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सलोनी बनीं साध्वी ज्ञानर्षिनिधि

बडनग़र में वसंत पंचमी पर दीक्षा महोत्सव की धूम

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बडनग़र. सांसारिक जीवन जीने वाली सलोनी संसार के असारता को छोडकऱ सारे सुख-सुविधा को दरकिनार करते हुए साध्वी बन गई है। वसंत पंचमी पर सलोनी मेहता का पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव संपन्न हुआ। साधु भगवंत की उपस्थिति में सलोनी मेहता को नवीन नाम ज्ञानर्षिनिधि मिला। अब वे इसी नाम से जानी जाएगी। वो अब अर्चितगुणा श्रीजी की शिष्या बनी। अमित गुणा श्रीजी की शिष्याओं की संख्या 91 हो गई। सांसारिक वेश को उतारकर जब श्वेत वस्त्रधारण कर दीक्षार्थी पंडाल में पहुंची तो हर तरफ हर्षोल्लास और वंदन की भावनाएं थी। दीक्षा महोत्सव में निश्रा प्रदान कर रहे आनंदचंद्रसागर महाराज का 27वां संयम जीवन सोने में सुहागे के रूप में मना।
संयम मार्ग तो तलवार की धार पर चलने जैसा है। संयम मार्ग की राहे तो कांटों भरी है। संयम के राह तो विकट है। इन सब बातों को झूठलाते हुए सांसारिक और भौतिकता की चकाचौंध मोबाइल, टीवी, पिक्चर, चाइनीस को छोडकऱ सांसारिक जीवन जीने वाली सलोनी मेहता सारे सुख सुविधा को दरकिनार करते हुए आज संयमी वेश धारण कर महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेकर महावीर के पथ पर चल पड़ी है। प्रात: अपने निज निवास से देहरी पूजन के बाद उन्होंने सांसारिक वेश को बाय-बाय कहते हुए संयम का रंग चढऩे के लिए एक जुलूस के रूप में दीक्षा स्थली ज्ञानानदी प्रवचन महोत्सव वाटिका पहुंची। आनंदचंद्र सागर महाराज ने दीक्षा के पूर्व की सभी क्रियाएं और रस्मों को पूर्ण करवाया। प्रभु को सोने की चेन अर्पण करते हुए यह भावना आई कि सोने जैसी चमक जैसा मेरा संयम जीवन हो। पुष्प अर्पण करते हुए कहा कि फूलों की भांति कोमल मेरा यह नया जीवन हो। मुमुक्षु सलोनी ने अमितगुणा श्रीजी, साधु-साध्वी भगवंत के चरण की पूजा की। नवदीक्षित साध्वी को दिनचर्या के विभिन्न उपकरणों के चढ़ावे बोले गए। संघ समाज के महानुभाव ने लाभ लिया। मीडिया प्रभारी विजय गोखरू राजकुमार नाहर ने बताया की विजय तिलक की बोली पूनम चंद रखबचंद मेहता परिवार ने ली और विजय तिलक मनीष मेहता रेखा मेहता, विधायक जितेंद्रसिंह पंड्या ने किया। नामांकरण की बोली पवन कुमार रखबचंद मेहता परिवार ने ली। चेन्नई से आए मनोज जैन ने गीत संगीत के साथ समां बाध दिया। सभी सहयोगियों के प्रति मेहता परिवार की ओर से आभार जयप्रकाश लूनिया और श्री संघ से विजय मेहता ने माना।
ज्ञानर्षिनिधि बन परिवार से 7वीं दीक्षा ली
23 वर्षीय सलोनी मेहता ग्रेजुएट हैं। बडनग़र के करोड़पति अनाज व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता ज्ञानचंद मेहता का निधन 2016 में हो गया था। पिता के प्रति समर्पण भाव और उनके विचारों की समीपता के लिए संयम की राह अपनाई है। दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी हैं। यह रखबचंद-घासीराम मेहता परिवार में सातवींद दीक्षा है। इसके पूर्व दो साधु और 4 साध्वी दीक्षा हो चुकी है। सलोनी ने साध्वी ज्ञानर्षिनिधि बन सातवीं दीक्षा ली।
महावीर के पथ को सदा उज्ज्वल रखूंगी
संयम जीवन की पूर्व संध्या पर सलोनी मेहता ने भावुक उद्बोद्धन देते हुए कहा कि मेरे पापा ज्ञानचंदजी मेहता का सपना था कि मैं महावीर का वेश धारण कर उनकी इच्छा को पूर्ण करूं। मेरे पापा जहां भी है वह उच्च गति में होंगे और उनसे मिलने का एक ही रास्ता है कि मैं संयम लेकर उनसे मिल सकूं। भावुक होते हुए कहा कि आप सभी ने असीम उपकार करते हुए मुझे जो आशीर्वाद दिया है उसको कभी नहीं भूलते हुए मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि मैं महावीर के पथ को सदा उज्जवल रखूंगी। मुझे जैन धर्म का सरण मिला है, गुरु मैया मिली है, तो मेरे जीवन में एक नया सवेरा होगा। आपके इस भावुक भरे शब्दों को सुनकर सारा सदन भीगी पलकों से उसे निहारता रहा पंडाल में उपस्थित जन-जन की आंखों से आंसू बहने लगे। अंत में सलोनी कहती के संसार के मोह से निकलकर में संयम की साधना की ओर अग्रसर होने जा रही हूं। आप सभी का आशीर्वाद मुझे चाहिए।
‘शबरी के मन में राम थे और सलोनी के मन में रजोहरण था’
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आनंदचंद्रसागर महाराज ने कहा कि शबरी के मन में राम थे और सलोनी के मन में रजोहरण था। अभिमंत्रित राजोहरण पाकर सलोनी खुशी से झूमते नाचते हुए प्रभु के परिक्रमा पूरी कर रही थी, तो पंडाल तालियो की गूंज के साथ दीक्षार्थी अमर रहे के गगन भेदी जयकारों से गूंज रहा था। बडनग़र की प्रशंसा करते हुए कहा कि शादी के लिए लोग उदयपुर पैलेस में जाते हैं, किंतु मैं तो यह कहूंगा कि अगर दीक्षा कार्यक्रम हो तो वह बडनग़र जैसा हो और बडनग़र में हो।
‘जाओ बेटा, त्याग-वैराग्य के रंगों से सुशोभित हो’
&संसार अमावस्या की अंधेरी रात है, तो संयम सुनहरा सूर्योदय है और इसलिए तुम हम सभी की ममता-मोह-माया का परित्याग कर संयम के राज मार्ग पर चलने के लिए तत्पर बनी हो। हम तुम्हें अंतर्मन से आशीर्वाद दे रहे हैं कि जाओ बेटा, तुम्हारा जीवन साधना-आराधना-तप-त्याग-वैराग्य के रंगों से सुशोभित हो। गुरु की आज्ञापालन से सुविहीत बने एवं जिनशासन की अविरत सेवा से सुसज्जित बने। – रेखाबेन मेहता, वीर माता