नागौर. नागौर के चांदीवाड़ा में महाराष्ट्र से आते हैं गणपति। यह सिलसिला पिछले करीब चौदह सालों से लगातार चल रहा है। हर साल गणेश चतुर्दशी पर महाराष्ट्रा से ही गणपति लाकर यहां पर विधि-विधान से विराजित कराए जाते हैं। लक्ष्मीनारायण सोनी बताते हैं कि मोहल्ले में कुछ मराठा परिवार रहते थे। वो भी सभी के साथ मिलजुलकर गणेश चतुर्दशी मनाते थे। चौदह साल पहले यहां पर रहे शिवाजी मराठा के साथ मोहल्ले वालों ने गणपति विराजित करने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद तय किया गया कि गणपति की प्रतिमा महाराष्ट्र से लाकर विराजित कराई जाएगी। योजना बनने के बाद शिवाजी मराठा सहित कुछ और क्षेत्रवासी मिलकर महाराष्ट्र गए, और वहां से मिट्टी की प्रतिमा लेकर आए। प्रतिमा वास्तव में बेहद सुंदर थी। इसके बाद शिवाजी मराठा तो अन्यत्र चले गए, लेकिन तभी से यह क्रम लगातार चला रहा है। हर साल गणेश चतुर्दशी के पहले ही क्षेत्र के लोग गणपति की प्रतिमा लेने के लिए महाराष्ट्र निकल जाते हैं।
मिट्टी की रहती है प्रतिमा
स्थानीय बाशिंदे बताते हैं कि पूरी प्रतिमा मिट्टी से बनी होती है। इसमें किसी भी प्रकार का कोई केमिकल प्रयोग में नहीं लाया जाता है। यह पूरी तरह से मिट्टी से निर्मित होने के बाद भी बेहद सुंदर और मजबूत होती है। इससे यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी पूरी तरह से सुरक्षित होती है। हालांकि कई जगहों पर प्लास्टर ऑफ पेरीस से निर्मित प्रतिमा पंडालों में विराजित कराई जाती है, लेकिन चांदीवाड़ा इस मामले में पूरी तरह से अपवाद है। इससे विसर्जन के दौरान भी यह आसानी से पानी में न केवल घुल जाती है, बल्कि पर्यावरण को बिलकुल नुकसान नहीं होता है।
बाल गणपति को चुराने की लगी रहती है होड़
बताते हैं कि गणपति की बड़ी प्रतिमा के साथ ही एक छोटी गणपति की प्रतिमा भी विराजित कराई जाती है। इनकी भी स्थापना विधिपूर्वक होती है। यह स्थानीय मान्यता है कि घरों में विध्न होने या संकट अथवा विवाह नहीं होनेक ी स्थिति में इस प्रतिमा को चुराने में सफल होने वाला सभी संकटों से मुक्त हो जाता है। इस वजह से इस छोटी गणपति की प्रतिमा को चुराने की ताक में लोग लगे रहते हैं, लेकिन पकड़े जाने पर फिर विराजित जगह पर इसे वापस रखनी पड़ती है। हर साल यह क्रम चलता रहता है। इस बार भी बाल गणेश के रूप में दोनो ही हाथों में लड्डू लिए हुए गणपति की छोटी प्रतिमा विराजित कराई गई है।
गणपति के प्रति अपार श्रद्धा
गणपति के प्रति मेरी ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्रवासियों के अंदर अपार श्रद्धा है। गणपति के विराजित होने के साथ ही लगातार 10 दिनों तक यहां पर गणपति महोत्सव के तहत विविध प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं। इसमें पूरे क्षेत्रवासी मिलजुलकर भाग लेते हैं।
गोविंद, स्थानीय निवासी