नीमच. जिस प्रकार छोटा बच्चा सोने के मूल्य को नहीं समझता है और वह सोने के अंगूठी को भी खिलौना समझकर फेंक देता है। उसी प्रकार हमें धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर धर्म तपस्या के महत्व को समझना होगा। धर्म ग्रंथों के अध्ययन से मन विचलित होता है। समाज दीक्षा और त्याग करने वाले का सम्मान करता है विवाह करने वाले का सम्मान नहीं करता है।
यह बात आचार्यश्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कारों के बिना आत्मा का महत्व समझ नहीं आता है। मनुष्य को इस संसार के जीवन में क्या खाना क्या पीना यह तो वह समझ लेगा, लेकिन धर्म संस्कार के बिना आत्मा कल्याण नहीं हो सकता है। त्याग तपस्या करने वाले का समाज सम्मान करता है भोग विलास करने वाले का नहीं। संसार का त्याग नहीं करेंगे हमारा सम्मान नहीं होगा। श्रीसंघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज पावनचंद्र सागर मसा एवं पूज्य साध्वीश्री चंद्रकला की शिष्या भद्रपूर्णाश्रीजी आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। पूज्य आचार्य भगवंत का आचार्य पदवी के बाद प्रथम चातुर्मास नीमच में हो रहा है। उपवास, एकासना, बियासना, तेला आदि तपस्या के ठाठ लग रहे हैं। धर्मसभा में जावद, जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।