के उद्देश्य से किया गया है।
जांच नहीं हुई तो बढ़ेगा आक्रोश
इस पूरे मामले को लेकर क्षेत्र में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। लोगों की मांग है कि आरएसआरडीसी के इस सडक़ निर्माण की तकनीकी और प्रशासनिक जांच करवाई जाए, जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों की जवाबदेही तय हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस खुले फर्जीवाड़े पर आंखें खोलेगा, या फिर यह सडक़ भी सरकारी धन की बर्बादी और प्रशासनिक चुप्पी बनकर रह जाएगी।
पूरी सडक़ ही बरबाद कर दी
पहले से बनी सडक़ पर ही तारकोल बिछाकर डामर सडक़ बिछा दी। जबकि वाटरवक्र्स चौराहा से हाउसिंग बोर्ड तक सडक़ पहले से ही अच्छी हालत में थी। इसके आगे खराब सीसी रोड को यूं छोडकर चले गए। यह तो विभागीय मिलीभगत का ख्ेाल है।
हंसराज भाटी, ताऊसर रोड
नागौर. वाटरवक्र्स चौराहा से हाउसिंग बोर्ड बनी अधूरी सडक़: पहले से बनी सडक़ पर बिछा दी डामर सडक़
शहर मांग रहा इन सवालों के जवाब
वाटर वक्र्स चौराहा से हाउसिंग बोर्ड तक बनी सडक़ के निर्माण में हुई अनियमितताओं को लेकर अब शहरवासी अपनी आवाज़ उठाने लगे हैं। नागरिकों का सवाल है कि आखिर उस सडक़ को बनाने की अनुमति किसने दी, जबकि सभी दिशा-निर्देशों और सरकारी प्रावधानों की धज्जियाँ उड़ाई गईं। इस सडक़ का निर्माण बिना पुराने सडक़ को तोड़े किया गया, जो ना केवल तकनीकी दृष्टि से गलत है, बल्कि लोगों की सुरक्षा और भविष्य में सडक़ की मजबूती पर भी सवाल खड़े करता है। शहरवासी कह रहे हैं कि जब यह स्पष्ट था कि सडक़ की स्थिति खराब थी और इसे तोड़े बिना काम नहीं किया जा सकता था, तो फिर अधिकारी इस मामले में कहां थे..? क्या उन्होंने इस निर्माण की निगरानी ठीक से की थी, या यह पूरी प्रक्रिया किसी अनदेखी का परिणाम है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस निर्माण के बावजूद सडक़ की खराब स्थिति अभी भी बनी हुई है। जहां पहले से बनी सडक़ पर खड्डे और गड्ढे थे, वहां अब नई सडक़ बनाने के बावजूद वही स्थिति बनी हुई है।
क्या कहते हैं अधिकारी…
वाटरवक्र्स चौराहा से ताऊसर रोड तक सडक़ कायदे को ध्यान में रखकर ही बनाई गई है। पहले से बनी सडक़ को तोडऩा जरूरी नहीं है। आसपास मकान आदि भी नहीं है। यहां पर डामर सडक़ बनानी थी तो बना दी गई।
चेतन सोहू, अधिशासी अभियंता, आरएसआरडीसी नागौर