नीमच. संसार में मनुष्य सुख प्राप्त करने के लिए अनेक कर्म करता है कई बार मनुष्य अनजाने में भूलवश पाप कर्म कर बैठता है। कर्म का फल अवश्य मिलता है चाहे वह कोई महान पुरुष ही क्यों न हो। महावीर को भी कर्मों का फल भोगना ही पड़ा था। हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा इसलिए सदैव पुण्य कर्म करना चाहिए और सदैव पाप और बुरे कर्मों से बचना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है।
यह बात आचार्यश्री प्रसन्नचंद्र सागर ने कही। उन्होंने कहा कि पाप कर्म करने के पहले सोचे कि इसका फल कैसा होगा। हमने कर्म सत्ता के महत्व को समझ लिया तो हमें हर कदम पर अच्छा बुरा कर्म सामने दिखेगा जो कर्म को समझेगा वही पुण्यवान बन सकता है। हमसे भूलवश पाप कर्म हो जाए तो प्रायश्चित कर पाप कर्म की सजा को कम किया जा सकता है, लेकिन क्षमा नहीं मिलती है। मनुष्य को आर्यकुल मनुष्य जन्म जैन कुल, परमात्मा की वाणी मिली लेकिन फिर भी यदि मनुष्य का ध्यान एकाग्रता नहीं है तो यह सब व्यर्थ चला जाता है। नियति निश्चित होती है लेकिन परिश्रम और पुरुषार्थ तो करना ही पड़ता है तभी फल मिलता है। संसार के मनुष्य जीवन में काम एस्वभाव एकर्म पुरुषार्थ एनियति आदि ५ कारणों से कर्म का उद्यम होता है 5 में से एक मुख्य होता है जो हमें परिणाम देता है। कहीं पर भाग्य प्रदान होता है। कर्म कहीं पर परिश्रम पुरुषार्थ होता है क्योंकि यदि हमारे पुण्य कर्म बलवान है तो एक घंटे में लाखों रुपए कमा सकते हैं और यदि हमारे पाप कर्म बलवान है तो पूरे दिन परिश्रम करें तो भी हमें उचित पारिश्रमिक नहीं मिलेगा।